अंतरिक्ष से लौटी लद्दाख की दो खास फसलें, अब शुरू होगी धरती पर खेती

जब ये बीज वापस धरती पर आए, तो वैज्ञानिकों ने उनका डीएनए, ढांचा और पौधे के अंदर होने वाले बदलावों की जांच शुरू कर दी. वे देखेंगे कि क्या अंतरिक्ष के कारण बीजों के अंदर कोई बदलाव आया है और इसका पौधे की बढ़वार और पोषण पर क्या असर पड़ा.

Kisan India
नई दिल्ली | Published: 11 Aug, 2025 | 12:45 PM

बरसों से अंतरिक्ष और कृषि के क्षेत्र में हो रहे शोध में अब एक नया और दिलचस्प अध्याय जुड़ गया है. हाल ही में लद्दाख की दो खास फसलें-सीबकथोर्न (Seabuckthorn) और हिमालयी बकव्हीट (Himalayan Buckwheat) के बीज अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (ISS) से भारत वापस लौटे हैं. ये बीज अमेरिका के क्रू-10 मिशन के जरिए अंतरिक्ष में भेजे गए थे, जहां उन्होंने अंतरिक्ष की अनूठी और चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों का सामना किया. इस यात्रा का मकसद था यह समझना कि कैसे ये खास फसलें अंतरिक्ष के कठोर माहौल में टिक सकती हैं और इससे हमें भविष्य के अंतरिक्ष मिशनों में खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने में मदद मिलेगी.

लद्दाख की फसलों का अंतरिक्ष सफर क्यों खास है?

लद्दाख एक ठंडा और कठोर इलाका है. यहां की फसलें बहुत खास होती हैं, क्योंकि वे बहुत मुश्किल मौसम में भी जीवित रह सकती हैं. वैज्ञानिकों ने इन्हीं ताकत के कारण सीबकथोर्न और हिमालयी बकव्हीट के बीज चुने. ये बीज अंतरिक्ष की अलग-अलग चुनौतियों जैसे कि गुरुत्वाकर्षण का कम होना, तेज विकिरण और तापमान के बड़े बदलावों को झेलते हैं. इससे यह पता चलेगा कि ये फसलें अंतरिक्ष की कठोर परिस्थिति में कैसे जीवित रह सकती हैं. इसका फायदा यह होगा कि भविष्य में लंबे अंतरिक्ष मिशनों में पौधे उगाकर खाना तैयार किया जा सके.

अंतरिक्ष में बीजों का अनुभव कैसा रहा?

अंतरिक्ष में बीजों को कई तरह की मुश्किलों का सामना करना पड़ा. वहां गुरुत्वाकर्षण बहुत कम होता है, जिसे हम वजनहीनता कहते हैं. साथ ही, अंतरिक्ष में विकिरण भी ज्यादा होता है जो पौधों के विकास को प्रभावित कर सकता है. वैज्ञानिक इन अनुभवों से यह सीखना चाहते हैं कि पौधे अंतरिक्ष में कैसे बढ़ते और फलते-फूलते हैं. इससे भविष्य में अंतरिक्ष में खेती करने में मदद मिलेगी, ताकि वहां रहने वाले लोगों के लिए खाना उपलब्ध हो सके.

बीजों की वापसी और आगे की तैयारी

जब ये बीज वापस धरती पर आए, तो वैज्ञानिकों ने उनका डीएनए, ढांचा और पौधे के अंदर होने वाले बदलावों की जांच शुरू कर दी. वे देखेंगे कि क्या अंतरिक्ष के कारण बीजों के अंदर कोई बदलाव आया है और इसका पौधे की बढ़वार और पोषण पर क्या असर पड़ा. इससे यह भी पता चलेगा कि धरती पर जिन जगहों की मिट्टी खराब है या वहां मौसम कठिन है, वहां कैसे बेहतर खेती की जा सकती है.

भारत की अंतरिक्ष-कृषि में बढ़ती भूमिका

यह प्रयोग सिर्फ लद्दाख की फसलों को दुनिया के सामने लाने का मौका नहीं है, बल्कि भारत की अंतरिक्ष और कृषि क्षेत्र में भी बढ़ती भागीदारी दिखाता है. वैज्ञानिक मानते हैं कि ऐसे प्रयोगों से हमें धरती पर भी मजबूत, पर्यावरण के अनुकूल और पौष्टिक फसलें उगाने में मदद मिलेगी. खासकर उन इलाकों में जहां सूखा, खराब मिट्टी या अन्य मुश्किलें खेती को रोकती हैं.

भविष्य में अंतरिक्ष खेती की संभावनाएं

ऐसे प्रयोगों से हम अंतरिक्ष में भी खेती कर सकेंगे और धरती पर भी नई तकनीकों और मजबूत फसलों का विकास कर पाएंगे. जैसे-जैसे हम मंगल और दूसरे ग्रहों की ओर बढ़ेंगे, वहां खेती के लिए इस तरह के शोध बहुत जरूरी होंगे. लद्दाख की ये फसलें इस दिशा में एक बड़ा कदम साबित होंगी.

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