पंजाब में आई भीषण बाढ़ के चलते राज्य को 3 सितंबर को ‘आपदा प्रभावित क्षेत्र’ घोषित किया गया है. सभी 23 जिलों में करीब 3 लाख एकड़ में लगी फसल को बाढ़ के पानी से नुकसान पहुंचा है. खास कर धान की फसल को कुछ ज्यादा ही बर्बाद हुई है. ऐसे में कृषि विशेषज्ञों को चिंता है कि इससे चावल के दामों में अस्थायी बढ़ोतरी हो सकती है और सरकार की सार्वजनिक वितरण प्रणाली पर असर पड़ सकता है. कृषि विशेषज्ञों का कहना है कि इससे ना सिर्फ देश के पीडीएस सिस्टम पर असर पड़ेगा, बल्कि चावल के निर्यात पर भी असर हो सकता है.
मनी कंट्रोल की रिपोर्ट के मुताबिक, स्वतंत्र कृषि नीति विश्लेषक इंद्र शेखर सिंह ने कहा है कि ज्यादातर खेत जो बाढ़ से प्रभावित हुए हैं, वे नदियों के किनारे हैं. इसलिए धान की फसल सबसे ज्यादा प्रभावित होगी. साथ ही गेहूं और बाजरा-ज्वार जैसी मोटे अनाज की फसलें भी नुकसान में रहेंगी. इससे पंजाब से चावल और धान की सरकारी खरीद पर सीधा असर पड़ने की संभावना है. सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) के तहत गरीब और कम आय वाले परिवारों को चावल, गेहूं और चीनी जैसी जरूरी चीजें सब्सिडी पर दी जाती हैं, ताकि खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके. इसके लिए जरूरी अनाज ज्यादातर उन राज्यों से खरीदा जाता है जहां पैदावार ज्यादा होती है, जिनमें पंजाब और हरियाणा प्रमुख हैं. खासकर चावल की जरूरत के लिए सरकार सबसे ज्यादा खरीद पंजाब से करती है.
6.58 लाख किसानों ने एमएसपी पर धान बेचा
पंजाब में सबसे ज्यादा किसान हैं, जिन्हें सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) पर फसल की बिक्री का लाभ देती है. उपभोक्ता मामलों और खाद्य वितरण मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, नवंबर 2024 तक पंजाब के करीब 6.58 लाख किसानों ने खरीफ सीजन 2024-25 में एमएसपी पर धान बेचा, जिससे उन्हें कुल 27,995 करोड़ रुपये का भुगतान हुआ. फेडरेशन ऑफ इंडियन एक्सपोर्ट ऑर्गेनाइजेशन्स (FIEO) के अध्यक्ष आरसी रल्हान ने कहा कि बाढ़ के बावजूद अभी तक राज्य से निर्यात पर असर नहीं पड़ा है. उन्होंने कहा कि मुझे निर्यात में ज्यादा दिक्कत नहीं दिखती, क्योंकि पाकिस्तान जो एक और बड़ा बासमती चावल निर्यातक देश है. वह भी बाढ़ से बुरी तरह प्रभावित है. ऐसे में सप्लाई कम होने से भारत को चावल के बेहतर दाम मिल सकते हैं.
पंजाब में सबसे अधिक धान की खेती
उन्होंने यह भी कहा कि भले ही बाढ़ का पानी उतर जाए, लेकिन किसानों को अपनी जमीन से मिट्टी हटाने और दोबारा बोआई के लिए तैयार करने में हफ्तों या महीनों का समय लग सकता है. पंजाब में जो फसलें बोई गई थीं, वे पूरी तरह से बर्बाद हो चुकी हैं. असली असर अक्टूबर-नवंबर में कटाई के समय दिखेगा. तब पंजाब की जगह हरियाणा, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों से अधिक खरीद हो सकती है, क्योंकि पंजाब की हिस्सेदारी घटेगी. साल 2024-25 के खरीफ सीजन में पंजाब ने देश के कुल खाद्यान्न बोआई क्षेत्र में 4.6 फीसदी हिस्सा लिया. राज्य में सबसे ज्यादा धान की खेती होती है. पिछले साल पंजाब ने देश के कुल धान बोआई क्षेत्र का 7.5 फीसदी और कुल धान उत्पादन का 12 फीसदी योगदान दिया था.