Bihar Election 2025: पटना जिले की हॉट सीट मोकामा में दो बाहुबलियों के बीच कांटे का मुकाबला है. चौथे राउंड तक जेडीयू के अनंत सिंह बढ़त बनाए हुए हैं. वहीं, आरजेडी की वीणा देवी और जन सुराज पार्टी के पीयूष प्रियदर्शी उन्हें कड़ी टक्कर दे रहे हैं. यहां तीनों उम्मीदवारों के बीच त्रिकोणीय मुकाबला बना है, इसलिए निगाहें इस बात पर भी टिकी हैं कि क्या पीयूष प्रियदर्शी बढ़त बनाने में कामयाब होते हैं या फिर उनका प्रदर्शन अनंत सिंह और वीणा देवी में से किसी एक का वोट काटकर समीकरण बदल देगा. पहले चरण में 6 नवंबर को 64% मतदान हुआ था, जिससे अब इस सीट पर हर राउंड का अंतर अहम हो गया है.
अनंत सिंह का सफर
बिहार की राजनीति में कुछ नाम सिर्फ सुर्खियों में नहीं रहते, बल्कि किस्सों और खौफ दोनों में गूंजते हैं. ऐसा ही एक नाम है अनंत सिंह, मोकामा के मशहूर ‘छोटे सरकार’. कभी गोलियों की गूंज से चर्चित रहे अनंत सिंह आज सियासत के मैदान में जनाधार और जुनून से जाने जाते हैं. जेल, जुर्म और जनता — तीनों से उनका रिश्ता पुराना है. लेकिन इस रिश्ते ने उन्हें सिर्फ एक बाहुबली नहीं, बल्कि एक ब्रांड बना दिया, जिसकी कहानी आज भी बिहार की गलियों में फुसफुसाई जाती है.
नदवां गांव का साधारण लड़का जिसने बनाया अपना साम्राज्य
अनंत सिंह का जन्म पटना जिले के बाढ़ अनुमंडल के नदवां गांव में हुआ. ग्रामीण परिवेश में पले-बढ़े अनंत ने बचपन से ही जुझारूपन दिखाया. कहा जाता है कि छोटी उम्र से ही उन्होंने अपने इलाके में होने वाले अत्याचार और अन्याय के खिलाफ आवाज उठानी शुरू की. धीरे-धीरे उनकी पहचान “कमजोंरों के सहारा” के रूप में बनने लगी. इलाके में अपराध, जातीय संघर्ष और दबदबे का दौर था और इसी दौर में अनंत सिंह ने अपने प्रभाव से जनता में जगह बनाई.
‘छोटे सरकार’ नाम की कहानी
मीडिया रिपोर्ट की माने तो 1990 के दशक में मोकामा और उसके आसपास का इलाका अपराध के लिए कुख्यात था. उस समय कहा जाता था कि मोकामा में कोई भी काम बिना अनंत सिंह की अनुमति के नहीं हो सकता था. लोग मजाक में कहते, “पटना में बड़ी सरकार है, लेकिन मोकामा में छोटे सरकार हैं.” यही वाक्य धीरे-धीरे उनका स्थायी उपनाम बन गया — ‘छोटे सरकार’.
उनके समर्थकों का मानना है कि यह नाम किसी डर से नहीं, बल्कि उनके “न्याय के प्रति झुकाव” से जुड़ा है. क्योंकि अनंत सिंह अपने क्षेत्र में गरीबों की शादी कराते, विवाद सुलझाते और हर जरूरत पर खड़े दिखाई देते थे.

