अडानी एग्री-फ्रेश ने हिमाचल में शुरू किया डिजिटल सेब बाजार, छोटे किसानों की कमाई में होगा इजाफा

हिमाचल प्रदेश में कुल 11 लाख हेक्टेयर खेती योग्य भूमि है, जिसमें से 2 लाख हेक्टेयर फल उत्पादन के लिए है. इसमें से 1 लाख हेक्टेयर सिर्फ सेब के बागानों के लिए है. हिमाचल हर साल करीब 5.5 लाख मीट्रिक टन सेब उगाता है.

Kisan India
नोएडा | Updated On: 1 Aug, 2025 | 12:01 PM

बागवानी क्षेत्र में एक अहम पहल के तहत अडानी एग्री-फ्रेश ने हिमाचल प्रदेश में देश का पहला डिजिटल सेब बाजार प्लेटफॉर्म लॉन्च किया है. यह शिमला से लगभग 120 किमी दूर रामपुर के पास है. यह प्रोजेक्ट अभी पायलट फेज में है, लेकिन हिमाचल प्रदेश के सेब किसानों को इसका सीधा लाभ मिलना शुरू हो गया है. किसान इसकी पारदर्शिता, सुविधा और मुनाफे से काफी खुश हैं. कहा जा रहा है कि आने वाले वर्षों में इस प्लेटफॉर्म से किसानों की आमदनी में इजाफा होगा.

न्यूज एजेंसी एएनआई की रिपोर्ट के मुताबिक, अडानी एग्री से जुड़े किसानों का कहना है कि यह डिजिटल बाजार छोटे किसानों के लिए बहुत फायदेमंद है. पहले अडानी स्टोर्स पर ग्रेडिंग में कई बार सेब रिजेक्ट हो जाते थे, लेकिन अब किसान सीधे सेब बेच सकते हैं और पेमेंट भी ऑनलाइन हो रही है. एक किसाने ने कहा कि उसके बाग के सेब आज 2200 रुपये प्रति क्रेट बिके, जो छोटे किसानों के लिए एक बड़ी राहत है. किसाने ने कहा कि यह नया डिजिटल प्लेटफॉर्म किसानों को पारदर्शी नीलामी में भाग लेने, बिचौलियों से बचने और निश्चित भुगतान पाने की सुविधा देता है.

छोटे किसानों को होगा ज्यादा फायदा

साथ ही डिजिटल सेब बाजार प्लेटफॉर्म पर सेब की ग्रेडिंग, पैकिंग और मार्केटिंग अडानी ब्रांड के तहत होती है, जिससे गुणवत्ता बनी रहती है और किसानों की मोलभाव करने की ताकत बढ़ती है. वरिष्ठ प्रगतिशील किसान हरिचंद रोच ने भी इस डिजिटल बदलाव का स्वागत किया. उन्होंने कहा कि यह एक बड़ा बाजार सुधार है जो किसानों को सशक्त बनाता है. अगर दस किसानों के सेब एक ही बैच में जाते हैं, तो ग्रेडिंग, रंग और आकार एक जैसा रहेगा और पैकिंग अडानी ब्रांड के साथ होगी. अब किसान खुद तय कर सकते हैं कि उन्हें सेब बेचने हैं या स्टोर करने हैं. इससे छोटे किसान भी मजबूत हुए हैं.

ग्रेडिंग से लेकर नीलामी तक पूरी पारदर्शिता

मनीष अग्रवाल, बिनेस हेड, अडानी एग्री फ्रेश लिमिटेड ने कहा कि हम पिछले 20 सालों से कंट्रोल्ड एटमॉस्फियर स्टोरेज चला रहे हैं, लेकिन इसका लाभ केवल बड़ी जोत वाले किसानों को मिलता था. पारंपरिक मंडियों में पारदर्शिता नहीं थी. यह नया डिजिटल सिस्टम ग्रेडिंग से लेकर नीलामी तक पूरी पारदर्शिता लाता है और मैनुअल पैकिंग की झंझट भी खत्म करता है.

पूरा प्रोसेस SMS के जरिए ट्रैक किया जाता है

उन्होंने कहा कि खरीदार मोबाइल ऐप के जरिए अपना माल देख सकते हैं. हर सेब की दबाव जांच, रंग ग्रेडिंग और फोटो अपलोड होती है. कोई छिपा हुआ शुल्क नहीं है. सिर्फ पैकिंग चार्ज, जो साफ-साफ बताया जाता है. उन्होंने आगे कहा कि अगर किसी किसान को नीलामी की कीमत पसंद नहीं आती, तो वह पैकिंग चार्ज देकर अपना माल वापस ले सकता है. पूरा प्रोसेस SMS के जरिए ट्रैक किया जाता है. जिसमें अनलोडिंग, ग्रेडिंग, नीलामी और भुगतान तक की प्रक्रिया शामिल है.

1 लाख हेक्टेयर में केवल सेब की खेती

हिमाचल प्रदेश में कुल 11 लाख हेक्टेयर खेती योग्य भूमि है, जिसमें से 2 लाख हेक्टेयर फल उत्पादन के लिए है. इसमें से 1 लाख हेक्टेयर सिर्फ सेब के बागानों के लिए है. हिमाचल हर साल करीब 5.5 लाख मीट्रिक टन सेब उगाता है, जिससे राज्य को 5,500 करोड़ रुपये की आमदनी होती है. अभी तक अडानी एग्री-फ्रेश इस उत्पादन का लगभग 8 फीसदी हिस्सा खरीदता है, जो इस डिजिटल मंडी के बाद और बढ़ने की उम्मीद है.

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Published: 1 Aug, 2025 | 12:00 PM

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