मत्स्य पालन मंत्री के नदी में छोड़ते ही मर गईं 2 लाख मछलियां, जांच के लपेटे में कई अफसर.. नौकरी भी जाएगी!
लखनऊ में गोमती नदी में मत्स्य प्रवाह कार्यक्रम के दौरान बड़ी संख्या में मरी मछलियां मिलने से हंगामा मच गया. मंत्री संजय निषाद के फोटोशूट के बीच पानी में तैरती मृत मछलियों ने पूरे कार्यक्रम की तैयारी और सरकारी दावों पर सवाल खड़े कर दिए. स्थानीय लोग और मछुआरे लगातार नाराज़गी जता रहे हैं.
Lucknow Fish Incident : लखनऊ की ठंडी दोपहर में गोमती नदी का नजारा अचानक बदल गया. जहां नदी के किनारे मत्स्य प्रवाह का भव्य कार्यक्रम चल रहा था, वहीं कुछ ही मिनट बाद पानी की सतह पर तैरती मरी मछलियों ने सबका ध्यान खींच लिया. मंत्री संजय निषाद मछलियों को नदी में छोड़ रहे थे, लेकिन उनकी ही आंखों के सामने वही मछलियां पानी में उतरते हुए दिखाई देने लगीं. देखते ही देखते पूरा माहौल सवालों और नाराजगी से भर गया. इस मामले में कई अफसर भी लपेटे में आ गाए है. लोगों ने कहा कि यह कार्यक्रम नदी को संवारने के लिए नहीं, बल्कि फोटोशूट के लिए ज्यादा था.
कार्यक्रम शुरू होते ही मरी मछलियां दिखीं, लोग हैरान रह गए
लखनऊ के लक्ष्मण झूला पार्क स्थित गोमती रिवर फ्रंट पर जब मंत्री संजय निषाद ने 2 लाख मछलियां नदी में छोड़ीं, तो कुछ सेकंड तक सब सामान्य लगा. मीडिया फोटो क्लिक कर रहे थे, मंच चमक रहा था, अधिकारी साथ खड़े थे. लेकिन अचानक कई मछलियां पानी की सतह पर तैरने लगीं. कुछ एकदम नीचे बैठ गईं और हिल भी नहीं रही थीं. लोगों ने तुरंत समझ लिया कि इनमें से कई मछलियां पहले से ही मर चुकी थीं. यह दृश्य देखकर मौके पर मौजूद लोगों के चेहरे पर हैरानी, गुस्सा और सवाल-तीनों साफ दिखाई देने लगे.
प्लास्टिक पैकेटों में घंटों बंद रहने से बिगड़ी मछलियों की हालत
Packing fish into plastic bags
स्थानीय लोगों और मछुआरों ने बताया कि मछलियों को प्लास्टिक बैगों में भरकर 5-6 घंटे तक रखा गया था. इतनी देर तक बंद बैग में रहने से ऑक्सीजन लगभग खत्म हो गई. ठंडी हवा और समय पर पानी न बदलने से मछलियों की हालत और खराब हो गई. मछुआरों ने बताया कि ऐसे बैगों में लगभग 8-10 फीसदी मछलियां पहले ही मर जाती हैं. वही हुआ-कार्यक्रम शुरू होने से पहले ही कई मछलियां मर चुकी थीं और जैसे ही उन्हें पानी में छोड़ा गया, वे बिना हिले-डुले नीचे बैठ गईं.
नदी का गंदा पानी भी बना मौत की बड़ी वजह
गोमती नदी की हालत पहले से ही ठीक नहीं है. नदी में गंदगी, सीवेज और औद्योगिक कचरा लगातार बहता रहता है. पानी में ऑक्सीजन का स्तर भी बहुत कम है. मछुआरों ने बताया कि नदी का पानी इतना खराब है कि स्वस्थ मछलियां भी मुश्किल से कुछ घंटे ही जीवित रह पाती हैं. ऐसे में जो मछलियां पहले से थकी हुई, आधी मरी हुई या कमजोर थीं, वे नदी में उतरते ही दम तोड़ने लगीं. लोगों ने कहा कि अगर वाकई मछली संवर्धन करना था, तो पहले नदी का पानी सुधारा जाना चाहिए था, न कि सिर्फ कैमरे के सामने मछलियां छोड़कर औपचारिकता निभाई जाए.
