चीन ने ब्रह्मपुत्र पर शुरू किया दुनिया के सबसे बड़े बांध का काम, भारत को क्यों सता रहा है डर?

भारत के पूर्वोत्तर राज्यों खासकर अरुणाचल प्रदेश और असम में यही नदी सियांग और ब्रह्मपुत्र बनकर बहती है. विशेषज्ञों का मानना है कि अगर चीन ने इस नदी के पानी का बहाव रोका या मोड़ा, तो इससे नीचे के इलाकों में पानी की भारी किल्लत हो सकती है.

नई दिल्ली | Published: 22 Jul, 2025 | 10:27 AM

चीन ने तिब्बत में यारलुंग त्सांगपो नदी पर दुनिया का सबसे बड़ा पनबिजली (हाइड्रोपावर) बांध बनाने का काम शुरू कर दिया है. चीन इस प्रोजेक्ट को “प्रगति का प्रतीक” बता रहा है, लेकिन भारत और बांग्लादेश के लिए यह चिंता का बड़ा कारण बन गया है. क्योंकि यही नदी भारत में सियांग और ब्रह्मपुत्र के नाम से बहती है और फिर बांग्लादेश पहुंचती है.

कहां और क्यों बनाया जा रहा है ये बांध?

भारतीय मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, यह बांध तिब्बती पठार के उस हिस्से में बनाया जा रहा है, जहां नदी एक बड़ा मोड़ बनाती है जिसे “द ग्रेट बेंड” कहा जाता है. यहां नदी बहुत ऊंचाई से गिरती है, जिससे बिजली उत्पादन के लिए यह जगह आदर्श मानी जाती है. चीन का दावा है कि यह बांध बनने के बाद तीन गॉर्जेस बांध से भी तीन गुना ज्यादा बिजली बना सकेगा.

भारत की चिंता क्यों बढ़ी?

भारत के पूर्वोत्तर राज्यों खासकर अरुणाचल प्रदेश और असम में यही नदी सियांग और ब्रह्मपुत्र बनकर बहती है. विशेषज्ञों का मानना है कि अगर चीन ने इस नदी के पानी का बहाव रोका या मोड़ा, तो इससे नीचे के इलाकों में पानी की भारी किल्लत हो सकती है.

अरुणाचल के मुख्यमंत्री पेमा खांडू ने मीडिया से बात करते हुए कहा है कि इस प्रोजेक्ट के कारण नदी सूख सकती है और यह जनजातीय लोगों की आजीविका और जीवनशैली को बर्बाद कर सकता है. उन्होंने इसे “पानी बम” तक कह डाला यानी अगर चीन अचानक ज्यादा पानी छोड़ दे, तो नीचे भयंकर बाढ़ आ सकती है.

बांग्लादेश भी चिंतित

चूंकि ब्रह्मपुत्र नदी आगे जाकर बांग्लादेश में भी बहती है, इसलिए वहां की सरकार ने भी चीन से इस बांध को लेकर जानकारी मांगी है. उन्हें भी डर है कि अगर पानी की मात्रा में बदलाव हुआ, तो उनके किसानों और आम लोगों को नुकसान होगा.

चीन से मांग

भारत ने इस मामले में चीन से ट्रांसपेरेंसी और कंसल्टेंसी की मांग की है. भारत ने यह भी कहा है कि वह अपनी सीमा के भीतर सियांग नदी पर एक हाइड्रोपावर बांध बनाने की योजना बना रहा है, जो चीन के अचानक पानी रिलीज से पैदा होने वाले प्रभावों को कम कर सके.

बीबीसी की रिपोर्ट के अनुसार, चीन ने पहले भी कहा है कि उसे यारलुंग त्सांगपो नदी पर बांध बनाने का “वैध अधिकार” है और वह नदी के निचले इलाकों पर पड़ने वाले प्रभावों पर विचार कर रहा है. बांग्लादेश ने भी फरवरी में चीन को इस प्रोजेक्ट को लेकर सूचना मांगते हुए चिंता जताई है.

क्या है प्लानिंग

इस प्रोजेक्ट में तिब्बती पठार के सबसे गहरे और लंबे खाई वाले इलाके में इसे स्थापित किया जा रही है, जहां नदी एक तेज मोड़ बनाती है जिसे “द ग्रेट बेंड” कहा जाता है. इस स्थान पर नदी की ऊंचाई कई सौ मीटर तक गिरती है, जिससे हाई वॉटर इलेक्ट्रिक प्रोडक्शन संभव होता है. चीनी इंजीनियर इस हिस्से में पहाड़ के अंदर कई टनल बनाकर नदी के पानी के फ्लो का रास्ता बदलने की योजना बना रहे हैं.

चीन की नेशनल पॉलिसी के तहत तहत तिब्बती क्षेत्र के नदी घाटियों में बड़े बांध बनाकर बिजली पैदा की जाएगी, जो देश के पूर्वी औद्योगिक इलाकों में भेजी जाएगी. चीन सरकार इसे क्लीन एनर्जी स्रोत बताते हुए स्थानीय तिब्बती लोगों के आर्थिक प्रोत्साहन का भी दावा करती है. वहीं दूसरी तरफ कई पर्यावरणविद और मानवाधिकार कार्यकर्ता इसे तिब्बती समुदाय के शोषण का मामला मानते हैं. पिछले साल इस प्रोजेक्ट के विरोध में प्रदर्शन करने वाले कई तिब्बतियों को गिरफ्तार और प्रताड़ित भी किया गया.

विरोध की आवाज

पर्यावरणीय लिहाज से भी यह बांध विवादित है क्योंकि यह ऐसे क्षेत्र में बनाया जा रहा है जो भूस्खलन और भूकंप-प्रभावित है. साथ ही लोकल इको सिस्टम पर इसका गहरा प्रभाव पड़ने की संभावना है. भारत और बांग्लादेश के लिए इस प्रोजेक्ट से पानी विवाद की आशंका पैदा हो गई है, जिसे लेकर दोनों देशों ने चीन से सावधानी और पारदर्शिता की मांग की है. इन मुद्दों को लेकर आगे भी कूटनीतिक संवाद और क्षेत्रीय सहयोग की जरूरत बनी हुई है.