Fish Farming Tips: भारत में मछली पालन आज एक बड़ा और लाभदायक व्यवसाय बन चुका है. लाखों किसान अब इसे अपनी आजीविका का प्रमुख साधन बना चुके हैं. लेकिन जितनी तेजी से यह उद्योग बढ़ रहा है, उतनी ही तेजी से मछलियों में बीमारियों का खतरा भी बढ़ा है. मछलियों में होने वाले रोग न सिर्फ उत्पादन को कम कर देते हैं बल्कि कभी-कभी पूरी फसल को नष्ट कर देते हैं. इसका सबसे बड़ा कारण तालाब की साफ-सफाई, पानी की गुणवत्ता और मछलियों का अत्यधिक तनाव है. अगर मछलियों के रोगों की पहचान समय पर हो जाए और सही इलाज किया जाए, तो इस नुकसान से बचा जा सकता है. आइए जानते हैं मछलियों के प्रमुख रोग, उनके लक्षण और उनका सरल उपचार.
मछलियों में रोग फैलने के प्रमुख कारण
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, मछलियों में रोग फैलने के पीछे कई कारण होते हैं. सबसे पहले, तालाब में खराब पानी की गुणवत्ता, जैसे अधिक अमोनिया, उच्च नाइट्रेट या अनुचित पीएच स्तर, मछलियों की प्रतिरोधक क्षमता को कमजोर कर देते हैं. तापमान में अचानक बदलाव या पानी में ऑक्सीजन की कमी से भी मछलियां तनाव में आ जाती हैं. जब मछलियां तनावग्रस्त होती हैं तो वे जल्दी बीमार पड़ जाती हैं. अगर तालाब में ज्यादा मछलियां हों तो यह समस्या और बढ़ जाती है क्योंकि ऑक्सीजन कम पड़ जाती है और संक्रमण फैलने की संभावना बढ़ जाती है. मछलियों को स्वस्थ रखने के लिए यह जरूरी है कि पानी का पीएच 7.5 से 8.5 के बीच, घुली ऑक्सीजन 5 से 9 पीपीएम और तापमान 25 से 30 डिग्री सेल्सियस रखा जाए.
ड्रॉप्सी रोग-मछली का सूज जाना
ड्रॉप्सी एक सामान्य लेकिन खतरनाक रोग है, जो एरोमोनास हाइड्रोफिला नामक बैक्टीरिया से फैलता है. इस बीमारी में मछली के शरीर में तरल पदार्थ भर जाता है जिससे वह फूल जाती है. मछली का पेट सूज जाता है और शरीर पर लाल धब्बे या अल्सर बनने लगते हैं. मछली की त्वचा पर हल्का रक्तस्राव भी दिखाई देता है. समय पर इलाज न किया जाए तो यह बीमारी तेजी से अन्य मछलियों में फैल सकती है. इसका इलाज बहुत सरल है- मछलियों को दो सप्ताह तक टेरामाइसिन दवा मिलाकर चारा दिया जाए. इससे संक्रमण धीरे -धीरे खत्म हो जाता है और मछलियां स्वस्थ होने लगती हैं.
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पंख और पूंछ सड़ने की बीमारी
मछलियों में पंख और पूंछ सड़ने की बीमारी भी आम है, जो अधिकतर तालाब के गंदे पानी या संक्रमण के कारण होती है. यह बीमारी भी एरोमोनस हाइड्रोफिला नामक जीवाणु से होती है. इसकी पहचान इस तरह होती है कि मछली की पूंछ का रंग बदलने लगता है, पंख फट जाते हैं और मछली की गति धीमी पड़ जाती है. धीरे-धीरे मछली सुस्त हो जाती है और तैरने की क्षमता खो देती है. इस स्थिति में मछलियों को कॉपर सल्फेट के हल्के घोल में एक से दो मिनट तक डुबोकर उपचार किया जा सकता है. इसके साथ ही प्रति किलो चारे में 10 से 15 ग्राम टेट्रासाइक्लिन मिलाकर खिलाने से भी संक्रमण रुक जाता है.
एपिज़ूटिक अल्सरेटिव सिंड्रोम-लाल धब्बों वाला रोग
यह रोग एफानोमाइसेस नामक फंगस से फैलता है और मछलियों के शरीर पर लाल धब्बे या अल्सर बनाता है. संक्रमित मछलियां खाना छोड़ देती हैं, उनकी त्वचा काली पड़ जाती है और वे तालाब के तल पर निष्क्रिय हो जाती हैं. यदि रोग बढ़ जाए तो मछलियां मरने भी लगती हैं. इस बीमारी का इलाज सीफैक्स (CIFAX) नामक दवा से किया जा सकता है. इसे एक लीटर प्रति हेक्टेयर मीटर की दर से तालाब में डालने से 7 से 10 दिनों के भीतर अल्सर कम हो जाते हैं और मछली स्वस्थ हो जाती है.
सैप्रोलेग्नियोसिस-सर्दियों का जानलेवा फंगल रोग
सर्दियों में मछलियों को सबसे ज्यादा प्रभावित करने वाला रोग है सैप्रोलेग्नियोसिस, जिसे “विंटर किल सिंड्रोम” भी कहा जाता है. इसका कारण सैप्रोलेग्निया नामक फंगस है जो मछलियों के सिर और पंखों पर रूई जैसी सफेद परत बना देता है. शुरुआत में यह परत हल्की होती है लेकिन धीरे-धीरे पूरे शरीर में फैल जाती है. इससे मछलियों की आंखों और पंखों पर भी असर पड़ता है. इस बीमारी के इलाज के लिए मछलियों को मैलाकाइट ग्रीन (1:10000 अनुपात) के घोल में कुछ सेकंड के लिए डुबोना चाहिए. साथ ही तालाब में ऑक्सीजन का स्तर बढ़ाना बहुत जरूरी है. अगर संक्रमण अधिक है तो फॉर्मेलिन सॉल्यूशन का प्रयोग भी किया जा सकता है.
आर्गुलोसिस- त्वचा पर कीड़े लगना
आर्गुलोसिस एक परजीवी रोग है जो मछलियों की त्वचा पर छोटे कीड़े लगा देता है. यह आर्गुलस नामक परजीवी से फैलता है. इससे मछलियों की त्वचा पर छेद बन जाते हैं और खून निकलने लगता है. मछलियां बेचैन होकर सतह पर उछलने लगती हैं. इस रोग का सरल उपचार यह है कि मछलियों को 3 से 5 प्रतिशत नमक के घोल में पांच से दस मिनट तक डुबोएं और फिर साफ पानी में छोड़ दें. इसके अलावा, पोटैशियम परमैंगनेट के घोल से भी तालाब का उपचार करने से परजीवी खत्म हो जाते हैं.