केले के रेशों से बुनी टोपी पहुंची लंदन, बुरहानपुर की अनुसुईया बनीं मिसाल

केले के रेशों से टोपी बनाकर मध्यप्रदेश की अनुसुईया चौहान ने लंदन तक बनाई पहचान. बुरहानपुर की दीदी आजीविका मिशन से जुड़कर बनीं आत्मनिर्भरता की मिसाल.

नोएडा | Updated On: 27 May, 2025 | 07:19 PM

मध्यप्रदेश का बुरहानपुर जिला सिर्फ केले की खेती के लिए नहीं, अब नया तरीका और आत्मनिर्भरता की मिसाल बन चुकी महिलाओं के लिए भी जाना जा रहा है. इसी ज़िले के एकझिरा गांव की अनुसुईया चौहान ने केले के तनों से टोपी बनाकर लंदन तक अपनी पहचान बना ली है. आजीविका मिशन से जुड़ने के बाद उनकी जिंदगी ने ऐसा मोड़ लिया, जिसने न केवल उनके परिवार की तस्वीर बदली, बल्कि पूरे जिले की महिलाओं को एक नई दिशा दी.

आजीविका मिशन से शुरू हुई बदलाव की कहानी

अनुसुईया का सफर शुरू होता है मध्य प्रदेश शासन के आजीविका मिशन से, जहां वे लव-कुश स्व-सहायता समूह का हिस्सा बनीं. केले की खेती तो पहले से थी, लेकिन मिशन से जुड़ने के बाद उन्हें यह समझ आया कि केले के तने को भी रोजगार का साधन बनाया जा सकता है. सरकार की मदद से उन्होंने रेशा निकालने की मशीन खरीदी और टोपी बनाने का काम शुरू किया.

केले के रेशों से बनी अनोखी टोपी

केले के तने से रेशा निकालना, उसे सुखाना, बुनना और फिर खूबसूरत टोपी का रूप देना ये कोई आसान काम नहीं है. लेकिन अनुसुईया दीदी ने परिवार की मदद से इस हुनर को इतना निखारा कि उनके बनाए प्रोडक्ट्स की मांग बढ़ने लगी. एक टोपी की कीमत 1100 से 1200 रुपये तक होती है और इसकी खास बात यह है कि यह पूरी तरह देसी और टिकाऊ होती है.

लंदन में बनाई पहचान

उनकी मेहनत और हुनर का फल तब मिला जब बुरहानपुर के ही लालबाग क्षेत्र के कुछ लोग उनकी बनी टोपियां विदेश ले गए. लंदन में इन टोपियों को हाथों-हाथ लिया गया और वहीं से अनुसुईया दीदी की चर्चा हर तरफ होने लगी. यह केवल एक टोपी की सफलता नहीं थी, यह प्रमाण था कि देसी हुनर, जब सही मंच पाता है तो अंतरराष्ट्रीय सरहदें पार कर लेता है.

सरकार की नीतियों का मिला साथ

मध्यप्रदेश सरकार ने महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में जो मिशन शुरू किया है, उसका असर अब जमीनी स्तर पर दिखने लगा है. बुरहानपुर में लखपति दीदी योजना के तहत अनुसुईया जैसी महिलाएं आगे बढ़ रही हैं. सरकार की मदद, मशीन की सुविधा और समूह की ताकत ने उन्हें एक मजबूत उद्यमी बना दिया है.

प्रेरणा बनी अनुसुईया

आज अनुसुईया दीदी न केवल टोपी बनाकर कमाई कर रही हैं, बल्कि अपने गांव और आसपास की महिलाओं को भी यह हुनर सिखा रही हैं. वे कहती हैं कि जब हुनर को मंच और मेहनत को दिशा मिलती है तो सपने भी हकीकत बन जाते हैं. बुरहानपुर की यह कहानी अब देश के अन्य हिस्सों में भी उम्मीद की किरण बन रही है.

Published: 27 May, 2025 | 07:04 PM