किसानों की आमदनी बढ़ाने के लिए केंद्र सरकार बागवानी फसलों की खेती को बढ़ावा दे रही है. बाजर में फूलों की सालभर मांग रहती है और सजावट के तौर पर इस्तेमाल किए जाने वाले इन फूलों की खेती किसान भी बड़े पैमाने पर करते हैं. लेकिन झारखंड के खूंटी जिले की बात ही अलग है. यहां पर महिलाएं और युवा बड़े स्तर पर फूलों की खेती कर रहे हैं. इससे ये लाखों में कमाई कर रहे हैं.
फिलहाल, सरकार द्वारा चलाई जा रही राष्ट्रीय बागवानी मिशन के तहत खूंटी जिले की 3 हजार महिलाएं और युवा किसान 25 लाख गेंदे के फूलों के पौधे लगा कर अच्छी कमाई कर रहे हैं. खूंटी जिले में सखी मंडल की सदस्य सुनीता देवी ने कहा कि गेंदे के फूल की खेती से उन्हें अच्छी आमदनी हो रही है.
250 एकड़ में हो रही गेंदे की खेती
झारखंड के खूंटी जिले में महिला कृषि बागवानी स्वावलंबी सहकारी समिति से जुड़े प्रगतिशील किसान 250 एकड़ जमीन पर गेंदे के फूल की खेती कर रहे हैं. समिति की समन्वयक निधि कुमारी ने कहा कि जिले में गेंदे के फूलों की खेती करने वाले किसानों की आमदनी में 20 से 25 हजार रुपये तक की बढ़ोतरी हुई है. बता दें कि केंद्र सरकार के राष्ट्रीय बागवानी मिशन की मदद से यहां के किसान और युवाओं अपनी आर्थिक स्थिति को मजबूत कर खुद के पैरों पर खड़ें हो रहे हैं.

गेंदे की खेती से महिलाएं हो रहीं आत्मनिर्भर (Photo Credit- Prasar Bharti)
कोलकाता से आते हैं पौधे
समाचार एजेंसी प्रसार भारती के अनुसार, खूंटी जिले में ही गेंदे की खेती करने वाले किसान अजय रुंडा बताते हैं कि एक सीजन में गेंदे के फूल की खेती से किसानों को अच्छी आमदनी होती है. फिलहाल, गेंदे की खेती से प्रत्येक किसान को करीब 30 हजार रुपये तक की आमदनी हो रही है. खूंटी जिले में ही बने एक एफपीओ के समन्वयक धरम कुमार ने कहा कि गेंदे के फूल के छोटे पौधे कोलकाता की नर्सरी से लाए जाते हैं. इसके बाद जिले के किसानों के बीच इन्हें बांटा जाता है. उन्होंने कहा कि अबतक जिले में करीब 3 लाख पौधे बांटे जा चुके हैं और खरीफ सीजन में इसकी खेती से किसानों को अच्छा मुनाफा भी हुआ है.
महिलाएं और युवा बन रहे आत्मनिर्भर
गेंदे की फूल की खेती से न केवल खूंटी के किसानों की अच्छी आमदनी हो रही है, बल्कि जिले की महिलाओं और युवाओं को भी बहुत फायदा हो रहा है. यहां की महिलाओं और युवाओं को रोजगार के नए अवसर मिल गए हैं. जिसका लाभ उठाकर वे खुद को आर्थिक रूप से मजबूत बना रहे हैं और आत्मनिर्भर भी बन रहे हैं.