वैज्ञानिकों ने तैयार की अधिक पैदावार वाली धान की 2 नई किस्में, इस बीमारी का नहीं रहेगा खतरा

पालमपुर कृषि विश्वविद्यालय ने धान की दो नई किस्में विकसित की हैं, जिसका नाम हिम पालम धान-3 और धान-4 है. यो दोनों किस्में ब्लास्ट बीमारी के खिलाफ असरदार हैं.

वेंकटेश कुमार
नोएडा | Updated On: 9 Jun, 2025 | 01:01 PM

धान की खेती करने वाले किसानों के लिए खुशखबरी है. चौधरी सरवन कुमार हिमाचल प्रदेश कृषि विश्वविद्यालय, पालमपुर ने धान की दो ऐसी नई किस्में विकसित की हैं जो ज्यादा पैदावार देती हैं और ब्लास्ट बीमारी के खिलाफ मजबूत हैं. यानी अगर किसान धान की इन दो किस्मों की खेती करते हैं, तो उन्हें अच्छी पैदावर मिलेगी और फसल को ब्लास्ट बीमारी से भी छुटकारा मिलेगा.

द ट्रिब्यून की रिपोर्ट के मुताबिक, ब्लास्ट बीमारी एक फंगस के कारण होती है. फसल में इस बीमारी के लगने के बाद धान की पत्तियों, तनों और बालियों पर असर पड़ता है. इससे फसल की उपज काफी घट जाती है. ऐसे में एक्सपर्ट का कहना है कि इन दो किस्मों के आने से केवल हिमाचल प्रदेश के किसानों को ही फायदा नहीं होगा, बल्कि दूसरे राज्य के किसान भी इसका लाभ उठा पाएंगे. क्योंकि इस बीमारी से निपटना कृषि क्षेत्र के लिए एक बड़ी चुनौती रहा है.

ब्लास्ट बीमारी से होने वाले नुकसान में आएगी कमी

विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. नवीन कुमार ने इस सफलता के लिए मालण स्थित धान एवं गेहूं अनुसंधान केंद्र के वैज्ञानिकों की सराहना की है. प्रो. कुमार ने कहा कि ये नई किस्में आधुनिक कृषि तकनीक पर आधारित हैं और किसानों की जरूरतों को ध्यान में रखकर तैयार की गई हैं. इससे न सिर्फ राज्य की खाद्य सुरक्षा मजबूत होगी, बल्कि किसानों की आय भी बढ़ेगी, क्योंकि ब्लास्ट बीमारी से होने वाले नुकसान में कमी आएगी.

40 क्विंटल प्रति एकड़ मिलेगी उपज

कृषि विश्वविद्यालय पालमपुर द्वारा विकसित धान की दो नई किस्में हिम पालम धान-3 (HPR-2865) और हिम पालम धान-4 (HPR-3201) हैं. खास बात यह है कि इन दोनों किस्मों को राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर खेती के लिए मंजूरी मिल गई है. ये किस्में हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड के पहाड़ी इलाकों के लिए उपयुक्त मानी गई हैं. हिम पालम धान-3 एक मध्यम ऊंचाई वाली किस्म है, जिसमें लंबे और मोटे दाने होते हैं. इसकी औसतन उपज 38 से 40 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है.

120-130 दिनों में पक जाती हैं दोनों किस्में

वहीं, हिम पालम धान-4 में लंबे और पतले दाने होते हैं, जो बासमती जैसे लगते हैं और इसकी उपज 40 से 42 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक होती है. दोनों किस्में 120-130 दिनों में पक जाती हैं, जिससे ये स्थानीय मौसम के लिए बिलकुल अनुकूल हैं. कुलपति प्रो. नवीन कुमार ने कहा कि ये किस्में वर्षों की वैज्ञानिक रिसर्च, खेतों में बार-बार हुए परीक्षण और किसानों की भागीदारी का नतीजा हैं.

रासायनिक दवाओं की जरूरत कम होगी

कुलपति ने कहा कि इनकी खासियत है कि ये ब्लास्ट बीमारी से सुरक्षा, ज्यादा उत्पादन, कम समय में पकना और बाजार में पसंद किए जाने वाले दाने हैं. उन्होंने यह भी कहा कि बीमारी से बचाव की वजह से रासायनिक दवाओं की जरूरत कम होगी, जिससे किसानों की लागत घटेगी और खेती ज्यादा टिकाऊ और पर्यावरण के अनुकूल बनेगी.

Get Latest   Farming Tips ,  Crop Updates ,  Government Schemes ,  Agri News ,  Market Rates ,  Weather Alerts ,  Equipment Reviews and  Organic Farming News  only on KisanIndia.in

Published: 9 Jun, 2025 | 12:52 PM

किस देश को दूध और शहद की धरती (land of milk and honey) कहा जाता है?

Poll Results

भारत
0%
इजराइल
0%
डेनमार्क
0%
हॉलैंड
0%