पंजाब के दोआबा क्षेत्र के मशहूर लाल मिट्टी वाले डोना बेल्ट जो कभी खरबूज की खेती के लिए जाना जाता है, अब उन इलाकों में इसके रकबे में भारी गिरावट आई है. किसान अब खरबूज की खेती से दूरी बना रहे हैं. खास कर शाहकोट, लोहीं, कपूरथला और सुल्तानपुर लोधी में खरबूज की खेती तेजी से घटी है. ऐसे में घटती खेती को बचाने के लिए पंजाब एग्रीकल्चरल यूनिवर्सिटी (PAU) ने खरबूज की एक नई और किफायती हाइब्रिड किस्म ‘पंजाब अमृत’ तैयार की है.
PAU के कुलपति ने कपूरथला का दौरा किया और किसानों को इस नई खरबूज की किस्म को अपनाने के लिए प्रोत्साहित किया. कभी कपूरथला जिले में 2,500 हेक्टेयर में खरबूज उगाया जाता था, लेकिन अब यह घटकर सिर्फ 900 हेक्टेयर रह गया है. साल 2014-15 की तुलना में अब उत्पादन आधे से भी कम हो गया है.
इन वजहों से किसान कर रहे मक्के की खेती
कहा जा रहा है कि खरबूज के महंगे बीज, जलवायु परिवर्तन और फसल में लगने वाली बीमारी (ब्लाइट) की वजह से किसान मक्का की खेती की ओर मुड़ गए हैं. कपूरथला, शाहकोट और रूपेवाल की धवाणा (खरबूजा) मंडियां अब सुनसान नजर आने लगी हैं. यही वजह है कि PAU इस गिरावट को रोकने और किसानों में फिर से लाल मिट्टी वाले इलाकों में खरबूज उगाने का जोश जगाने के लिए पूरी कोशिश कर रहा है.
कार्यक्रम में 70 किसान हुए शामिल
दरअसल, रविवार को कृषि विज्ञान केंद्र, कपूरथला ने पंजाब एग्रीकल्चरल यूनिवर्सिटी (PAU), लुधियाना के सब्जी विज्ञान विभाग के साथ मिलकर एक फील्ड डे का आयोजन किया. यह कार्यक्रम कपूरथला के बरिंदपुर गांव में ईशा सिंह ढोट के खेत पर हुआ, जहां PAU के कुलपति डॉ. सतबीर सिंह गोसल पहली बार पहुंचे. इस दौरान PAU की नई खरबूज किस्म ‘पंजाब अमृत’ को प्रमोट किया गया. पास के गांवों से 70 से ज्यादा किसान इसमें शामिल हुए.
पंजाब अमृत सबसे बेहतर
कार्यक्रम में ‘पंजाब अमृत’ और महंगे बीज वाली किस्म ‘बॉबी’ की स्टॉल्स एक साथ लगाई गईं, ताकि किसान इन दोनों के स्वाद, आकार, भंडारण क्षमता और उत्पादन की तुलना कर सकें. पंजाब अमृत को इन सभी मामलों में बेहतर बताया गया. कृषि विज्ञान केंद्र, कपूरथला के ट्रेनिंग डायरेक्टर डॉ. हरिंदर सिंह ने कहा कि साल 2014-15 में इस इलाके में खरबूज की खेती चरम पर थी. उस समय सुनेहरी, मधु और हरा मधु जैसी किस्में ज्यादा पसंद की जाती थीं.
10 साल में तैयारी हुई ‘पंजाब अमृत’ किस्म
उन्होंने कहा कि 2019 के आस-पास PAU ने मीठी किस्म ‘बॉबी’ तैयार की, जिसे किसानों ने तेजी से अपनाया और करीब 70 फीसदी क्षेत्र में इसकी खेती शुरू कर दी. लेकिन बॉबी बीज की बढ़ती कीमतों ने किसानों को मजबूर कर दिया कि वे मक्का की तरफ लौटें. इसी समस्या के समाधान के लिए PAU ने करीब 10 साल पहले से ‘पंजाब अमृत’ किस्म पर काम शुरू किया था. इसे डॉ. सतपाल शर्मा (प्रमुख, सब्जी विज्ञान विभाग) की देखरेख में विकसित किया गया. आज का फील्ड डे इसी किस्म को किसानों तक पहुंचाने की एक कोशिश थी.