किन्नौर का मूरंग गांव बना प्राकृतिक खेती का मॉडल, किसानों ने लिया टिकाऊ खेती का संकल्प

हिमाचल प्रदेश के किन्नौर जिले का मूरंग गांव अब प्राकृतिक खेती का एक प्रेरणादायक मॉडल बन रहा है. यहां के किसानों ने रासायनिक खेती छोड़कर टिकाऊ और पर्यावरण के अनुकूल खेती की ओर कदम बढ़ाया है.

धीरज पांडेय
नोएडा | Updated On: 10 Jun, 2025 | 05:11 PM

हिमाचल प्रदेश के किन्नौर जिले का मूरंग गांव अब प्राकृतिक खेती के क्षेत्र में नई पहचान बना रहा है. विकसित कृषि संकल्प अभियान-2025 के तहत यहां किसानों के लिए एक जागरूकता और प्रशिक्षण शिविर का आयोजन किया गया. यह कार्यक्रम डॉ. यशवंत सिंह परमार औद्यानिकी एवं वानिकी विश्वविद्यालय, नौणी के कृषि विज्ञान केंद्र किन्नौर द्वारा आयोजित किया गया.

यह गांव समुद्र तल से काफी ऊंचाई पर स्थित है, लेकिन इसके बावजूद वहां के किसानों ने पर्यावरण के अनुकूल खेती की ओर कदम बढ़ाए हैं. इस शिविर में न केवल किसान, बल्कि स्कूल के छात्र, ग्राम पंचायत के सदस्य और भारत-तिब्बत सीमा पुलिस (ITBP) के अधिकारी और जवान भी शामिल हुए. इस कार्यक्रम का आयोजन ITBP के डिप्टी कमांडेंट अंकुश के सहयोग से किया गया. उन्होंने कहा कि दूरदराज के गांवों के विकास में सुरक्षा बल और स्थानीय लोगों के बीच सहयोग बहुत जरूरी है.

मूरंग के 50 से ज्यादा किसान बने प्राकृतिक खेती के उदाहरण

कृषि विज्ञान केंद्र के प्रभारी डॉ. प्रमोद शर्मा ने कहा कि इस क्षेत्र की संवेदनशील पारिस्थितिकी को बचाने का एकमात्र रास्ता प्राकृतिक खेती है. उन्होंने बताया कि मूरंग के 50 से अधिक किसान अब पूरी तरह से रसायनमुक्त खेती की ओर बढ़ चुके हैं. इससे न केवल पर्यावरण की रक्षा हो रही है, बल्कि किसानों की आमदनी और मिट्टी की उर्वरता भी बढ़ रही है.

मधुमक्खी पालन और रोग नियंत्रण की जैविक विधियां

कार्यक्रम में कीट वैज्ञानिक डॉ. बुद्धि राम नेगी ने किसानों को मिट्टी आधारित मधुमक्खी पालन तकनीक की जानकारी दी, जिससे परागण और शहद उत्पादन में इजाफा हो सके. वहीं पादप रोग विशेषज्ञ डॉ. डी.पी. भंडारी ने सेब की बागवानी में बिना रसायन के रोग नियंत्रण के आधुनिक तरीकों को साझा किया. यह प्रशिक्षण किसानों को जैविक विकल्प अपनाने में मदद करेगा.

ग्राम पंचायत और विभागों का तकनीकी सहयोग

बागवानी विभाग और कृषि प्रौद्योगिकी प्रबंधन अभिकरण के अधिकारियों ने उपस्थित किसानों को सरकारी योजनाओं और सहायता कार्यक्रमों की जानकारी दी. वहीं, ग्राम प्रधान अनूप नेगी ने बताया कि प्राकृतिक खेती ने गांव की मिट्टी को पुनर्जीवित किया है और अब किसान केवल उपजकर्ता नहीं, बल्कि प्रकृति के संरक्षक बन चुके हैं.

संकल्प और सफलता की मिसाल बना मूरंग

कार्यक्रम का समापन प्रेरणादायक संकल्प के साथ हुआ, जिसमें किसानों ने टिकाऊ कृषि अपनाने का वादा किया. सेब उत्पादक लोकेन्दर, जो पिछले 10 वर्षों से प्राकृतिक खेती कर रहे हैं, उन्होंने बताया कि इससे उत्पादन लागत घटी है और क्वालिटी में इजाफा हुआ है. ऐसे में किसानों ने सामूहिक रूप से यह निश्चय किया कि मूरंग को हिमालयी क्षेत्र का पहला प्राकृतिक खेती आदर्श गांव बनाया जाएगा.

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Published: 10 Jun, 2025 | 05:11 PM

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