केरल की मिट्टी और संस्कृति से नारियल का जुड़ाव सदियों पुराना है. इतिहासकारों के अनुसार, ‘केरल’ शब्द ही ‘केरा’ यानी नारियल के पेड़ से जुड़ा है. लेकिन आज केरल में कई परिवारों के पास नारियल का पेड़ नहीं है और कीमतें इतनी बढ़ गई हैं कि यह हर किसी के लिए सस्ता नहीं रह गया.
पिछले दो सालों में नारियल की कीमतें 15-20 रुपये से बढ़कर 45-50 रुपये तक पहुंच गई हैं. इसका मतलब है कि यदि एक किसान के पास 40 नारियल के पेड़ हैं और प्रत्येक पेड़ से 25 नारियल निकलते हैं, तो वह केवल 1,000 नारियल बेचकर 50,000 रुपये कमा सकता है. यह एक बड़ा अवसर है, लेकिन इसके पीछे कई चुनौतियां भी हैं.
उत्पादन में गिरावट
भारत में नारियल का उत्पादन 2021 में 2,07,360 लाख नारियल था, जिसमें से 69,420 लाख नारियल केरल से आते थे. लेकिन 2024-25 में उत्पादन घटकर 2,03,970 लाख हो गया और केरल का योगदान भी 56,120 लाख तक सीमित हो गया.
केरल में नारियल की खेती में कई समस्याएं सामने आ रही हैं. जलवायु परिवर्तन, कीट और रोग, किसान का उदासीन रवैया, पर्याप्त श्रम की कमी और जंगली जानवरों के हमले ने उत्पादन को प्रभावित किया है. खासकर लाल ताड़ की कीट और गैंडा-बीटल नारियल के पेड़ों के लिए बड़ा खतरा हैं.
किसान अक्सर ड्रॉफ्ट या हाइब्रिड नारियल के पौधों को अपनाते हैं, लेकिन कई बार रोग और कीट संक्रमण के कारण ये पौधे नष्ट हो जाते हैं. इसके अलावा, केरल के कुछ पहाड़ी क्षेत्रों में बंदरों का हमला भी उत्पादन घटा देता है.
बढ़ती मांग और उद्योगिक उपयोग
नारियल अब सिर्फ खाना बनाने के लिए नहीं, बल्कि कई उद्योगों में उपयोग हो रहा है. डेसिकेटेड नारियल, नारियल के चिप्स, टेंडर नारियल, नारियल का पाउडर और नारियल का तेल, इन सबकी मांग लगातार बढ़ रही है.
विशेष रूप से नारियल के शेल से सक्रिय कार्बन बन रहा है, जिसकी कीमत 2024 में 9 रुपये प्रति किलो थी, जो अब 32 रुपये तक पहुंच गई है. इसी तरह, नारियल के कोयले की कीमत 35 रुपये से बढ़कर 95 रुपये हो गई है.
टेंडर नारियल की मांग भी बढ़ी है. उत्तर भारत और पश्चिमी राज्यों में केरल से नारियल भेजा जा रहा है. गुजरात के व्यापारी भी केरल आकर बड़े पैमाने पर नारियल की खेती और निर्यात की योजना बना रहे हैं.
अंतरराष्ट्रीय बाजार और निर्यात
भारत ने 2024-25 में नारियल और उससे बने उत्पादों का 4,349.03 रुपये करोड़ का निर्यात किया, जो पिछले साल की तुलना में 25 फीसदी अधिक है. नारियल तेल, सक्रिय कार्बन, कोपरा, नारियल शेल चारकोल और डेसिकेटेड नारियल इन प्रमुख निर्यात उत्पादों में शामिल हैं.
नारियल की बढ़ती मांग को देखकर विशेषज्ञ मानते हैं कि यदि किसानों ने उत्पादन बढ़ाया और अंतरराष्ट्रीय बाजार में प्रतिस्पर्धा की, तो यह अवसर उनके लिए लाभकारी हो सकता है.
किसानों को क्या होगा फायदा?
हां, केरल के किसानों को नारियल की बढ़ती कीमतों से संभावित फायदा हो सकता है, लेकिन इसमें कुछ बातें ध्यान में रखना जरूरी हैं.
फायदा कैसे हो सकता है
उच्च आमदनी: नारियल की कीमतें 15 से 50 रुपये तक पहुंच गई हैं. इससे किसान कम पेड़ों से भी अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं. उदाहरण के लिए, 40 पेड़ों से 1,000 नारियल बेचकर 50,000 रुपये तक की कमाई संभव है.
बेहतर निवेश का मौका: ज्यादा आमदनी से किसान अपने खेतों में उर्वरक, सिंचाई और कीट नियंत्रण में निवेश कर सकते हैं, जिससे उत्पादन बढ़ सकता है.
मूल्य संवेदनशीलता: यदि किसान सीधे बाजार या निर्यात से जुड़े हैं, तो उन्हें अधिक कीमत का पूरा लाभ मिल सकता है.
क्या कीमतें स्थिर रहेंगी?
हालांकि वर्तमान कीमतें उच्च हैं, लेकिन यह स्थायी नहीं हैं. यदि कीमतें अधिक समय तक बनी रहती हैं, तो उद्योग और उपभोक्ता सस्ते विकल्पों की ओर मुड़ सकते हैं. विशेषज्ञों का मानना है कि अगले दो-तीन महीने में कीमतें उचित स्तर पर आ सकती हैं.
फिर भी, किसानों के लिए यह सुनहरा अवसर है कि वे स्थानीय नारियल के पेड़ों की देखभाल करें, उत्पादन बढ़ाएं और अंतरराष्ट्रीय बाजार में अपनी हिस्सेदारी मजबूत करें.