एक मां अपने बच्चे को गोद में लेकर मुस्कुराती है…उसे अपने दूध से जिंदगी देती है… लेकिन सोचिए अगर वही दूध उसके बच्चे की मौत का कारण बन जाए, तो उस मां पर क्या बीतेगी?
एक बूढ़ा पिता कुएं का पानी पीकर दवा से नहीं, जहर से भरे शरीर के साथ जीने को मजबूर हो जाए, तो उसे किस पर भरोसा रहेगा?
और अगर रोटी, जो पेट भरती है…वही धीरे-धीरे जीवन को निगलने लगे, तो हम आखिर किसे दोष देंगे?
देश के कई हिस्सों से जो रिपोर्टें सामने आई हैं, वे केवल आकड़े नहीं, बल्कि आने वाले संकट की दस्तक हैं. मां के दूध में यूरेनियम, खून में क्रोमियम और खाने में पेस्टीसाइड… ये तीनों मिलकर इंसानों के लिए एक घातक कौम्बो बन चुके हैं.
मां का दूध- अब पोषण नहीं, डर का दूसरा नाम
मां का दूध हमेशा से बच्चे के लिए सबसे सुरक्षित और पौष्टिक आहार माना जाता है, लेकिन बिहार के कुछ जिलों में सामने आई रिपोर्ट ने इस विश्वास को हिला दिया है. कई महिलाओं के दूध में रेडियोधर्मी तत्व यूरेनियम पाया गया है, जो नवजात शिशुओं के लिए बेहद खतरनाक है. यूरेनियम धीरे-धीरे बच्चे के जिगर, किडनी, दिमाग और हड्डियों को नुकसान पहुंचाता है और इसका असर तुरंत न दिखने के कारण इसे धीमा लेकिन खतरनाक जहर कहा जाता है. शोधकर्ताओं का मानना है कि यह समस्या भूजल प्रदूषण से जुड़ी है. औद्योगिक कचरा और जमीन में मौजूद खनिज पानी को दूषित कर रहे हैं और वही दूषित पानी मां के शरीर के जरिए बच्चों तक पहुंच रहा है. यह स्थिति सिर्फ स्वास्थ्य का नहीं, बल्कि भविष्य की पीढ़ी की सुरक्षा का बड़ा खतरा बन चुकी है.
खून में क्रोमियम- लोगों की रगों में मौत बह रही है
उत्तर प्रदेश के कानपुर देहात में स्थिति बेहद गंभीर होती जा रही है. यहां के कई गांवों की पानी की सप्लाई में ऐसा जहर मिला है, जो सीधे लोगों के खून में घुलकर उनकी सेहत छीन रहा है. सालों पहले इस इलाके में औद्योगिक कचरा जमीन के भीतर दबा दिया गया था और अब वही कचरा भूजल को प्रदूषित करके इंसानी रगों में क्रोमियम के रूप में पहुंच चुका है. इस दूषित पानी को लंबे समय तक पीने से लोगों के शरीर पर घाव बनने लगे हैं, लगातार पेट दर्द, त्वचा रोग और बच्चों में कमजोरी के लक्षण बढ़ते जा रहे हैं.
डॉक्टर लगातार चेतावनी दे रहे हैं कि क्रोमियम शरीर में घुसते ही किडनी और लीवर जैसे महत्वपूर्ण अंगों को नुकसान पहुंचाता है और कैंसर का खतरा भी कई गुना बढ़ जाता है. भले ही कचरे को हटाने की कार्रवाई कर दी गई हो, लेकिन उसका जहरीला असर मिट्टी और पानी में अब भी गहराई तक बैठा हुआ है, जो आने वाले सालों तक लोगों की जान के लिए खतरा बना रहेगा.
भोजन में कीटनाशक- खेतों से सीधे मौत की दावत
उत्तर भारत के कई राज्यों, खासकर हरियाणा, पंजाब और हिमाचल प्रदेश में कीटनाशकों का उपयोग खेती में तेजी से बढ़ा है. फसल को कीड़ों और रोगों से बचाने के लिए डाले जाने वाले यही रसायन अब भोजन के जरिये इंसानी शरीर में जहर बनकर पहुंच रहे हैं. रिपोर्टों के मुताबिक, सिर्फ वर्ष 2023 में ही भोजन में मौजूद पेस्टीसाइड्स की वजह से हजारों लोगों की मौत हुई, जो एक बहुत बड़े स्वास्थ्य संकट की ओर इशारा करता है. समस्या यह है कि इन रसायनों के उपयोग पर न कोई सख्त निगरानी है और न ही खाद्य पदार्थों की नियमित जांच की व्यवस्था. कई बार किसान जानकारी के अभाव में जरूरत से अधिक कीटनाशक छिड़क देते हैं और वही जहर धान, गेंहू, सब्जियों और फलों के साथ चुपचाप हमारे शरीर में प्रवेश कर जाता है.
यह स्थिति सिर्फ अस्थायी बीमारी नहीं बल्कि लम्बे समय में कैंसर, हॉर्मोनल असंतुलन और प्रजनन क्षमता पर गहरा प्रभाव डाल सकती है. ऐसे में सवाल उठता है कि जिस भोजन पर हमारी जिंदगी टिकी है, अगर वही हमारा दुश्मन बन जाए, तो बचने का रास्ता आखिर बचेगा कहां?
एक जानलेवा त्रिकोण- खतरा जो बढ़ता ही जा रहा है
जब मां के दूध में यूरेनियम घुल जाए, पानी के जरिये क्रोमियम खून में बहने लगे और भोजन के साथ कीटनाशक शरीर में प्रवेश कर जाएं, तो यह मिलकर इंसान के लिए एक घातक त्रिकोण बन जाते हैं. डॉक्टर और वैज्ञानिक इसे ट्रिपल टॉक्सिक थ्रेट कह रहे हैं — यानी तीन दिशाओं से फैलता हुआ ऐसा जहर, जो न सिर्फ आज की पीढ़ी, बल्कि आने वाले बच्चों को भी जन्म लेने से पहले ही बीमार कर देगा. यह स्थिति सिर्फ स्वास्थ्य का मामला नहीं, बल्कि जीवन और मौत के बीच की गंभीर लड़ाई है.
विशेषज्ञ साफ चेतावनी दे चुके हैं कि यदि अभी कदम नहीं उठाए गए तो देर हो जाएगी, क्योंकि यूरेनियम और क्रोमियम जैसे जहरीले तत्व एक बार मिट्टी और पानी में घुस जाएं, तो उन्हें खत्म होने में सालों नहीं, दशकों का समय लगता है. इस दौरान ये लगातार मानव शरीर और प्रकृति दोनों को नुकसान पहुंचाते रहते हैं. गर्भ में पल रहे बच्चे भी इसकी चपेट में आते हैं, जिससे वे बिना किसी दोष के बीमार दुनिया में जन्म लेते हैं.
अगर हमने अब ध्यान नहीं दिया, तो आने वाले समय में पानी, खाना और यहां तक कि मां का दूध भी पूरी तरह सुरक्षित नहीं रहेगा. जिस धरती, पानी और भोजन पर हमारा जीवन टिका है, अगर वही जहर में बदल जाए — तो हम आखिर कैसे बचेंगे? यह प्रश्न आज उत्तर भारत ही नहीं, पूरे देश से जवाब मांग रहा है.