साबूदाना कैसे बनता है? टैपिओका की खेती से लेकर दाने तक की पूरी प्रक्रिया है बेहद मजेदार

क्या आप जानते हैं कि यह छोटा-सा सफेद दाना असल में एक कंद वाली फसल टैपिओका (Tapioca) से बनता है, जिसे कसावा (Cassava) भी कहा जाता है? दक्षिण अमेरिका से आई यह फसल आज भारत में भी बड़ी मात्रा में उगाई जाती है, खासतौर पर केरल, तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश जैसे राज्यों में.

Kisan India
नई दिल्ली | Published: 13 Nov, 2025 | 08:30 AM

Farming Tips: भारत में साबूदाना हर घर की रसोई में इस्तेमाल होता है, कभी व्रत का हल्का नाश्ता तो कभी खिचड़ी या पापड़ का अहम हिस्सा. लेकिन क्या आप जानते हैं कि यह छोटा-सा सफेद दाना असल में एक कंद वाली फसल टैपिओका (Tapioca) से बनता है, जिसे कसावा (Cassava) भी कहा जाता है? दक्षिण अमेरिका से आई यह फसल आज भारत में भी बड़ी मात्रा में उगाई जाती है, खासतौर पर केरल, तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश जैसे राज्यों में.

कसावा यानी टैपिओका

कसावा की खासियत यह है कि यह फसल अनुपजाऊ मिट्टी और कम वर्षा वाले इलाकों में भी अच्छी तरह पनप जाती है. यही वजह है कि यह कई देशों में करोड़ों लोगों के लिए मुख्य भोजन का स्रोत बन चुकी है. इसके पौधों की जड़ों में स्टार्च की बहुत अधिक मात्रा होती है, और यही स्टार्च साबूदाने की बुनियाद है. भारत में टैपिओका को अक्सर “गरीब किसान की फसल” भी कहा जाता है, क्योंकि इसे कम लागत और कम देखभाल में उगाया जा सकता है.

खेती की प्रक्रिया

टैपिओका की खेती बीजों से नहीं, बल्कि पौधे के तनों की कटिंग लगाकर की जाती है. इसके लिए 2 से 3 सेंटीमीटर मोटे और स्वस्थ तनों के ऊपरी हिस्से का चयन किया जाता है. लगभग 1520 सेंटीमीटर लंबाई की कटिंग तैयार की जाती है और उन्हें हल्के रासायनिक घोल में उपचारित करके 1 मीटर की दूरी पर रोप दिया जाता है.

रोपण के लगभग 15 दिनों बाद पौधे में नई पत्तिया निकलने लगती हैं और धीरे-धीरे पूरी फसल विकसित होती है. दिसम्बर का महीना रोपाई के लिए सबसे उपयुक्त माना जाता है.

खाद, मिट्टी और सिंचाई 

टैपिओका के लिए दोमट या हल्की रेतीली मिट्टी सबसे अच्छी मानी जाती है. इसकी खेती के लिए वर्मी कम्पोस्ट और ग्रीन खाद का उपयोग बेहद फायदेमंद होता है. रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग मिट्टी परीक्षण और कृषि विशेषज्ञों की सलाह के बाद ही करना चाहिए.

सिंचाई के लिए रोपण के तुरंत बाद हल्की सिंचाई करनी होती है. उसके बाद मौसम और मिट्टी की नमी के अनुसार पानी देना चाहिए. खरपतवार नियंत्रण के लिए निराई-गुड़ाई आवश्यक है, जिससे पौधों की वृद्धि पर कोई असर न पड़े.

फसल कटाई 

रोपाई के आठ महीने बाद तना कटाई के लिए तैयार हो जाता है, जबकि जड़ों की कटाई 12 महीने बाद की जाती है. इन्हीं जड़ों से आगे चलकर साबूदाना बनाने की प्रक्रिया शुरू होती है.

साबूदाना बनाने की पारंपरिक प्रक्रिया

कसावा की जड़ों से जब गूदा निकाल लिया जाता है, तो उसे बड़े बर्तनों में पानी के साथ 810 दिन तक भिगोकर रखा जाता है. यह प्रक्रिया कई बार दोहराई जाती है ताकि स्टार्च पूरी तरह से निकल जाए. इस तरह तैयार गूदे को मशीनों में डालकर छोटे-छोटे दानों के रूप में साबूदाना बनाया जाता है.

बाजार में आने से पहले इन दानों को ग्लूकोज और स्टार्च के हल्के पाउडर से पॉलिश किया जाता है, जिससे वे चमकदार और मुलायम दिखाई देते हैं.

पैकेजिंग और मार्केटिंग

तैयार साबूदाने को आमतौर पर प्लास्टिक पाउच में पैक किया जाता है, जिन पर कंपनी का नाम और लोगो छपा होता है. यह न केवल उत्पाद की पहचान बनाता है बल्कि बाजार में ब्रांड को भी बढ़ावा देता है. साबूदाना उद्योग आज ग्रामीण क्षेत्रों में छोटे स्तर पर रोजगार का बड़ा माध्यम बन चुका है.

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Published: 13 Nov, 2025 | 08:30 AM

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