पंजाब सरकार ने छह जिलों में एक पायलट प्रोजेक्ट शुरू किया है, जिसमें किसानों को धान की जगह खरीफ मक्का की खेती के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है. किसानों को प्रति हेक्टेयर 17,500 रुपये की प्रोत्साहन राशि दी जा रही है. इस प्रोजेक्ट का मुख्य उद्देश्य लगातार गिरते भूजल स्तर रोकना और फसल विविधिकरण को बढ़ावा देना है. हालांकि, कृषि विशेषज्ञों ने इस योजना की आलोचना की है. उनका कहना है कि यह पायलट बहुत छोटे स्तर पर शुरू किया गया है, जबकि पंजाब में धान की खेती लाखों हेक्टेयर में होती है. विशेषज्ञों का मानना है कि कम से कम 50,000 हेक्टेयर में पायलट प्रोजेक्ट होना चाहिए था.
इसके अलावा, विशेषज्ञों ने यह भी कहा कि यह योजना आम आदमी पार्टी सरकार के पहले साल में ही लागू हो जानी चाहिए थी, क्योंकि फसल विविधिकरण कोई नया विचार नहीं है और न ही ये किसी एक पार्टी से जुड़ा मुद्दा है. इस योजना के तहत जालंधर, कपूरथला, बठिंडा, संगरूर, पठानकोट और गुरदासपुर में धान की जगह मक्का उगाने वाले किसानों को प्रति हेक्टेयर 17,500 रुपये की प्रोत्साहन राशि दी जा रही है. सरकार का लक्ष्य इस खरीफ सीजन में 12,000 हेक्टेयर भूमि पर मक्का की खेती करवाना है.
धान के मुकाबले काफी कम पानी का खर्च
गौरतलब है कि खरीफ मक्का मानसून में बोई जाती है और इसमें पानी की जरूरत धान की तुलना में काफी कम होती है, जहां मक्का को 3-5 बार सिंचाई चाहिए, वहीं धान के लिए 22-30 बार पानी देना पड़ता है. पंजाब में दशकों से हो रही अत्यधिक धान की खेती के कारण भूजल स्तर लगातार गिरता जा रहा है. ऐसे में विशेषज्ञों ने मक्का की तरफ बदलाव को बहुत जरूरी बताया है, लेकिन साथ ही राज्य सरकार की मौजूदा योजना को बहुत ही सीमित और देर से उठाया गया कदम बताया है.
32 लाख हेक्टेयर में धान की खेती
पंजाब एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी (PAU), लुधियाना के एक वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक ने कहा कि पंजाब में 32 लाख हेक्टेयर से ज्यादा जमीन पर धान की खेती होती है, जबकि सरकार केवल 12,000 हेक्टेयर को मक्का में बदल रही है, जो बेहद कम है. उन्होंने सुझाव दिया कि सरकार को कम से कम 50,000 हेक्टेयर का लक्ष्य रखना चाहिए था और सिर्फ छह नहीं, बल्कि मक्का उगाने वाले अन्य जिलों जैसे होशियारपुर, रूपनगर, एसएएस नगर (मोहाली), लुधियाना, फतेहगढ़ साहिब, अमृतसर और पटियाला को भी शामिल करना चाहिए था.
किस रूप में होता है मक्के का इस्तेमाल
मक्का का उपयोग जानवरों के चारे, स्टार्च, इथेनॉल, साइलैज़ (पशुओं के लिए किण्वित चारा), कॉर्नफ्लेक्स और बेबी कॉर्न जैसे खाद्य उत्पादों में होता है. खरीफ मक्का पंजाब की घरेलू मांग को पूरा करने में सक्षम है, जबकि अभी 90 फीसदी से ज्यादा मक्का पंजाब में दूसरे राज्यों से आता है. विशेषज्ञों का मानना है कि पंजाब में इथेनॉल उत्पादन यूनिट लगाना बेहद जरूरी है, ताकि स्थानीय मक्का की खपत बढ़े.