केले की फसल को खा रहा रूट नॉट नेमाटोड, किसानों के लिए बढ़ा खतरा

तमिलनाडु के अध्ययन के अनुसार, केवल इस रोग के कारण पूवन किस्म की फसल में 30 फीसदी तक उपज घट सकती है. इस रोग में सूक्ष्म कीट जैसी सूत्रकृमि मिट्टी में रहते हुए केले के पौधों की जड़ों पर हमला करती है. इसके परिणामस्वरूप पौधों की वृद्धि रुक जाती है, पत्तियां पीली पड़ जाती हैं और फल छोटे या कम संख्या में आते हैं.

Kisan India
नई दिल्ली | Published: 5 Nov, 2025 | 03:03 PM

Banana Crop Protection: केला भारत में किसानों के लिए एक महत्वपूर्ण नकदी फसल है. इसकी खेती से उन्हें अच्छा लाभ मिलता है, लेकिन जैसे ही फसल बढ़ती है, कई बार उसे नुकसान पहुंचाने वाले रोग भी सामने आते हैं. उनमें सबसे खतरनाक रोग है ‘रूट नॉट नेमाटोड’. यह सूक्ष्म कीट जैसी सूत्रकृमि मिट्टी में रहते हुए केले के पौधों की जड़ों पर हमला करती है. इसके परिणामस्वरूप पौधों की वृद्धि रुक जाती है, पत्तियां पीली पड़ जाती हैं और फल छोटे या कम संख्या में आते हैं. तमिलनाडु के अध्ययन के अनुसार, केवल इस रोग के कारण पूवन किस्म की फसल में 30 फीसदी तक उपज घट सकती है.

रूट नॉट नेमाटोड रोग क्या है?

रूट नॉट नेमाटोड, मेलोइडोगाइन प्रजाति के सूक्ष्म सूत्रकृमि होते हैं. यह मिट्टी में रहकर केले की जड़ों में प्रवेश करते हैं और गांठें बना देते हैं. इन गांठों की वजह से जड़ों से पौधों को पोषक तत्व नहीं मिल पाते, जिससे पौधा कमजोर हो जाता है. पौधों की पत्तियां झड़ने लगती हैं, नया विकास रुक जाता है और फलों की गुणवत्ता गिर जाती है.

रोग की पहचान कैसे करें

इस रोग से प्रभावित पौधों की पहचान करना आसान है, यदि आप निम्न लक्षणों पर ध्यान दें:

  • पत्तियां हल्के पीले और झाड़ीदार दिखाई देती हैं.
  • पत्तियों के किनारे सूखने लगते हैं.
  • पौधे बौने रह जाते हैं और फल छोटे या कम संख्या में लगते हैं.
  • जड़ों पर गांठें बन जाती हैं, जिन्हें अनुदैर्ध्य काटने पर देखा जा सकता है.
  • नई जड़ों की शाखाएं संक्रमित जड़ों के ऊपर उग आती हैं.
  • माइक्रोस्कोप के जरिए मिट्टी और जड़ के नमूनों में सूत्रकृमियों की जांच भी की जा सकती है.

प्रभावी बचाव के उपाय

एकीकृत नेमाटोड प्रबंधन (INM)- Integrated Nematode Management अपनाना सबसे प्रभावी तरीका है. इसमें जैविक, भौतिक और रासायनिक उपायों का संतुलित उपयोग किया जाता है.

फसल चक्र अपनाएं- केले के खेतों को गन्ना, चना या धान जैसी फसलों के साथ चक्रित करें. इससे नेमाटोड का जीवनचक्र टूटता है और आबादी कम होती है.

प्रतिरोधी किस्मों का चयन- नेमाटोड-प्रतिरोधी केले की किस्में उगाना फसल को प्राकृतिक सुरक्षा देता है और संक्रमण की संभावना घटाता है.

जैविक उपाय- गेंदा, सरसों जैसी कवर फसलें नेमाटोड कम करने में मदद करती हैं. इसके अलावा जैव नियंत्रक जैसे पेसिलोमाइसिस लिलासिनस, ट्राइकोडर्मा, माइक्रोराईजा और ग्लोमस फैसिकुलेटम का प्रयोग भी फायदेमंद होता है.

मिट्टी सुधार और सूर्य की गर्मी- गर्मी में पारदर्शी प्लास्टिक से मिट्टी को ढककर सूर्य की गर्मी से नेमाटोड मारे जा सकते हैं. गहरी जुताई करके खेत को खाली रखना भी रोग नियंत्रण में मदद करता है.

रासायनिक नियंत्रण- रोपण के समय कार्बोफ्यूरान (10-20 ग्राम/पौधा) या नीम तेल (1-2 फीसदी) का प्रयोग किया जा सकता है. मोनोक्रोटोफॉस 5 फीसदी में 30 मिनट डुबोकर और 72 घंटे छाया में सुखाने से भी संक्रमण से बचाव होता है.

पौध सामग्री का उपचार- प्रत्यारोपण से पहले पौध सामग्री को जैव नियंत्रक या नेमाटाइसाइड से उपचारित करना चाहिए. कॉर्म को निम्बू सिडिन 1.5 फीसदी में 30 मिनट डुबोकर भी सुरक्षित रखा जा सकता है.

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