चंदौली में आयोजित एक कार्यक्रम के दौरान कृषि विज्ञान केंद्र के प्रक्षेत्र पर इफको की ओर से ड्रोन के माध्यम से नैनो यूरिया, नैनो डीएपी, नैनो जिंक और सागरिका जैसे तरल (लिक्विड) उर्वरकों का छिड़काव किया गया. इस दौरान विशेषज्ञों ने बताया कि लिक्विड खादों का प्रयोग किसानों की आय को दोगुना कर सकता है. इससे खेती की लागत कम होगी, मिट्टी की सेहत सुधरेगी और रबी सीजन में फसल की उपज बंपर होगी. न केवल धान और गेहूं जैसी फसलों में इनका असर दिखेगा, बल्कि किसानों का भरोसा भी बढ़ेगा.
नैनो खाद: कम मात्रा, ज्यादा असर
कार्यक्रम में वैज्ञानिकों ने बताया कि नैनो खादें पारंपरिक खादों की तुलना में कम मात्रा में उपयोग होती हैं लेकिन उनका असर कहीं ज्यादा होता है. उदाहरण के तौर पर, एक एकड़ खेत में सिर्फ 500 एमएल नैनो यूरिया और 600 एमएल नैनो डीएपी की जरूरत होती है. इसके अलावा, नैनो जिंक और सागरिका के मिश्रण से पौधों को जरूरी सूक्ष्म पोषक तत्व भी मिलते हैं.
ड्रोन से होगा खाद का छिड़काव
खास बात ये रही कि इस पूरी प्रक्रिया में ड्रोन तकनीक का इस्तेमाल किया गया. इफको के अधिकारियों ने किसानों को बताया कि अब जिले में ड्रोन की सुविधा उपलब्ध है, जिससे खेतों में खाद का छिड़काव तेजी और समान रूप से किया जा सकता है. इससे समय और श्रम की भी बचत होती है. एक छोटे किसान के लिए जहां दिनभर का काम लगता है, वहीं ड्रोन कुछ ही मिनटों में पूरे खेत पर खाद छिड़क सकता है.
मिट्टी की सेहत सुधरेगी, उपज बढ़ेगी
वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. नरेंद्र रघुवंशी और मृदा वैज्ञानिक डॉ. चंदन सिंह ने बताया कि पारंपरिक यूरिया के ज्यादा इस्तेमाल से मिट्टी की उर्वरता घटती है, जबकि नैनो खादें मिट्टी के लिए फायदेमंद होती हैं. ये मिट्टी के अंदर मौजूद पोषक तत्वों की उपलब्धता को बनाए रखती हैं, जिससे पौधे अधिक स्वस्थ रहते हैं और उत्पादन भी अच्छा होता है.
लागत में कमी, मुनाफे में बढ़ोतरी
नैनो खादों का एक बड़ा फायदा ये है कि इससे कृषि लागत में 20-30 प्रतिशत तक की कमी आती है. पारंपरिक खादों की अधिक मात्रा और परिवहन लागत के मुकाबले नैनो उर्वरक हल्के होते हैं और सस्ते भी. जब कम लागत में अधिक उत्पादन होगा, तो किसानों की आमदनी स्वतः दोगुनी हो जाएगी. यही वजह है कि सरकार और कृषि वैज्ञानिक अब लिक्विड उर्वरकों को बढ़ावा देने में जुटे हैं.
गेहूं और धान दोनों में उपयोगी
इस मौके पर बताया गया कि नैनो डीएपी और यूरिया का उपयोग सिर्फ धान तक सीमित नहीं है, बल्कि गेहूं जैसी रबी फसलों में भी इसका बहुत अच्छा असर होता है. गेहूं के बीज उपचार के लिए 5 एमएल नैनो डीएपी प्रति किलो बीज उपयोग की जानकारी दी गई. इसके बाद फसल बढ़ने पर नैनो यूरिया, जिंक और सागरिका का स्प्रे करके पौधों को पूरा पोषण दिया जा सकता है.
किसानों में दिखा उत्साह
कार्यक्रम में उपस्थित किसानों ने ड्रोन तकनीक और नैनो उर्वरकों के लाइव डेमो को काफी सराहा. किसानों ने कहा कि यह तरीका पारंपरिक तरीकों से बेहतर है और इससे समय की भी बचत होती है. कई किसानों ने मौके पर ही नैनो यूरिया, डीएपी और अन्य उत्पादों को अपनाने का संकल्प लिया. कुछ किसानों ने बताया कि वे पहले ही इसका उपयोग कर चुके हैं और फसल में 15-20 फीसदी तक की बढ़ोतरी देखी गई है.
कृषि वैज्ञानिकों और इफको की संयुक्त पहल
इस पूरी पहल में कृषि विज्ञान केंद्र, चंदौली और इफको की संयुक्त भागीदारी रही. इफको के क्षेत्रीय प्रबंधक अभिषेक त्रिपाठी, वैज्ञानिक डॉ. अभयदीप गौतम, डॉ. अमित, डॉ. प्रतीक, डॉ. मनीष और इफको के अधिकारी मयंक सिंह, अनिल आदि की उपस्थिति में यह कार्यक्रम सफलतापूर्वक सम्पन्न हुआ. सभी ने किसानों को नई तकनीकों को अपनाने के लिए प्रेरित किया और उन्हें नैनो खादों की उपयोगिता के बारे में विस्तृत जानकारी दी.