बाजार में बढ़ती मांग और उच्च उपज के साथ जानें गेहूं की इस खास किस्म के बारे में

भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान द्वारा विकसित नीलगिरी खपली गेहूं की एक खास किस्म है जो सेहत और खेती दोनों के लिहाज से फायदेमंद है.

नोएडा | Updated On: 9 Jun, 2025 | 10:44 PM

अब गेहूं की खेती सिर्फ पेट भरने के लिए नहीं, बल्कि सेहत सुधारने और लाभ कमाने के लिए भी की जा रही है. खासकर खपली गेहूं (Triticum dicoccum) की बात करें तो यह गेहूं की एक ऐसी किस्म है जिसे खासतौर पर डायबिटीज के मरीजों के लिए बेहतर माना जाता है. इसका लो ग्लाइसेमिक इंडेक्स, हाई प्रोटीन और फाइबर कंटेंट इसे आम गेहूं से कहीं ज्यादा सेहतमंद बनाता है. इसी बात को ध्यान में रखते हुए भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (IARI), वेलिंगटन, तमिलनाडु के कृषि वैज्ञानिकों ने गेहूं की एक खास किस्म नीलगिरी खपली (HW 1098) को तैयार किया है, जो सेहत और खेती दोनों के लिहाज से फायदेमंद साबित हो सकती है.

महज 106 दिनों में तैयार

नीलगिरी खपली एक सेमी-ड्वार्फ यानी कम ऊंचाई वाली खपली गेहूं की किस्म है जो महज 106 दिनों में तैयार हो जाती है. पारंपरिक खपली गेहूं की तुलना में इसकी उपज ज्यादा, बीमारियों से लड़ने की ताकत बेहतर और स्वास्थ्य लाभ कई गुना अधिक होते हैं. बता दें की खपली गेहूं को एम्मर गेहूं भी कहा जाता है. यह एक प्राचीन अनाज है जो सामान्य गेहूं की तुलना में अधिक पौष्टिक और फायदेमंद माना जाता है.

रेडिएशन तकनीक से विकसित

वहीं खपली गेहूं की इस किस्म को गामा रेडिएशन तकनीक से विकसित किया गया है और इसे खासतौर पर गुजरात, महाराष्ट्र, कर्नाटक और तमिलनाडु के किसानों के लिए 2013 में रिलीज किया गया था. गामा-इरैडिएशन तकनीक एक खास वैज्ञानिक तरीका है जिसमें बीजों पर एक हल्की वैज्ञानिक धूप दी जाती है, जिससे उसमें सुधार होता है और बिना किसी रसायन या जेनेटिक के बेहतर किस्म तैयार की जाती है.

32 से 40 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उत्पादन

नीलगिरी खपली का औसत उत्पादन 45.5 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक होती है और यदि किसान इस फसल को देर से बोते है तब भी यह किस्म 32 से 40 क्विंटल प्रति हेक्टेयर का उत्पादन देती है. इसके अलवा यह किस्म कम लागत में ज्यादा मुनाफे के साथ बीमारियों के प्रति प्रतिरोधक मानी जाती है, जिस कारण किसानों का दवाइयों और कीटनाशकों पर कम खर्च आता है.

बाजार में क्यों है मांग

नीलगिरी खपली की मांग दिन-ब-दिन फ्लोर इंडस्ट्री और हेल्थ मार्केट में बढ़ रही है. इसके हार्ड दानों की वजह से यह विशेष मिलिंग (पीसाई) के लिए उपयुक्त है और इससे बने आटे की कीमत भी ज्यादा होती है. यही वजह है कि इस किस्म के गेहूं का दाम आम गेहूं से अधिक होता है, जिसे किसानों को अपनी आमदनी बढ़ाने में मदद मिल सकती है.

 

Published: 9 Jun, 2025 | 10:43 PM