Delhi air pollution: एक दिन पहले दिल्ली सरकार के पर्यावरण मंत्री मनजिंदर सिंह सिरसा ने प्रेस कॉन्फ्रेंस की. यह बताने के लिए दिल्ली में दमघोंटू धुआं पटाखों की वजह से नहीं है. यह धुआं तो पंजाब की वजह से है. वहां पराली जलाई जा रही है. हवा की गति और दिशा तय करती है कि धुआं कितने दिन में पंजाब से दिल्ली पहुंचेगा. पहुंचेगा भी या नहीं. क्योंकि दिशा अलग हुई तो धुआं दिल्ली की जगह पाकिस्तान की तरफ जाएगा. हवा का रुख दिल्ली की तरफ हुआ तो करीब एक से तीन दिन के भीतर धुआं दिल्ली पहुंचता है. 20 अक्टूबर को दिवाली थी. यानी 17 से 19 तारीख के बीच पराली का धुआं पंजाब से उठकर दिल्ली पहुंचा होगा. 17 को पराली जलाने के 20 मामले थे. 18 को 33 और 19 को 67 मामले सामने आए. सवाल यही है कि क्या इन्हीं मामलों ने दिल्ली को धुआं-धुआं कर दिया है?
यह लगभग हर साल होता है. दिवाली के आसपास प्रदूषण बढ़ता है और उसके बाद बताया जाता है कि पराली की वजह से दिल्ली की हवा खराब हुई है. आम आदमी पार्टी की सरकार थी तब पंजाब को दोष नहीं दिया जाता था. क्योंकि दोनों जगह एक ही पार्टी की सरकारें थीं. जब पंजाब में कांग्रेस सरकार थी, तो आप और बीजेपी दोनों के निशाने पर पंजाब होता था. अब दिल्ली में बीजेपी और पंजाब में आप सरकार है, तो एक बार फिर निशाने पर पंजाब है.
किस राज्य में कितने आए पराली जलाने के मामले
यह सही है कि पंजाब में पराली जल रही है. आईसीएआर का डेटा देखा जाए तो 15 सितंबर से 21 अक्टूबर के बीच 1729 मामले सामने आए हैं. ये छह राज्यों का डेटा है. इसमें पंजाब में अकेले 415 मामले हैं. हालांकि यह भी सही है कि पंजाब में ज्यादा पराली उन इलाकों में जली है, जो पाकिस्तान के करीब हैं और दिल्ली से काफी दूर हैं. लेकिन इस बात में कोई शक नहीं कि पराली जल रही है. हरियाणा ने पिछले साल भी बहुत अच्छी तरह कंट्रोल किया था. इस बार भी सिर्फ 55 मामले सामने आए हैं. लेकिन इसके बाद का आंकड़ा ऐसा है, जो सवाल खड़ा करता है कि सिरसा साहब ने वहां के डेटा पर बात क्यों नहीं की. उत्तर प्रदेश में सबसे ज्यादा 660 मामले सामने आए हैं.
दिलचस्प बात यह है कि मध्य प्रदेश में मामले बढ़े हैं. मध्य प्रदेश में 15 सितंबर से 21 अक्टूबर के बीच पराली के कुल 343 मामले आए हैं, जो पंजाब से बहुत कम नहीं हैं. इस साल अप्रैल-मई में पराली जलाने की जो घटनाएं सामने आई थीं, उनमें मध्य प्रदेश सबसे आगे था. तब पंजाब में 1 अप्रैल से 7 मई तक 2238 मामले सामने आए थे. मध्य प्रदेश में 31,413 घटनाएं हुईं और उत्तर प्रदेश में 11,408.
अप्रैल-मई में भी जलाई जाती है पराली
यह ध्यान रखें कि पराली साल में दो बार जलाई जाती है. ध्यान सिर्फ एक बार जाता है, क्योंकि उसी समय हवा में नमी और भारीपन की वजह से धुआं जल्दी छंटता नहीं है. यह अक्टूबर-नवंबर का समय होता है. दिवाली भी इसी समय होती है, तो पटाखों का धुआं भी इसमें मिल जाता है. अप्रैल-मई में जब पराली जलती है, तो गर्मियां होती हैं. हवा तेज होती है, तो माहौल से धुआं जल्दी छंट जाता है.
यूपी में चार गुना अधिक मामले पर नहीं होती चर्चा
लेकिन यहां बात माहौल की नहीं, पराली जलाने की घटनाओं की है. अगर मध्य प्रदेश में पंजाब के मुकाबले लगभग 15 गुना ज्यादा पराली जलाई गई, तो वहां की बात क्यों नहीं होती. अगर उत्तर प्रदेश में चार गुना से ज्यादा पराली जली तो वहां की बात क्यों नहीं होती. अगर वाकई पराली जलाने की घटनाओं पर काबू पाना है और प्रदूषण को नियंत्रित करना है, तो सही वजह पर काम करना चाहिए. सिर्फ इस वजह से चीजों को नजरअंदाज करेंगे कि दोनों जगह एक ही पार्टी की सरकार है, तो कभी समस्या का हल नहीं ढूंढा जा सकेगा.