Agriculture News: देश में यूरिया की कमी, डीलरों की मनमानी और सब्सिडी वाले उर्वरक के डायवर्जन जैसी लगातार उठ रही शिकायतों के बीच केंद्र सरकार अब उर्वरक वितरण प्रणाली में बड़े बदलाव की तैयारी में है. किसानों को उनकी खेती योग्य जमीन के मुताबिक ही यूरिया मिले, सरकार का यह कदम आने वाले महीनों में कृषि क्षेत्र में एक बड़ी नीतिगत क्रांति ला सकता है. उर्वरक सचिव रजत मिश्रा और केंद्रीय उर्वरक मंत्री जे.पी. नड्डा ने स्पष्ट संकेत दिए हैं कि मार्च 2026 तक यूरिया वितरण की नई व्यवस्था लागू हो जाएगी.
क्यों जरूरी पड़ा यह बदलाव?
बिजनेस लाइन की रिपोर्ट के अनुसार, पिछले कुछ महीनों में कई राज्यों से यूरिया की कमी की शिकायतें लगातार सामने आई थीं. हालांकि सरकार का कहना है कि देश में वास्तविक कमी नहीं है, समस्या जमीनी स्तर पर हो रही हेराफेरी और अवैध भंडारण की वजह से बढ़ी है.
सरकार के अनुसार कई किसान अपनी जरूरत से कहीं ज्यादा यूरिया खरीद लेते हैं, जिसका एक हिस्सा गैर-कृषि उपयोग में डायवर्ट हो जाता है. इससे असली किसानों तक सही मात्रा में उर्वरक पहुंच ही नहीं पाता. इसी समस्या का समाधान निकालने के लिए सरकार ने तय किया है कि भविष्य में यूरिया की खरीद किसान की जमीन के आकार से लिंक की जाएगी. जितनी कृषि भूमि, उतना ही यूरिया.
किसानों के लिए क्या बदलेगा?
केंद्र सरकार ने एक पायलट प्रोजेक्ट शुरू करने का निर्णय लिया है जिसमें यूरिया की खरीद का रिकॉर्ड सीधे किसान की भूमि-होल्डिंग से जोड़ा जाएगा. इससे यह साफ हो जाएगा कि किसान वास्तविक आवश्यकता के अनुसार उर्वरक खरीद रहा है या नहीं.
केंद्रीय मंत्री नड्डा ने कहा कि सब्सिडी वाले यूरिया का दुरुपयोग रोकने के लिए यह कदम बेहद जरूरी है. उन्होंने बताया कि खरीफ 2024 में भी एक किसान द्वारा एक महीने में यूरिया की खरीद पर अस्थायी सीमा लगानी पड़ी थी क्योंकि कई जगहों पर डीलरों द्वारा जमाखोरी बढ़ गई थी.
डायवर्जन रोकने के लिए कड़ा एक्शन
सरकार ने यूरिया के अवैध इस्तेमाल पर रोक लगाने के लिए पिछले सात महीनों में बड़े पैमाने पर कार्रवाई की है. कुल 5,371 उर्वरक कंपनियों और डीलरों के लाइसेंस रद्द किए जा चुके हैं और 649 एफआईआर दर्ज की गई हैं. सरकार का मानना है कि जब तक डीलरों द्वारा हो रही हेराफेरी नहीं रुकेगी, तब तक किसानों को यूरिया की ‘कमी’ का एहसास होता रहेगा.
फिक्स्ड कॉस्ट में बड़ा बदलाव, 30 यूरिया संयंत्र होंगे प्रभावित
उर्वरक सचिव रजत मिश्रा ने बताया कि 25 साल से लंबित पड़े गैस-आधारित यूरिया संयंत्रों के ‘फिक्स्ड कॉस्ट’ में भी अब संशोधन होने वाला है. ये लागत वेतन, मेंटेनेंस, कार्यशील पूंजी और उत्पादन के खर्च से जुड़ी होती है. कंपनियां काफी समय से इसकी समीक्षा की मांग कर रही थीं. सरकार इसे साल के अंत तक लागू करने पर विचार कर रही है. FAI का कहना है कि समय पर होने वाला यह बदलाव उद्योग के लिए नई ऊर्जा लेकर आएगा.
FAI ने भी रखी सुधारों की बड़ी मांग
फर्टिलाइजर एसोसिएशन ऑफ इंडिया ने सम्मेलन में कहा कि यूरिया, डीएपी और पोटाश के असंतुलित उपयोग ने मिट्टी की गुणवत्ता पर गंभीर असर डाला है. इसलिए नीति स्तर पर तुरंत बदलाव जरूरी हैं.
सब्सिडी में पारदर्शिता, GST इनपुट टैक्स क्रेडिट के रिफंड में आसानी और नए उत्पादों के लॉन्च की प्रक्रिया सरल करना भी उनकी प्रमुख मांगों में शामिल है.
मार्च 2026 से बदल जाएगा खेल
सरकार का मानना है कि नई नीति लागू होने के बाद—
- किसान सही मात्रा में ही यूरिया खरीदेंगे
- डायवर्जन और अवैध भंडारण लगभग खत्म हो जाएगा
- सब्सिडी का दुरुपयोग रुकेगा
- मिट्टी के स्वास्थ्य में सुधार आएगा
- उद्योग को स्थिरता मिलेगी
इन सभी सुधारों को मार्च 2026 तक चरणबद्ध तरीके से लागू करने का लक्ष्य रखा गया है. कृषि क्षेत्र में यह बदलाव किसानों और उद्योग दोनों के लिए बड़ी राहत लेकर आ सकता है.