रबी बुवाई में हो गई है देरी तो गेहूं की जगह करें इस फसल की खेती, कम लागत में होगी बंपर पैदावार

जौ की खेती शुरू करने से पहले खेत की अच्छी तरह जुताई करके मिट्टी को भुरभुरा बनाना जरूरी है. फिर पाटा लगाकर खेत की नमी को सुरक्षित किया जाता है. जौ की अच्छी किस्मों  में RD-2715, RD-2794, RD-2786, RD-2907 और RD-2660 सबसे ज्यादा उपयोगी मानी जाती हैं.

Kisan India
नोएडा | Published: 8 Dec, 2025 | 02:22 PM

Agriculture News: मध्य प्रदेश, हरियाणा, पंजाब और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में गेहूं सहित रबी फसलों की बुवाई लगभग पूरी हो गई है. लेकिन कई किसान अभी भी गेहूं, चना और मसूर की बुवाई नहीं कर पाए हैं. ऐसे में इन किसानों की चिंता बढ़ गई है कि इनकी जमीन रबी सीजन में खाली रह जाएगी. पर ऐसे किसानों को अब चिंता करने की जरूरत नहीं है. आज हम कुछ ऐसे वैकल्पिक फसलों के बारे में चर्चा करने जा रहे हैं, जिसकी बुवाई किसान अभी भी कर सकते हैं. इससे किसानों की कम लागत में ही अच्छी पैदावार मिलेगी.

कृषि एक्सपर्ट के मुताबिक, जिन किसानों ने अभी तक गेहूं, चना और मसूर  की बुवाई नहीं की है, उनके लिए जौ एक अच्छा वैकल्पिक फसल हो सकती है. कृषि एक्सपर्ट के अनुसार, जौ की बुवाई का सही समय दिसंबर के पहले पखवाड़े से जनवरी के मध्य तक होता है. इस समय बोए गए जौ में दाना मोटा बनता है और उत्पादन भी अच्छा मिलता है. सबसे बड़ी बात यह है कि जौ कम लागत और कम पानी में भी गेहूं जितना फायदा दे सकता है.

ये हैं जौ की उन्नत किस्म

ऐसे जौ की खेती शुरू करने से पहले खेत की अच्छी तरह जुताई करके मिट्टी को भुरभुरा बनाना जरूरी है. फिर पाटा लगाकर खेत की नमी को सुरक्षित किया जाता है. जौ की अच्छी किस्मों  में RD-2715, RD-2794, RD-2786, RD-2907 और RD-2660 सबसे ज्यादा उपयोगी मानी जाती हैं. बीज उपचार के लिए किसान फिप्रोनिल 5 SC की 6 ml मात्रा प्रति किलो बीज की दर से इस्तेमाल कर सकते हैं. वहीं, ढीले स्मट रोग से बचाव के लिए मैनकोजेब 2.5 ग्राम या थीरम 3 ग्राम प्रति किलो की दर से बीज उपचारित कर सकते हैं.

इस तरह करें बीजों का उपचार

वहीं, खाद प्रबंधन में प्रति बीघा 20 से 25 किलो नाइट्रोजन और 15 किलो फास्फोरस अच्छा परिणाम देता है. सिंचाई की बात करें तो पहली सिंचाई  बुवाई के 25 दिन बाद और दूसरी बालियां निकलते समय करनी चाहिए. इससे फसल मजबूत होती है और उत्पादन भी बढ़ता है. विशेषज्ञों के मुताबिक, जौ की खेती गेहूं की तुलना में लगभग 30 फीसदी कम लागत में हो जाती है. इसकी मांग भी लगातार बढ़ रही है, क्योंकि इसका इस्तेमाल बीयर उद्योग, दलिया और पशु आहार में किया जाता है. एक बीघा में 8 से 10 क्विंटल तक उत्पादन मिल जाता है, जो किसानों के लिए अच्छा मुनाफा देता है.

कीट प्रबंधन है बहुत जरूरी

एक्सपर्ट का कहना है कि अच्छी पैदावार के लिए प्रमाणित बीज, समय पर सिंचाई और सही कीट प्रबंधन जरूरी है. जिन किसानों की बुवाई देर से शुरू की है, उनके लिए जौ की खेती एक बेहतरीन और मुनाफेदार विकल्प बन सकती है.

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