एक तरफ जहां किसान संगठन पंजाब सरकार की भूमि पूलिंग नीति का विरोध कर रहे हैं, तो वहीं कुछ किसानों ने इस योजना को मंजूरी दे दी है. भूमि अधिग्रहण प्राधिकरण के अधिकारियों ने कहा कि उन्हें पटियाला ब्लॉक ए में करीब 80 एकड़ और शेर माजरा में 50 एकड़ जमीन देने की सहमति मिल चुकी है. इस नीति के तहत, किसान अगर एक एकड़ जमीन देते हैं तो उन्हें बदले में 1000 वर्ग गज का रिहायशी प्लॉट और 200 वर्ग गज का व्यावसायिक प्लॉट मिलेगा. सरकार की योजना चार गांव शेर माजरा, पसीआना, चौरां और फालौली से कुल 1450 एकड़ जमीन लेने की थी, लेकिन अब तक केवल 130 एकड़ के लिए किसानों की सहमति मिली है.
द ट्रिब्यून की रिपोर्ट के मुताबिक, एक अधिकारी ने कहा कि चार गांवों को दो जोन में बांटा गया है. शुरुआत में, हर जोन से 150 एकड़ जमीन ली जाएगी, ताकि किसानों का भरोसा जीता जा सके. जैसे-जैसे किसान विकास होते देखेंगे, वे भी इस योजना से जुड़ेंगे. कहा जा रहा है कि किसानों ने इसलिए जमीन देने पर सहमति दी क्योंकि उन्हें पता चला कि PUDA (पंजाब अर्बन प्लानिंग एंड डेवलपमेंट अथॉरिटी) इस जमीन पर कॉलोनियां और व्यावसायिक इमारतें बनाने जा रही है.
खेती करने का अधिकार भी मिलेगा
PUDA के एक अधिकारी ने कहा कि किसानों के फैसले को प्रभावित करने वाला एक बड़ा कारण ये था कि उन्हें इस योजना के तहत प्रति एकड़ करीब 1 करोड़ रुपये तक मिलने की उम्मीद है. साथ ही, अगर जमीन पर विकास नहीं होता है, तो किसानों को हर साल 1 लाख रुपये की तय आमदनी और खेती करने का अधिकार भी मिलेगा. अधिकारी ने यह भी कहा कि PUDA की कॉलोनियों की मांग निजी कॉलोनियों की तुलना में ज्यादा है, इसलिए किसानों का भरोसा भी बना हुआ है.
तीन गांवों में भूमि पूलिंग योजना के खिलाफ प्रस्ताव पास
ज्यादातर वही किसान सहमत हुए हैं जिनके पास बड़ी जोत की जमीन है. हालांकि, इनमें से कई किसान सार्वजनिक रूप से सामने नहीं आ रहे हैं, क्योंकि उन्हें विरोध या आलोचना का डर है. एक अहम बदलाव के तहत तीन गांव ननोकी, साकराली और खिजरपुर, जिन्होंने पहले भूमि पूलिंग योजना के खिलाफ प्रस्ताव पास किया था, अब उन्होंने अपना फैसला बदल लिया है. मंगलवार को इन गांवों के प्रतिनिधियों ने कहा कि अब उन्हें इस योजना से कोई आपत्ति नहीं है. इस बदलाव से साफ है कि किसानों के बीच इस योजना को लेकर मतभेद बढ़ रहे हैं. जहां किसान यूनियन इसे कृषि व्यवस्था के लिए खतरा मान रही हैं, वहीं कुछ किसान इसे आर्थिक तरक्की का मौका मान रहे हैं.