पंजाब में पराली जलाने की घटनाओं में गिरावट आई है. केंद्र सरकार की निगरानी एजेंसियों के अनुसार, इस साल 1 अप्रैल से 30 मई के बीच गेहूं की कटाई के दौरान पंजाब में कुल 10,193 पराली जलाने की घटनाएं सामने आईं, जो पिछले साल के मुकाबले 15 फीसदी कम हैं. खास बात यह है कि पिछले कुछ वर्षों में यह आंकड़ा लगातार घट रहा है. पंजाब में साल 2022 में 14,511, 2023 में 11,355 और 2024 में 11,904 पराली जलाने के मामले दर्ज हुए थे.
द ट्रिब्यून की रिपोर्ट के मुताबिक, सबसे ज्यादा प्रभावित जिलों में अमृतसर सबसे आगे रहा, जहां 1,102 घटनाएं दर्ज की गईं. इसके बाद मोगा में 863 और गुरदासपुर में 856 मामले सामने आए. अन्य प्रभावित जिलों में फिरोजपुर (742), तरनतारन (700), संगरूर (654) और बठिंडा (651) शामिल हैं. पराली जलाने की सबसे ज्यादा घटनाएं 11 मई को दर्ज की गईं, जब एक ही दिन में 1,410 मामले सामने आए.
मिट्टी की जैविक गुणवत्ता घटी
विशेषज्ञ लगातार पराली जलाने के लंबे समय तक पड़ने वाले पर्यावरणीय और कृषि संबंधी नुकसानों को लेकर चिंता जता रहे हैं. डायरेक्टर एक्सटेंशन एजुकेशन के डॉ. मखन सिंह भुल्लर ने कहा कि मिट्टी की ऊपरी भाग में लगभग आधा फुट पर कई फायदेमंद सूक्ष्म जीव पाए जाते हैं, जो नाइट्रोजन अवशोषण में मदद करते हैं और हानिकारक जीवों को दबाते हैं. लेकिन पराली जलाने से ये सभी सूक्ष्म जीव नष्ट हो जाते हैं, जिससे मिट्टी की जैविक गुणवत्ता घटती है.
उन्होंने कहा कि पराली जलाने से न केवल प्रदूषण बढ़ रहा है, बल्कि इससे पर्यावरण को भी गंभीर नुकसान हो रहा है. एग्रोनॉमिस्ट्स ने देखा है कि पराली जलाने से निकलने वाली गर्मी और धुआं मधुमक्खियों के छत्तों को नुकसान पहुंचाते हैं, जिससे उनकी कॉलोनियां वहां से पलायन कर जाती हैं. मधुमक्खियां फलों, फूलों और अन्य पौधों के परागण में अहम भूमिका निभाती हैं.
मधुमक्खियों का होता है पलायन
वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि मधुमक्खियों का पलायन परागण चक्र को बाधित कर सकता है, जिससे फसलों की पैदावार पर असर पड़ेगा. पंजाबी यूनिवर्सिटी के जूलॉजी और पर्यावरण विज्ञान विभाग के प्रोफेसर हिमेंदर भारती ने भी चिंता जताते हुए कहा कि मधुमक्खियां कृषि पारिस्थितिकी तंत्र की जरूरी परागणकर्ता हैं और पराली जलाने से उनकी आबादी को गंभीर खतरा है उन्होंने कहा कि मधुमक्खियां समूह में पलायन करती हैं. अगर माहौल खराब हो जाता है, तो ये इलाका छोड़ देती हैं.