तेलंगाना की चावल निर्यात इंडस्ट्री इन दिनों गंभीर संकट से गुजर रही है. चावल मिल मालिकों का कहना है कि 2025 में निर्यात 20-30 फीसदी तक घट गया है, जिसकी वजह कच्चे माल की बढ़ी हुई कीमतें है. घरेलू मांग में गिरावट इस संकट को और गहरा बना रही है. खासकर सरकार द्वारा जन वितरण प्रणाली (PDS) के जरिए सब्सिडी वाले फाइन राइस की कम खरीदी से ये समस्या और बढ़ गई है. इससे राज्य का हर साल 50-60 लाख टन चावल निर्यात करने का लक्ष्य खतरे में पड़ गया है.
निजामाबाद के एक चावल निर्यातक के अनुसार, महंगी लागत और अंतरराष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा की वजह से इंडोनेशिया और अफ्रीका जैसे बाजार भी सिकुड़ रहे हैं. तेलंगाना के चावल मिलर्स को अंतरराष्ट्रीय बाजार में कड़ी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है, जहां थाईलैंड और वियतनाम का सस्ता चावल पूरी तरह हावी हो गया है. उद्योग से जुड़े आंकड़ों के मुताबिक, भारत का नॉन-बासमती चावल निर्यात 2024 में 6.9 फीसदी घटकर 17.8 मिलियन मीट्रिक टन रह गया, जिसमें तेलंगाना की बड़ी हिस्सेदारी है. लेकिन तेलंगाना की गिरावट इससे भी ज्यादा बताई जा रही है.
तेलंगाना टुडे की रिपोर्ट के मुताबिक, सऊदी अरब और यूएई जैसे प्रमुख बाजारों में निर्यात घटा है, जिसकी वजह क्षेत्रीय संघर्ष और भुगतान में देरी है. पहले ये देश तेलंगाना के प्रीमियम फाइन राइस के बड़े खरीदार थे, लेकिन अब भूराजनीतिक टेंशन ने व्यापार को प्रभावित किया है. पश्चिम अफ्रीका के पारंपरिक बाजार जैसे नाइजीरिया, जो पहले भारत के नॉन-बासमती चावल का बड़ा हिस्सा खरीदते थे, अब सस्ते थाई और वियतनामी चावल की ओर रुख कर रहे हैं.
अप्रैल-मई 2025 की शिपमेंट में मांग कमजोर रही
निजामाबाद के एक चावल मिलर ने कहा कि हमारा फाइन चावल अब अंतरराष्ट्रीय बाजार में महंगा पड़ रहा है. उन्होंने कहा कि दूसरे देशों के निर्यातक समान गुणवत्ता वाला चावल सस्ते दामों पर बेच रहे हैं और तेलंगाना के मिलर्स महंगी लागत की वजह से मुकाबला नहीं कर पा रहे. हाल ही में फिलीपींस को 1 लाख मीट्रिक टन चावल का एक्सपोर्ट डील हुआ था, लेकिन अप्रैल-मई 2025 की शिपमेंट में मांग कमजोर रही और निर्यात की गति धीमी पड़ी.
तेलंगाना से 30,000 मीट्रिक टन चावल का फिलीपींस में निर्यात
अगस्त 2025 तक तेलंगाना से 30,000 मीट्रिक टन चावल फिलीपींस भेजा जा चुका है. जो दोनों देशों के बीच व्यापारिक संबंधों के बढ़ने का संकेत है. इसके उलट, आंध्र प्रदेश और पंजाब के मिलर्स कम कीमत पर फाइन धान खरीद पाते हैं, जिससे उन्हें लागत में बढ़त मिलती है. ये राज्य 400 डॉलर से 450 डॉलर प्रति टन की दर पर प्रीमियम चावल का निर्यात करते हैं, जबकि तेलंगाना के मिलर्स राज्य की नीतियों के चलते बढ़ी हुई लागत से जूझ रहे हैं.
जून और जुलाई में बिक्री घटकर 2-3 क्विंटल रह गई
तेलंगाना में चावल निर्यात में गिरावट के साथ-साथ घरेलू बाजार भी गंभीर संकट से जूझ रहा है. राज्य की बड़ी राइस मिलों का संचालन 55-60 फीसदी तक घट गया है. इसके पीछे धान की खरीद में दिक्कतें, मिलिंग लागत में बढ़ोतरी और सरकारी भुगतान में देरी जैसे कारण बताए जा रहे हैं. वारंगल के एक थोक व्यापारी ने कहा कि पहले जहां रोज 25-30 क्विंटल चावल बिकता था, वहीं जून और जुलाई में बिक्री घटकर 2-3 क्विंटल रह गई है. उन्होंने कहा कि सरकारी पीडीएस (सार्वजनिक वितरण प्रणाली) ने हमारा बाजार खत्म कर दिया है. जब लोगों को सस्ता चावल मिल रहा है, तो वे हमसे क्यों खरीदेंगे?”
अंतरराष्ट्रीय बाजार में ढीली पर रही है पकड़
मिलर्स का कहना है कि अगर जल्द सुधार नहीं हुआ, तो तेलंगाना की चावल इंडस्ट्री अंतरराष्ट्रीय बाजार में अपनी पकड़ खो सकती है. इंडोनेशिया और अफ्रीका जैसे नए बाजारों में 50-60 लाख टन चावल के निर्यात का राज्य सरकार का लक्ष्य अब असंभव लगता है. उद्योग से जुड़े लोगों ने मिलिंग नीति की फिर से समीक्षा करने की मांग की है, ताकि किसानों को प्रोत्साहन मिले और व्यापारिक टिकाऊपन बना रहे. उन्होंने सरकार से तुरंत कदम उठाने की अपील की है, नहीं तो प्रतिस्पर्धी राज्यों को बाजार हाथ से निकल सकता है.