किसान को मिली बड़ी सफलता, गांव में कर रहा कोरियाई स्क्वैश की खेती; अब डबल होगी कमाई

हिमाचल के कांगड़ा घाटी में किसान बलबीर सैनी ने पहली बार कोरियाई पीली स्क्वैश की सफल खेती की है. यह फसल 45 रुपये किलो तक बिक रही है.

नोएडा | Updated On: 3 May, 2025 | 07:43 PM

हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा घाटी की उपजाऊ मिट्टी में पहली बार पीली स्क्वैश की खेती करने में सफलता मिली है. इसका श्रेय जाता है प्रगतिशील किसान बलबीर सैनी को. वे गगल के पास कांदरेहड़ पंचायत के पटोला गांव के रहने वाले हैं. वे अपने इलाके में तकनीकी आधारित खेती के लिए जाने जाते हैं. वे आए दिए खेती में नए-नए प्रयोग करते रहते हैंं. अब उन्होंने पीली स्क्वैश उगाने में सफलता पाई है.

द ट्रिब्यून की रिपोर्ट के मुताबिक, किसान बलबीर सैनी का कहना है कि पहले गांव में केवल हरी स्क्वैश की खेती होती थी. लेकिन उन्होंने कोरियाई किस्म की पीली स्क्वैश उगाने का फैसला किया. उन्होंने कहा कि इसके एक बीज की कीमत 5 रुपये हैं. इनके बाग में पीली स्क्वैश के अच्छे-खासे फल आए हुए हैं. इनकी गुणवत्ता भी बहुत बढ़िया है.

45 रुपये प्रति किलो है रेट

इस समय स्थानीय बाजारों में हरी स्क्वैश करीब 20 रुपये प्रति किलो बिक रही है, जबकि पीली स्क्वैश को 45 रुपये प्रति किलो का प्रीमियम रेट मिल रहा है. इसकी खासियत और पौष्टिकता ने लोगों का ध्यान खींचा है. आसपास के गांवों के किसान बलबीर सैनी के खेत पर पहुंचकर इस सुनहरी फसल को देख रहे हैं और इसकी खेती के तरीकों को जानने में रुचि दिखा रहे हैं.

पीली मक्खी के हमले का खतरा

हालांकि, पीली स्क्वैश की खेती में कुछ चुनौतियां भी हैं. यह जलभराव के प्रति संवेदनशील है और पीली मक्खी के हमले का खतरा रहता है. इन समस्याओं से निपटने के लिए सैनी ने खास तकनीक अपनाई है. फसल को ऊंची क्यारियों पर लगाया ताकि जड़ों में सड़न न हो और गेंदा फूल के साथ अंतरवर्ती फसल (इंटरक्रॉपिंग) की जिससे कीट नियंत्रण में मदद मिली.

सैनी ने कहा कि स्क्वैश ज्यादा नमी और कीड़ों के प्रति बहुत संवेदनशील होती है, लेकिन ऑर्गेनिक गेंदे के फूलों की कतारें लगाकर इसे सुरक्षित रखा जा सकता है. इसके लिए गेंदे का फूल एक प्राकृतिक कवच की तरह काम करता है. यह अतिरिक्त नमी सोखता है और कीटों को दूर रखता है. इसके लिए किसी रासायनिक स्प्रे की जरूरत नहीं होती.

इस तकनीक से स्क्वैश की पैदावार बढ़ेगी

इस तकनीक से न केवल स्क्वैश की पैदावार बढ़ती है, बल्कि जैव विविधता को भी बढ़ावा मिलता है. यह तरीका इलाके में एकीकृत खेती (इंटीग्रेटेड फार्मिंग) का मॉडल बन सकता है. पीली स्क्वैश की शानदार फसल के साथ, सैनी की सफलता टिकाऊ खेती की दिशा में एक नई मिसाल बन रही है. उनकी यह पहल हिमाचल प्रदेश में फसल विविधीकरण को बढ़ावा दे सकती है, जिससे किसानों को बेहतर आमदनी और मजबूत कृषि भविष्य मिल सकेगा.

Published: 3 May, 2025 | 07:28 PM