एमएस यूनिवर्सिटी वडोदरा के वैज्ञानिकों ने टमाटर में बड़ी सफलता हासिल की है. खास जीन को साइलेंस कर उन्होंने बीना बीज वाले टमाटर विकसित किए हैं, जो गर्मी और सूखे जैसी चुनौतियों का सामना कर सकते हैं. इन जीन को साइलेंस करने से फलों में केवल बीज ही नहीं बनते, बल्कि पत्तों और पौधों के उम्र बढ़ने की प्रक्रिया भी धीमी होती है. इससे फसल की लाइफ और क्वालिटी दोनों में सुधार होता है.
द टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, अब वैज्ञानिक इस तकनीक का इस्तेमाल दूसरी सब्जियों और फलों की शेल्फ लाइफ बढ़ाने, उनकी स्ट्रेस सहने की क्षमता सुधारने और बीज रहित किस्में विकसित करने में कर रहे हैं. रिसर्च टीम का मानना है कि इस जीन को ‘जेनेटिक टूल’ के रूप में इस्तेमाल कर टिकाऊ खेती की दिशा में बड़ा बदलाव लाया जा सकता है.
बढ़ जाएगी टमाटर की सेल्फ लाइफ
खास बात यह है कि एमएसयू के साइंस फैकल्टी के बॉटनी विभाग के रिसर्चर्स ने यह काम किया है. प्रोफेसर सुनील सिंह की अगुवाई में टीम ने टमाटर के कुछ ‘कैस्पेस जैसे जीन’ का अध्ययन किया. प्रोफेसर सुनील सिंह ने कहा कि इन जीन का पौधों की पत्तियों और फूलों के विकास में अहम रोल होता है. जब इनमें से एक खास जीन को साइलेंस किया गया (यानी उसकी क्रिया को रोका गया), तो बीज रहित टमाटर उगाने में सफलता मिली. साथ ही टमाटर की शेल्फ लाइफ यानी ताजगी बनी रहने की अवधि भी बढ़ाई जा सकती है.
गर्मी और सूखे से लड़ने में सक्षम
प्रोफेसर सुनील सिंह ने कहा कि जब इन जीन को साइलेंस किया गया, तो पत्तियों और पौधों के उम्र बढ़ने का तरीका बदल गया. इससे फसलों की क्वालिटी और टिकाऊपन को बेहतर बनाने में मदद मिल सकती है. उनकी टीम में डॉ. मैत्री त्रिवेदी, कृष्णा टंडेल और पार्थवी जोशी भी शामिल थे.
खाद्य सुरक्षा के लिए बहुत जरूरी
रिसर्च से यह भी पता चला कि ये जीन पौधों को गर्मी और सूखे जैसी प्राकृतिक चुनौतियों से लड़ने में मदद करते हैं. यानी अगर इन जीन को सही ढंग से बदला जाए, तो ऐसे टमाटर और फसलें तैयार की जा सकती हैं जो गर्मी और सूखे में भी अच्छी उपज दें, जो कि जलवायु परिवर्तन के दौर में खाद्य सुरक्षा के लिए बहुत जरूरी है.