मंत्री का फोटोशूट बना विवाद का केंद्र
Dead Fish
कार्यक्रम का सबसे चर्चा वाला हिस्सा था मंत्री संजय निषाद का बार-बार फोटो खिंचवाना. पहले वे किनारे से मछलियां छोड़ते हुए फोटो खिंचवा रहे थे, फिर नाव में बैठकर भी वही किया. मीडिया मौजूद थी और लगातार तस्वीरें खींच रही थी. लोगों को लगा कि कार्यक्रम का असली मकसद मछलियों को बचाना नहीं, बल्कि फोटोशूट करना है. जब मछलियां मरती हुई दिखीं, तो कई लोगों ने कहा- फोटो ज्यादा ली गईं, मछलियों की हालत कम देखी गई. यह बात सोशल मीडिया पर भी खूब वायरल हो रही है.
मत्स्य विभाग की लापरवाही भी खुलकर सामने आई, खतरे में है नौकरी
पूरा कार्यक्रम मीडिया की मौजूदगी में भव्य तरीके से आयोजित किया गया था, लेकिन मछलियों की गुणवत्ता की जांच किसी ने नहीं की. न पानी की स्थिति देखी गई, न बैग की हालत, न मछलियों की सक्रियता. अधिकारी मंच सजाने और प्रेस से बात करने में ज्यादा व्यस्त नजर आए. विशेषज्ञों का कहना है कि जब ऐसे कार्यक्रम बिना वैज्ञानिक तरीकों और बिना मॉनिटरिंग के किए जाते हैं, तो परिणाम यही होते हैं- मरी हुई मछलियां और बदनाम होती सरकारी योजना. मामले में कई विभागीय अफसरों जांच के लपेटे में हैं और उनकी नौकरी भी खतरे में है.
सरकार के दावे और जमीन का सच एक-दूसरे से उलट
Fish In Plastic
मत्स्य मंत्री संजय निषाद ने दावा किया कि पहले नदी में छोड़ी गई मछलियों की मौत 30 प्रतिशत होती थी, लेकिन अब केवल 10 फीसदी रह गई है. लेकिन कार्यक्रम में जो नजर आया, उससे लगा कि स्थिति बिल्कुल उलटी है. मछलियां पानी में छोड़ते ही मरने लगीं, जिससे लोगों ने मंत्री के आंकड़ों पर सवाल उठाए. मछुआरों ने कहा कि असल मौतें आंकड़ों में नहीं दिखाई जातीं. उनकी मानें तो नदी जैसी हालत में कम से कम आधी मछलियां जीवित ही नहीं बचतीं. मंत्री के दावों और नदी की सच्चाई में बड़ा फर्क साफ दिखा.
लोगों ने कहा-नदी की सफाई पहले हो, कार्यक्रम बाद में
मौके पर मौजूद कई लोगों ने कहा कि जब गोमती नदी की हालत इतनी खराब है, तो सबसे पहले नदी को साफ करना जरूरी है. कार्यक्रम सिर्फ औपचारिक रहे तो कोई फायदा नहीं. कुछ लोगों ने कहा कि यह कार्यक्रम दिखावा ज्यादा था और संवर्धन कम. सोशल मीडिया पर वायरल वीडियो में नदी के किनारे मरी मछलियां साफ दिख रही हैं. लोग लगातार सवाल पूछ रहे हैं- क्या नदी में जीवन बढ़ाना असल लक्ष्य है, या सिर्फ कागजों और कैमरों में दिखाना?