किसान अपनी फसलों के अच्छे विकास के लिए बाजार से कई तरह के केमिकल खादों को खरीद कर फसलों पर उनका छिड़काव करते हैं. लेकिन आज के समय में इन केमिकल खादों के जरूरत से ज्यादा इस्तेमाल के कारण, न केवल फसल बल्कि खेत की मिट्टी और वातावरण दोनों को ही नुकसान पहुंच रहा है. ऐसे में किसान आसानी से घर में जैविक खाद तैयार कर सकते हैं जो कि फसलों के लिए रामबाण का काम करती हैं. खबर में आगे बात करेंगे कि सरसों की खली से जैविक खाद कैसे बनाई जा सकती है.
सरसों की खली से खाद बनाने का विधि
पाउडर के रूप में खेतों में डालें
सरसों की खली को सीधे खाद के रूप में खेतों में डाला जा सकता है. सरसों की खली को पीसकर पाउडर के रूप में इस्तेमाल कर सकते हैं. सबसे पहले सरसों की खली को पीसकर पाउडर बना लें. इस पाउडर को बुवाई या रोपाई से 8 से 10 दिन पहले मिट्टी में मिलाएं. एक पौधे के लिए 100 से 200 ग्राम खली और प्रति बीघा 15 से 20 किग्रा खली पर्याप्त होती है. इस तरह से इस जैविक खाद की मदद से फसलों में नाइट्रोजन और फॉस्फोरस की कमी को पूरा किया जा सकता है.
खली के घोल से बनाएं खाद
सरसों की खली से खाद बनाने के लिए आप इसका घोल भी बना सकते हैं. इसके लिए आपको 1 किग्रा सरसों की खली को 10 लीटर पानी में डालना है. इसके बाद इस मिश्रण को 4 से 5 दिन के लिए ढककर रख दें ताकि ये सड़ सके. 5 दिन बाद इस मिश्रण को छान लें और प्रति लीटर पानी में आधा लीटर घोल मिलाकर पौधों की जड़ों में डालें. इस घोल का इस्तेमाल करते समय आपको ध्यान रखना होगा कि घोल बहुत गाढ़ा न हो क्योंकि इससे पौधों को जलन हो सकती है. साथ ही घोल को जड़ों पर ही डालें, पत्तियों पर न डालें.
कमपोस्ट में मिलाकर कर सकते हैं इस्तेमाल
आप चाहें तो सरसों की खली को गोबर की खाद या कम्पोस्ट में मिलाकर भी इस्तेमाल कर सकते हैं. इसके लिए आप 10 किग्रा गोबर की खाद में 2 किग्रा पिसी हुई खली मिलाएं. इस मिश्रण को 10 से 15 दिन के लिए ढककर रख दें. इसके बाद इसे खेत या गमलों में डालकर इस्तेमाल करें.
क्या हैं इस खाद के फायदे
बात करें सरसों की खली से बनी जैविक खाद के फायदों की तो बता दें कि इसके इस्तेमाल से मिट्टी में जैविक पदार्थों की मात्रा बढ़ जाती है. ये खाद फसलों को धीरे-धीरे लेकिन लंबे समय तक पोषण देती है. इसके इस्तेमाल से फूलों और सब्जियों के पौधों में भी वृद्धि होती है. इसके साथ ही इसमें कुछ कीटनाशक गुण भी होते हैं जिनके कारण कीड़े मिट्टी से दूर रहते हैं.