Pearl Farming:- खेती-बाड़ी में अब सिर्फ गेहूं और धान नहीं, बल्कि नई तरह की खेती से किसान अपनी आमदनी तेजी से बढ़ा रहे हैं. खास तौर पर उत्तर प्रदेश और आसपास के राज्यों में मोती की खेती यानी पर्ल फार्मिंग किसानों के लिए बड़ा मौका बनकर उभर रही है. ये खेती कम लागत में शुरू की जा सकती है और इसका मुनाफा लाखों में जाता है. सरकार भी प्रधानमंत्री मत्स्य सम्पदा योजना के तहत ट्रेनिंग और सब्सिडी दे रही है, ताकि ज्यादा से ज्यादा लोग इससे जुड़ें.
मोती का उपयोग आभूषणों और सजावटी चीजों में होता है. देश से लेकर अंतरराष्ट्रीय बाजार तक इसकी भारी मांग है. ऐसे में अगर आप तालाब में मछली पालन के साथ मोती की खेती करेंगे, तो आय दोगुनी हो सकती है.
प्रधानमंत्री मत्स्य सम्पदा योजना से मिल रहा बड़ा मौका
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, मोती की खेती को बढ़ावा देने के लिए प्रधानमंत्री मत्स्य सम्पदा योजना के तहत किसानों को ट्रेनिंग और आर्थिक सहायता दी जा रही है. इस मॉडल में मोती के साथ मछली पालन भी शामिल है, जिसे इंटीग्रेटेड फार्मिंग कहा जाता है. इस योजना के तहत एक प्रोजेक्ट की शुरुआत 50 हजार सीप से की गई और हर सीप में दो-दो न्यूक्लियस डाले जा रहे हैं. इसका मतलब है कि एक सीप से दो मोती तैयार होंगे. इस तरह कुल उत्पादन अच्छा होगा और किसानों की कमाई भी बढ़ेगी. इस मॉडल को अपनाने वालों को समय-समय पर ट्रेनिंग दी जा रही है.
कम लागत में शुरू होती है मोती की खेती

मोती की खेती
मोती की खेती में ज्यादा खर्च नहीं आता. अगर आपके पास पहले से तालाब है और आप मछली पालन करते हैं, तो आपको सिर्फ अच्छे क्वालिटी के सीप, ट्रेनिंग और थोड़ी तैयारी की जरूरत होती है. सीप की कीमत भी बहुत महंगी नहीं होती और सरकार कुछ जगहों पर अनुदान भी देती है. इन्हें तालाब में डालने से पहले कुछ दिनों तक टैंक में रखा जाता है. एक बार प्रक्रिया शुरू हो जाने के बाद इसमें ज्यादा मेहनत नहीं लगती. किसान अपने दूसरे कामों के साथ इसे आसानी से जोड़ सकते हैं.
सीप की सर्जरी से ऐसे तैयार होता है मोती

मोती बनाने की प्रक्रिया
मोती बनाने की प्रक्रिया सुनने में भले ही कठिन लगे, लेकिन ट्रेनिंग के बाद इसे आसानी से किया जा सकता है. मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, सबसे पहले अच्छी क्वालिटी के सीप लिए जाते हैं. 1-2 दिन बाद इनकी सर्जरी की जाती है. इसमें सीप का कवच 2 से 3 मिलीमीटर तक खोला जाता है. इसके अंदर न्यूक्लियस या मोती का बीज डाला जाता है. इसके बाद सीप को करीब एक हफ्ते तक पानी से भरे टैंक में रखा जाता है. जब सीप तैयार हो जाते हैं, तो उन्हें नायलॉन बैग में रखकर तालाब में छोड़ दिया जाता है.
तालाब में ऐसे रखे जाते हैं सीप
आमतौर पर 2 से 3 सीप एक नायलॉन के बैग में रखे जाते हैं. फिर इन बैगों को बांस, रस्सी या पाइप की मदद से तालाब में टांगा या डुबोया जाता है. इस दौरान साफ पानी का ध्यान रखना जरूरी होता है. मोती तैयार होने में 14 से 15 महीने का समय लगता है. यानी एक साल में ही किसान पहली कमाई पा सकते हैं. खास बात यह है कि सीप को नुकसान नहीं पहुंचता और उनमें दोबारा भी खेती की जा सकती है.
तैयार मोती की कीमत और बाजार में डिमांड
जब मोती तैयार हो जाते हैं, तो सीप का कवच तोड़कर उन्हें निकाला जाता है. बाजार में मोती का मूल्य साइज, चमक और गुणवत्ता पर निर्भर करता है. साधारण मोती भी हजारों में बिक जाते हैं, जबकि अच्छे मोती लाखों तक का दाम दिला सकते हैं. अंतरराष्ट्रीय बाजार में मोती की कीमत करोड़ों तक पहुंचती है. इसलिए किसान इसे अपने लिए बड़ा मुनाफे का जरिया बना सकते हैं. खास बात यह है कि इस खेती के लिए अलग जमीन खरीदने या बड़ा निवेश करने की जरूरत नहीं पड़ती.