अपनी आर्थिक स्थिति को मजबूत बनाने के लिए आज के किसान पारंपरिक खेती को छोड़कर व्यावसायिक खेती की तरफ बढ़ रहे हैं. ऐसा करने से न केवल उन्हें अच्छी आमदनी मिलती है बल्कि रोदगार के नए मौके भी बनते हैं. ऐसा ही कुछ कर दिखाया है जम्मू-कश्मीर के एक गांव के कुछ किसानों ने , जिन्हों सालों पुरानी अपनी पारंपरिक मक्के की खेती को छोड़कर लैवेंडर की खेती की शुरुआत की और आज उससे अच्छा उत्पादन और आमदनी दोनों कर रहे हैं. इसका जिक्र प्रधानमंत्री मोदी मे अपने कार्यक्रम मन की बात में भी किया है.
लैवेंडर की खेती को बनाया कमाई का जरिया
पीएम मोदी ने अपने कार्यक्रम मन की बात में जिक्र करते हुए बताया कि जम्मू-कश्मीर के डोडा जिले में भदरवाह नाम का एक कस्बा है जहां के किसान दशकों से मक्के की पारंपरिक खेती करते थे. लेकिन कुछ किसानों ने इससे अलग हटकर फूलों की खेती की तरफ अपना रुख किया. जिसके चलते कस्बे के 2.5 हजार किसान आज लैवेंडर की खेती करते हैं. लैवेंडर की खेती कर किसानों ने अपनी आमदनी में बड़ी बढ़ोतरी की है. आज ये किसान लैवेंडर की खेती कर इसके फूलें से कई उत्पादों का भी निर्माण कर रहे हैं जिसकी खुशबू चारों ओर महकती है. आज ये किसान जम्मू-कश्मीर के अलग-अलग हिस्सों में करीब 500 एकड़ जमीन पर लैवेंडर की खेती कर रहे हैं.
सरकार के एरोमा मिशन से मिली मदद
पीएम मोदी के नेतृत्व में चलाए गए सीएसआईआर एरोमा मिशन के तहत साल 2016 में लैवेंडर रिवोल्यूशन की शुरुआत हुई. जम्मू-कश्मीर के कुछ किसानों की अलग सोच ने लैवेंडर की खेती को सफल बनाया. इन किसानों की इस सफलता में केंद्र सरकार के एरोमा मिशन ने उनकी मदद की . आज लैवेंडर की खेती से जम्मू-कश्मीर के किसान तो मजबूत हो ही रही हैं. साथ ही यहां की महिलाएं भी लैवेंडर के फूलों से अलग-अलग उत्पाद बनाकर व्यवसाय कर खुद के पैरों पर खड़ा हो रही हैं. इसके साथ ही लैवेंडर की खेती से प्रदेश की अर्थव्यवसथा में भी सुधार आ रहा है.
कैसे करते हैं लैवेंडर की खेती
लैवेंडर की खेती के लिए अच्छी जल निकासी वाली मिट्टी जिसका पीएच pH मान 6.5 से 7.5 हो वो बेस्ट मानी जाती है. लैवेंडर की खेती कटाई या बीज की मदद से की जाती है. कटाई से इसकी खेती करना आसान होता है. इसके पौधों को लाइन में 60 सेमी की दूरी पर लगाना चाहिए. इसकी रोपाई का सबसे सही समय सितंबर से अक्टूबर या फइर फरवरी से मार्च के बीच होता है. इसके पौधे को हर 10 से 15 दिन में सिंचाई की जरूरत होती है. इसकी खासियत है कि इसे बहुत ज्यादा खाद की जरूरत नहीं होती है. रोपाई के करीब 1 से 2 साल बाद इसमें फूल आना शुरू होते हैं.