भारत आलू उत्पादन के मामले में आने वाले कुछ वर्षों में चीन को पीछे छोड़ देगा. ये दावा पेरू स्थित इंटरनेशनल पोटैटो सेंटर (CIP) के वैज्ञानिकों ने किया है. CIP के मुताबिक, भारत जल्द ही चीन को पीछे छोड़कर दुनिया का सबसे बड़ा आलू उत्पादक देश बन सकता है. विशेषज्ञों का कहना है कि फिलहाल भारत में हर साल लगभग 600 लाख टन आलू पैदा होता है, जो 2050 तक बढ़कर 1000 लाख टन तक पहुंच सकता है.
द हिन्दू की रिपोर्ट के मुताबिक, ‘भारत और दक्षिण एशिया में कंद और जड़ वाली फसलों पर अनुसंधान’ विषय पर एक सेमिनार आयोजित किया गया था. सेमिनार को संबोधित करते हुए CIP बोर्ड की चेयरपर्सन हेलेन हैम्बली ओडेम ने कहा कि भारत के साथ संस्था की 50 साल की साझेदारी ने देश को दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा आलू उत्पादक बनने में अहम भूमिका निभाई है. उन्होंने कहा कि भारत में आलू उत्पादन में बढ़ोतरी की बहुत अधिक उम्मीदें हैं. इसके पास आलू उत्पादन में पहला स्थान हासिल करने की पूरी क्षमता है.
उन्होंने यह भी कहा कि भारत के पास केवल आलू ही नहीं, बल्कि शकरकंद और अन्य कंद फसलों में भी बड़ी संभावनाएं हैं. ये फसलें किसानों को रोजगार, ग्रामीण विकास, पोषण, महिलाओं को सशक्त करने और युवाओं को कृषि से जोड़ने में मदद करेंगी. प्रो. ओडेम ने कहा कि इन फसलों से प्राइवेट सेक्टर, स्टार्टअप, सहकारी संस्थाएं और किसान उत्पादक संगठनों के साथ नई वैल्यू चेन पार्टनरशिप के मौके बनेंगे. इससे जड़ एवं कंद फसलों की भागीदारी को और मजबूत किया जा सकेगा.
आय सुरक्षा और पोषण सुरक्षा सुनिश्चित होगी
उन्होंने जोर देकर कहा कि कंद फसलें जलवायु परिवर्तन के प्रति काफी सहनशील होती हैं और प्राकृतिक संसाधनों, खासकर पानी के समझदारी से इस्तेमाल को बढ़ावा देती हैं. इस कार्यक्रम में केंद्रीय कृषि सचिव देवेश चतुर्वेदी ने कहा कि सरकार ने कृषि में विज्ञान और नवाचार के लिए निवेश बढ़ाया है, ताकि कृषि विकास को गति मिल सके. उन्होंने कहा कि भारत को एक साथ खाद्य सुरक्षा, आय सुरक्षा और पोषण सुरक्षा सुनिश्चित करनी होगी. साथ ही जलवायु परिवर्तन की बढ़ती चुनौतियों का भी सामना करना होगा.
कृषि बनेगी देश की अर्थव्यवस्था का प्रमुख इंजन
कृषि सचिव देवेश चतुर्वेदी ने कहा कि आलू और अन्य कंद फसलों, खासकर शकरकंद पर और अधिक साझा शोध की जरूरत है. नीति आयोग के सदस्य रमेश चंद ने कहा कि सरकार का विकास मॉडल कृषि केंद्रित है और कृषि को देश की अर्थव्यवस्था का प्रमुख इंजन माना जा रहा है.