Jute Prices: कच्चे जूट की कीमतें रिकॉर्ड ऊंचाई पर पहुंच गई हैं, जिससे जूट उद्योग में हलचल मच गई है. कभी किसानों के लिए सामान्य फसल मानी जाने वाली जूट अब इतनी महंगी हो गई है कि मिल मालिकों से लेकर कारोबारी तक कच्चा माल जुटाने में परेशान हैं. इसी स्थिति को नियंत्रित करने के लिए जूट आयुक्त के कार्यालय ने बड़ा कदम उठाते हुए ट्रेडर्स, बेलर्स (Baler) और जूट मिलों के लिए स्टॉक लिमिट तय कर दी है.
रिकॉर्ड दामों ने बढ़ाई चिंता
बिजनेस लाइन की खबर के अनुसार, पिछले कुछ हफ्तों से कच्चे जूट की कीमत 9,000 रुपये प्रति क्विंटल तक पहुंच गई है, जो अब तक के सबसे ऊंचे स्तरों में से एक है. आमतौर पर जूट मिलें त्योहारों के सीजन (सितंबर-अक्टूबर) में करीब 10 लाख गांठों का स्टॉक लेकर चलती हैं. लेकिन इस बार शुरुआती सीजन में ही स्टॉक बेहद कम है. कई मिलों को मशीनें चलाने के लिए जरूरी फाइबर महंगे दामों पर खरीदना पड़ रहा है.
सरकार का नया आदेश
24 सितंबर को जारी आदेश में जूट आयुक्त ने साफ कहा है कि अब कोई भी बेलर किसी भी समय 2,000 क्विंटल से ज्यादा कच्चा जूट नहीं रख सकता. इसी तरह अन्य स्टॉकिस्ट 300 क्विंटल से ज्यादा स्टॉक नहीं कर पाएंगे. जूट मिलें और जूट प्रोडक्ट बनाने वाली यूनिट्स अपने मौजूदा उत्पादन की दर के हिसाब से 45 दिनों की खपत से ज्यादा का स्टॉक नहीं रख सकेंगी.
जूट आयुक्त मोलॉय चंदन चक्रवर्ती ने आदेश में यह भी निर्देश दिया है कि जिनके पास तय सीमा से ज्यादा कच्चा जूट है, उन्हें 15 दिनों के भीतर अतिरिक्त स्टॉक बेचकर 20 अक्टूबर तक उसकी डिलीवरी पूरी करनी होगी और इसकी रिपोर्ट सरकार को देनी होगी. यह आदेश तुरंत प्रभाव से लागू होगा और अगली सूचना तक जारी रहेगा.
इंपोर्ट बैन से और बढ़ी मुश्किल
कीमतों में तेजी की एक बड़ी वजह बांग्लादेश से जूट आयात पर लगी पाबंदी भी है. इस साल भारत सरकार ने जूट फैब्रिक, रस्सी, कॉर्ड, ट्वाइन और जूट बैग जैसे कई उत्पादों के आयात पर रोक लगा दी है. अब ये सामान केवल महाराष्ट्र के न्हावा शेवा बंदरगाह से ही आ सकते हैं. भूमि मार्ग (लैंड पोर्ट) से इनकी एंट्री पूरी तरह बंद कर दी गई है. सरकार का कहना है कि यह कदम घरेलू उद्योग की सुरक्षा और गुणवत्ता नियंत्रण के लिए उठाया गया है.
मिलों की बढ़ी परेशानी
भारतीय जूट मिल एसोसिएशन के पूर्व चेयरमैन संजय काजरिया के मुताबिक, पिछले दो सालों से किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) से भी कम दाम पर जूट बेचना पड़ा था और जूट कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया (JCI) ने केवल सीमित मात्रा में ही खरीद की. इस वजह से कोई बड़ा बफर स्टॉक तैयार नहीं हो सका. अब जब आपूर्ति घटी है तो कीमतें और ऊपर चली गई हैं.
काजरिया ने बताया कि बांग्लादेश से उच्च गुणवत्ता वाला जूट लाने पर लगी रोक ने भारतीय मिलों की दिक्कतें और बढ़ा दी हैं. इससे न सिर्फ लागत बढ़ी है बल्कि निर्यात बाजार में भारतीय जूट उत्पादों की प्रतिस्पर्धा भी कमजोर पड़ रही है.
वहीं उद्योग विशेषज्ञों का मानना है कि अगर कच्चे जूट की आपूर्ति जल्द सामान्य नहीं हुई तो इसकी कीमतें और बढ़ सकती हैं. ऐसे में न केवल जूट मिलें बल्कि जूट से बने बोरे, रस्सियां और अन्य उत्पाद भी महंगे हो सकते हैं. सरकार की ओर से स्टॉक लिमिट तय करने का कदम फिलहाल बाजार को नियंत्रित करने की दिशा में अहम माना जा रहा है.