देश में खेती का सीजन जोरों पर है और किसानों की खाद की जरूरत भी तेजी से बढ़ी है.इस साल अप्रैल से जून के बीच भारत में रासायनिक खादों की बिक्री 13 फीसदी बढ़कर 121.19 लाख टन तक पहुंच गई है. यह पिछले साल की समान अवधि में 107.48 लाख टन थी. लेकिन, हैरानी की बात यह है कि इस दौरान खाद का उत्पादन और आयात दोनों ही घटे हैं. ऐसे में कई जगहों पर किसानों को खाद की कमी का सामना करना पड़ा.
आयात और उत्पादन में कमी
सरकारी आंकड़ों के अनुसार, कुल खाद आयात में 13.2 फीसदी की गिरावट आई है. सबसे ज्यादा गिरावट MOP (पोटाश) के आयात में देखी गई, जो 81 फीसदी तक घट गया. उधर, यूरिया और DAP जैसे जरूरी खादों के आयात में भी कमी आई. वहीं, देश में खाद का उत्पादन भी 3.8 फीसदी कम रहा. खासकर यूरिया का उत्पादन 10 फीसदी घटा.
फिर भी बिक्री क्यों बढ़ी?
बिसनेस लाइन की खबर के अनुसार, खरीफ सीजन के दौरान किसानों ने समय पर खाद खरीदने के लिए तेजी दिखाई. यूरिया की बिक्री 69.99 लाख टन पहुंच गई, जो पिछले साल से 12.3 फीसदी ज्यादा है. कॉम्प्लेक्स खादों की मांग भी 34 फीसदी बढ़ी. हालांकि, DAP की बिक्री में 16.7 फीसदी की गिरावट आई और इसी को लेकर सबसे ज्यादा शिकायतें भी दर्ज हुईं.
रबी में फिर न हो संकट
विशेषज्ञों का कहना है कि खरीफ सीजन तो जैसे-तैसे निकल गया, लेकिन अगर अभी से योजना नहीं बनी तो रबी सीजन में खाद की किल्लत और बढ़ सकती है. कई राज्यों ने खाद खरीद पर रोजाना सीमा तय कर दी थी, जिससे जून में किसानों में घबराहट का माहौल बन गया और ‘पैनिक बाइंग’ शुरू हो गई.
बारिश बनी राहत की वजह
भारतीय मौसम विभाग (IMD) के मुताबिक, 1 जून से 4 अगस्त के बीच देशभर में सामान्य से 4 फीसदी अधिक वर्षा रिकॉर्ड की गई है. इस अतिरिक्त बारिश से खरीफ फसलों की बुवाई में तेजी आई और खेतों की नमी में सुधार हुआ, जिससे खेती की स्थिति भी बेहतर हुई है. लेकिन बारिश की यह राहत अपने साथ एक नई चुनौती भी लेकर आई है खाद की बढ़ती मांग.
वहीं, अगर इसी तरह रबी सीजन में भी बुवाई क्षेत्र बढ़ता है और खाद की मांग और तेज होती है, तो मौजूदा स्तर पर की गई तैयारियां नाकाफी साबित हो सकती हैं. ऐसे में खाद का उत्पादन तुरंत बढ़ाना, समय पर कच्चे माल की आपूर्ति सुनिश्चित करना और लॉजिस्टिक चैन को दुरुस्त करना जरूरी हो गया है. यह कदम किसानों को भविष्य की परेशानियों से बचाने में अहम भूमिका निभा सकते हैं.