बंजर जमीन पर किसान करें इस शानदार फसल की खेती, भर-भर के मिलेगा तेल और मुनाफा

तारामीरा की सबसे बड़ी खूबी यह है कि इसे ऐसी जमीन पर भी उगाया जा सकता है जहां दूसरी फसलें उगाना मुश्किल हो. कई बार किसान के पास ऐसी बंजर या अनुपयोगी जमीन होती है, जिस पर कुछ भी नहीं उग पाता. वहां भी तारामीरा आसानी से पनप सकती है.

Kisan India
नई दिल्ली | Published: 16 Sep, 2025 | 12:46 PM

Tarameera Farming: सरसों के तेल की बढ़ती कीमतों ने इस समय आम लोगों की रसोई से लेकर किसानों के खेतों तक चिंता बढ़ा दी है. सरसों का उत्पादन घटने के कारण सरकार अब दूसरी तिलहन फसलों को बढ़ावा देने की कोशिश कर रही है, ताकि तेल की कमी को पूरा किया जा सके. ऐसी ही एक खास फसल है तारामीरा, जो देखने में सरसों जैसी होती है और तेल निकालने के मामले में भी कमाल दिखाती है. इसकी कुछ उन्नत किस्में तो सरसों से भी ज्यादा तेल देती हैं. किसान इसके जरिए अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं और देश में तिलहन की कमी को भी काफी हद तक दूर किया जा सकता है.

बंजर जमीन पर भी देती अच्छी पैदावार

तारामीरा की सबसे बड़ी खूबी यह है कि इसे ऐसी जमीन पर भी उगाया जा सकता है जहां दूसरी फसलें उगाना मुश्किल हो. कई बार किसान के पास ऐसी बंजर या अनुपयोगी जमीन होती है, जिस पर कुछ भी नहीं उग पाता. वहां भी तारामीरा आसानी से पनप सकती है. इसके बीजों में लगभग 35 प्रतिशत तक तेल होता है, जो इसे बेहद फायदेमंद बनाता है. इसका मतलब है कि जो जमीन अब तक खाली पड़ी रहती थी, वहां से भी किसान कम लागत में अच्छी कमाई कर सकते हैं.

खास किस्में और बेहतर उपज

तारामीरा की कई उन्नत किस्में तैयार की गई हैं, जिनमें AES-1, AES-2, AES-3, AES-4 और RMT-314 शामिल हैं. इनमें से RMT-314 किस्म खासतौर पर सूखे और बारानी क्षेत्रों के लिए बेहतरीन मानी जाती है. इसकी औसत पैदावार करीब 12 से 15 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है और पकने में लगभग 130 से 140 दिन लगते हैं. खास बात यह है कि इस किस्म में करीब 36.9 प्रतिशत तक तेल मिलता है और इसके पौधे मजबूत और फैले हुए होते हैं.

खेती का सही तरीका

तारामीरा की खेती के लिए हल्की दोमट मिट्टी सबसे अच्छी मानी जाती है. बहुत ज्यादा अम्लीय या क्षारीय मिट्टी में इसकी पैदावार कम हो सकती है. किसान खरीफ की फसलें जैसे मूंग, उड़द, मक्का, चारा आदि काटने के बाद खेत में बची नमी का इस्तेमाल करते हुए तारामीरा की बुवाई कर सकते हैं. जितना हो सके बारिश के मौसम में खेत को खालीछोड़ें और हल्की जुताई के बाद सीधे बुवाई कर दें.

दीमक और कीटों से बचाव

इस फसल पर अक्सर दीमक का हमला होता है, इसलिए बुवाई से पहले सावधानी जरूरी है. खेत में क्यूनालफॉस 1.5 फीसदी चूर्ण लगभग 25 किलो प्रति हेक्टेयर की दर से बिखेरकर जुताई करने से दीमक का खतरा काफी हद तक कम हो जाता है. इसके अलावा पौधों को मोयला कीट, झुलसा और सफेद रोली जैसी बीमारियों से बचाने के लिए समय-समय पर दवा का छिड़काव करना चाहिए.

खाद और सिंचाई का ध्यान

तारामीरा की अच्छी पैदावार के लिए खेत में बुवाई के समय 30 किलो नाइट्रोजन और 15 किलो फास्फोरस प्रति हेक्टेयर डालना जरूरी है. अंतिम जुताई के दौरान 250 किलो जिप्सम भी मिलाएं. जहां सिंचाई की सुविधा हो, वहां पहली सिंचाई बुवाई के 40-50 दिन बाद और दूसरी सिंचाई दाने बनने के समय करनी चाहिए.

कटाई का सही समय

जब पौधों की पत्तियां झड़ने लगें और फलियां पीली पड़ जाएं, तो समझ लें कि फसल कटाई के लिए तैयार है. कटाई में देरी करने पर दाने खेत में गिर सकते हैं और नुकसान हो सकता है.

तारामीरा की खेती किसानों के लिए कम लागत में ज्यादा मुनाफा देने वाला विकल्प बन सकती है. खासकर उन इलाकों में जहां सरसों जैसी पारंपरिक तिलहन फसलें सफल नहीं हो पातीं, वहां यह फसल नई उम्मीद जगा रही है. अगर किसान सही समय पर बुवाई, खाद, सिंचाई और रोग प्रबंधन का ध्यान रखें, तो यह फसलसिर्फ उनकी आमदनी बढ़ाएगी बल्कि महंगे तेल के बाजार में राहत भी पहुंचाएगी.

Get Latest   Farming Tips ,  Crop Updates ,  Government Schemes ,  Agri News ,  Market Rates ,  Weather Alerts ,  Equipment Reviews and  Organic Farming News  only on KisanIndia.in

अमरूद के उत्पादन में सबसे आगे कौन सा प्रदेश है?

Side Banner

अमरूद के उत्पादन में सबसे आगे कौन सा प्रदेश है?