अगर महिलाएं छोड़ दें पशुपालन तो चरमरा जाएगा डेयरी सेक्टर का आर्थिक ढांचा, पढ़ें डिटेल्स

ग्रामीण भारत में 70% पशुपालन महिलाएं संभालती हैं, लेकिन उनकी मेहनत को अपेक्षित पहचान नहीं मिल पाई है. जानवरों की देखभाल से लेकर दुग्ध उत्पादन तक, महिलाएं इस क्षेत्र की असली शक्ति बनकर उभरी हैं.

नोएडा | Updated On: 6 Aug, 2025 | 12:20 PM

अगर ग्रामीण महिलाएं पशुपालन का कार्य छोड़ दें, तो इसका सीधा असर न केवल परिवारों की आमदनी पर पड़ेगा, बल्कि पूरे ग्रामीण भारत की अर्थव्यवस्था पर भी गहरा संकट आ सकता है. महिलाएं पशुओं की देखभाल, दुग्ध उत्पादन, चारा प्रबंधन और स्वास्थ्य निगरानी जैसे कार्यों में लगभग 70 फीसदी योगदान देती हैं. यह योगदान अदृश्य होते हुए भी बेहद महत्वपूर्ण है. उनकी भूमिका को नजरअंदाज करना, भारत की ग्रामीण अर्थव्यवस्था की रीढ़ को कमजोर करना है.

अब वक्त है उनकी इस मेहनत को मान देने का, उन्हें स्किल, क्रेडिट और पहचान देने का-क्योंकि अगर महिलाएं सशक्त होंगी, तो पशुपालन मजबूत होगा और देश का ग्रामीण विकास नई ऊंचाई पर पहुंचेगा.

महिलाएं: पशुपालन की रीढ़

ग्रामीण इलाकों में महिलाएं सुबह-सुबह उठकर सबसे पहले मवेशियों की देखभाल करती हैं.

  • दूध निकालना
  • चारा देना
  • जानवरों को नहलाना
  • बीमार जानवरों की देखभाल करना

ये सब काम वे पूरी लगन से करती हैं. पुरुष अक्सर बाजार या खेती जैसे कार्यों में व्यस्त रहते हैं, इसलिए पशुपालन पूरी तरह से महिलाओं के भरोसे होता है. यह साफ दर्शाता है कि ग्रामीण पशुधन अर्थव्यवस्था की असली रीढ़ महिलाएं ही हैं.

कम संसाधन, फिर भी बड़ा योगदान

हालांकि महिलाएं पशुपालन में मुख्य भूमिका निभा रही हैं, लेकिन उन्हें बहुत कम संसाधन मिलते हैं.

  • क्रेडिट (ऋण) की सीमित सुविधा
  • ट्रेनिंग या स्किल डेवेलपमेंट की कमी
  • बैंकिंग और सरकारी योजनाओं की जानकारी का अभाव

इसके बावजूद, वे अपने पारंपरिक ज्ञान और अनुभव के सहारे इस क्षेत्र को संभाल रही हैं. अगर उन्हें थोड़ी और मदद मिले, तो वे इस क्षेत्र को कई गुना आगे बढ़ा सकती हैं.

सरकार और समाज को उठाने होंगे ठोस कदम

महिलाओं की भागीदारी को मजबूत करने के लिए कुछ जरूरी कदम उठाए जाने चाहिए.

  • स्किल डेवेलपमेंट प्रोग्राम: जिससे वे पशुओं की बेहतर देखभाल सीख सकें
  • सरल लोन व्यवस्था: महिलाओं के नाम पर पशुपालन ऋण आसानी से उपलब्ध कराया जाए
  • प्रतिष्ठा और सम्मान: स्थानीय स्तर पर महिला पशुपालकों को पुरस्कार और पहचान दी जाए
  • प्रशिक्षण शिविर: तकनीकी और वैक्सीनेशन संबंधी जानकारी दी जाए
  • इन प्रयासों से ना सिर्फ उनकी आमदनी बढ़ेगी, बल्कि गांवों में पशुधन और दुग्ध उत्पादन भी उछाल पर पहुंचेगा.

महिला सशक्तिकरण से ही बनेगा आत्मनिर्भर भारत

पशुपालन आज ग्रामीण भारत की आर्थिक रीढ़ बन चुका है और जब इसमें महिलाओं की भूमिका इतनी महत्वपूर्ण है, तो उन्हें सशक्त बनाना राष्ट्रीय विकास का हिस्सा होना चाहिए. पशुपालन में महिलाओं की भागीदारी को सरकारी योजनाओं में प्राथमिकता दी जानी चाहिए. स्वयं सहायता समूहों (SHG) के ज़रिए महिला नेतृत्व को बढ़ावा दिया जाए. टेक्नोलॉजी और मोबाइल ऐप्स के ज़रिए उन्हें बाज़ार और दाम की सही जानकारी दी जाए. अगर इन प्रयासों को जमीन पर उतारा जाए, तो यह न केवल महिलाओं को सशक्त करेगा बल्कि देश के “ग्रामीण विकास और दुग्ध क्रांति” को भी नई दिशा देगा.

Published: 6 Aug, 2025 | 12:20 PM