देश के कई हिस्सों में इस बार किसानों की खेती की दिशा कुछ बदली-बदली नजर आ रही है. खासकर गुजरात जैसे कपास के बड़े राज्य में इस बार कपास की जगह तिलहन फसलें जैसे मूंगफली और सोयाबीन को ज्यादा तरजीह दी जा रही है. इसका असर साफ तौर पर कपास के घटते रकबे में दिखाई दे रहा है.
गुजरात के किसानों ने क्यों छोड़ी कपास?
गुजरात, जो देश का सबसे बड़ा कपास उत्पादक राज्य है, वहां इस बार कपास की बुवाई करीब 13 फीसदी कम हुई है. अब तक केवल 20.35 लाख हेक्टेयर में ही कपास बोई गई है, जबकि पिछले साल इस समय तक यह आंकड़ा 23.35 लाख हेक्टेयर था. इसकी बड़ी वजह यह है कि किसानों को अब मूंगफली और सोयाबीन जैसी फसलें ज्यादा मुनाफे वाली लग रही हैं.
किसानों का कहना है कि मूंगफली कम समय में तैयार हो जाती है और उसका समर्थन मूल्य (MSP) भी अच्छा है. वहीं, कपास की फसल में मजदूरों की कमी और लागत ज्यादा होने से किसान परेशान थे. ऐसे में मूंगफली और सोयाबीन ने उन्हें बेहतर विकल्प दिखाया.
दूसरे राज्यों ने संभाली कमान
हालांकि गुजरात में कपास की बुवाई में गिरावट आई है, लेकिन देश के बाकी हिस्सों जैसे कर्नाटक, तेलंगाना और आंध्र प्रदेश में कपास की बुवाई में बढ़ोतरी देखी गई है. कृषि मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक, 1 अगस्त तक देशभर में कुल 105.87 लाख हेक्टेयर में कपास बोई जा चुकी है. यह आंकड़ा पिछले साल के 108.43 लाख हेक्टेयर से थोड़ा कम जरूर है, लेकिन बाकी राज्यों की हिस्सेदारी इसे संतुलित कर सकती है.
कर्नाटक में दिखी तेजी
कर्नाटक में इस बार कपास का रकबा 7.5 लाख हेक्टेयर तक पहुंच गया है, जबकि पिछले साल इसी समय यह 6.4 लाख हेक्टेयर था. यहां समय पर बारिश ने भी फसल की स्थिति को बेहतर बनाया है. यही हाल तेलंगाना और आंध्र प्रदेश में भी है.
महाराष्ट्र और तेलंगाना का हाल
महाराष्ट्र में अब तक 38.01 लाख हेक्टेयर में कपास की बुवाई हो चुकी है, जो सामान्य रकबे (42.47 लाख हेक्टेयर) का लगभग 90 फीसदी है.
तेलंगाना में भी बुवाई तेजी से चल रही है. अब तक यहां 43.28 लाख एकड़ में कपास बोया जा चुका है. हालांकि यह अभी भी राज्य के सामान्य रकबे (48.93 लाख एकड़) से थोड़ा कम है.
कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि गुजरात के किसानों ने इस बार सोच-समझकर मूंगफली और सोयाबीन को चुना है. वहीं, देश के दूसरे हिस्सों ने कपास की खेती में मजबूती दिखाई है. आने वाले महीनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि किसानों का यह बदलाव बाजार और कीमतों पर कैसा असर डालता है.