अनंत सिंह को 2022 में हुई जेल
राजनीतिक सफर की शुरुआत
2005 में अनंत सिंह ने जेडीयू के टिकट पर मोकामा विधानसभा सीट से चुनाव लड़ा और शानदार जीत दर्ज की. उस समय वे नीतीश कुमार के बेहद करीबी माने जाते थे. सत्ता में आने के बाद मोकामा में सड़कों, स्कूलों और विकास कार्यों के लिए उन्होंने कई योजनाएं शुरू कीं. लोगों का मानना है कि यही वह दौर था जब मोकामा “डर और विकास” दोनों का चेहरा बन गया.
अपराध और आरोपों की लंबी फेहरिस्त
अनंत सिंह पर दर्ज मामलों की सूची लंबी है. मीडिया रिपोर्ट के अनुसार हत्या, अपहरण, धमकी, अवैध हथियार रखने जैसे 40 से अधिक केस उनके खिलाफ दर्ज हुए. 2019 में उनके घर से AK-47 राइफल और ग्रेनेड मिलने के बाद उन्हें गिरफ्तार किया गया. 2022 में पटना की एक अदालत ने उन्हें दोषी ठहराया, जिसके बाद वे जेल में चले गए. हालांकि, जेल में रहते हुए भी उन्होंने अपने समर्थकों से संपर्क बनाए रखा. वे अक्सर कहते हैं, “मुझे जेल में रखा जा सकता है, लेकिन मोकामा के लोगों के दिल से नहीं निकाला जा सकता.”
राजनीति में वापसी: जेल से विधानसभा तक का सफर
अनंत सिंह ने 2005 में जेडीयू से राजनीति की शुरुआत की और मोकामा से विधायक बने. नीतीश कुमार के बेहद करीबी माने जाने वाले अनंत का उस दौर में बड़ा प्रभाव था. हालांकि, बाद में मतभेदों के चलते उन्होंने जेडीयू छोड़ दी और निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ा और जीत भी दर्ज की.

नीतीश कुमार के साथ अनंत सिंह
2020 के बाद जब वे जेल में थे, तब उनकी पत्नी नीलम देवी ने आरजेडी के टिकट पर चुनाव लड़ा और जीतकर मोकामा की सीट अपने नाम की. अब, 2025 के बिहार विधानसभा चुनाव में एक बार फिर बड़ा मोड़ आया है. अनंत सिंह दोबारा राजनीति के मैदान में लौट रहे हैं और इस बार फिर से नीतीश कुमार की पार्टी, यानी जेडीयू के टिकट पर मोकामा से चुनाव लड़ रहे हैं. इस फैसले ने बिहार की राजनीति में हलचल मचा दी है. लोग कह रहे हैं, “छोटे सरकार की घरवापसी हो गई.” राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि जेडीयू से उनकी वापसी नीतीश कुमार के लिए भी रणनीतिक कदम है, जिससे मोकामा जैसी सीट पर फिर से पकड़ मजबूत हो सके.
जनता में छवि: डर और दुलार का अनोखा संगम
अनंत सिंह के बारे में विरोधी कहते हैं कि वे एक बाहुबली हैं, लेकिन उनके समर्थकों के लिए वे ‘रॉबिनहुड’ हैं. मोकामा के लोग बताते हैं कि “छोटे सरकार” किसी की मदद के लिए आधी रात को भी पहुंच जाते थे. गरीब परिवारों की लड़कियों की शादी करवाना, इलाज के लिए आर्थिक मदद देना, या किसी के खेत में विवाद सुलझाना. यह सब उनकी लोकप्रियता के असली कारण हैं.
जेल से भी जारी रहा राजनीति का असर
जब अनंत सिंह जेल में थे, तब भी मोकामा की सियासत उन्हीं के इर्द-गिर्द घूमती रही. उनके समर्थकों ने “छोटे सरकार जिंदाबाद” के नारे से माहौल गरम रखा. उनकी गैरहाजिरी में भी जनता उन्हें अपना नेता मानती रही.
2022 में जब वे चुनाव नहीं लड़ सके, तब उनकी पत्नी नीलम देवी ने आरजेडी के टिकट पर चुनाव लड़ा और मोकामा से विधायक बनीं. यह साबित करता है कि “छोटे सरकार” का असर अब परिवार तक सीमित नहीं, बल्कि एक राजनीतिक विरासत में बदल चुका है.

जेडीयू उम्मीदवार अनंत सिंह
नीलम देवी: राजनीति में ‘छोटे सरकार’ की विरासत को आगे बढ़ाया
नीलम देवी ने मोकामा में अनंत सिंह की जगह भरी. उनकी जीत ने यह दिखाया कि जनता सिर्फ नाम नहीं, बल्कि परिवार पर भी भरोसा करती है. राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि यह बिहार में “लोकल डॉमिनेंस पॉलिटिक्स” का सबसे बड़ा उदाहरण है, जहां नेता की छवि पार्टी से बड़ी होती है.
भविष्य की राह
अब जब अनंत सिंह एक बार फिर मैदान में हैं, तो मोकामा की सियासत पहले जैसी नहीं रहने वाली. उनके समर्थक पहले से सक्रिय हैं, और विरोधी पार्टियां सतर्क. जेल, विवाद और राजनीति के बीच जूझते हुए भी “छोटे सरकार” की कहानी अब भी अधूरी नहीं — बल्कि एक नए अध्याय की शुरुआत पर है.