टैरिफ के झटके से आंध्र प्रदेश के झींगा किसान बदल रहे हैं अपनी कमाई के तरीके

अमेरिका भारत का सबसे बड़ा झींगा बाजार है. वहां के सुपरमार्केट जैसे वॉलमार्ट और क्रोगर मुख्य ग्राहक हैं. पिछले साल भारत का वैश्विक समुद्री भोजन निर्यात 7.4 बिलियन डॉलर था, जिसमें झींगा 40 फीसदी हिस्सा रखता था. लेकिन अब ट्रंप प्रशासन के 25 फीसदी टैरिफ ने इस उद्योग को संकट में डाल दिया है

Kisan India
नई दिल्ली | Published: 20 Aug, 2025 | 04:27 PM

भारत के झींगा उद्योग को अब गंभीर संकट का सामना करना पड़ रहा है. खासकर आंध्र प्रदेश के किसान, जिन्होंने दशकों से अमेरिका के लिए उच्च गुणवत्ता वाले झींगे उगाए हैं, अब 50 फीसदी अमेरिकी टैरिफ की धमकी और पहले से लागू 25 फीसदी टैक्स के चलते परेशान हैं. इस नए शुल्क के बाद, निर्यातकों ने किसानों को मिलने वाली कीमतों में लगभग 20 फीसदी की कटौती कर दी है, जिससे उनकी आमदनी पर सीधा असर पड़ा है.

द इकोनॉमिक्स टाइम्स की खबर के अनुसार, वीरवासरम गांव के किसान, जिन्होंने दो दशकों तक झींगा पालन किया, अब मछली पालन या अन्य व्यवसाय की ओर विचार कर रहे हैं. उन्होंने बताया, “इन कीमतों से मुझे कोई मुनाफा नहीं मिलेगा और मैं अपने कर्ज की अदायगी नहीं कर पाऊंगा.” उनके पास 38.74 लाख रुपये  का लोन है, और परिवार की संपत्ति बंधक रखी हुई है.

अमेरिका है सबसे बड़ा बाजार

अमेरिका भारत का सबसे बड़ा झींगा बाजार है. वहां के सुपरमार्केट जैसे वॉलमार्ट और क्रोगर मुख्य ग्राहक हैं. पिछले साल भारत का वैश्विक समुद्री भोजन निर्यात 7.4 बिलियन डॉलर था, जिसमें झींगा 40 फीसदी हिस्सा रखता था. लेकिन अब ट्रंप प्रशासन के 25 फीसदी टैरिफ ने इस उद्योग को संकट में डाल दिया है. इसके उलट, भारत का मुख्य प्रतिस्पर्धी इक्वाडोर केवल 15 फीसदी टैरिफ का सामना कर रहा है, जिससे उसकी प्रतिस्पर्धात्मक बढ़त बढ़ गई है.

आंध्र प्रदेश के किसानों की स्थितbusine

आंध्र प्रदेश में लगभग 3 लाख किसान झींगा पालन में लगे हैं. वे दर्जनों निर्यातकों को उत्पाद बेचते हैं, जो अमेरिका भेजते हैं. सीफ़ूड एक्सपोर्टर्स एसोसिएशन ऑफ़ इंडिया के प्रमुख पवन कुमार ने कहा कि हाल के हफ्तों में अमेरिकी आदेश रुके हैं क्योंकि खरीदार और निर्यातक दोनों टैरिफ को वहन नहीं कर पा रहे हैं, जिससे किसानों को कम कीमत मिल रही है.

विकल्प और चुनौतियां

कुछ किसान अब झींगा पालन रोककर मछली पालन, सब्जी की बिक्री या अन्य स्थानीय व्यवसायों में निवेश करने पर विचार कर रहे हैं. जबकि अन्य किसान थोड़े समय तक इंतजार करना चाह रहे हैं. प्रत्येक झींगा पालन चक्र में लगभग 2 महीने लगते हैं. इसके अलावा, किसानों को अभी भी बिजली, फीड, कच्चे माल और जमीन के उच्च किराए का भुगतान करना पड़ता है.

आर्थिक दबाव और मदद की उम्मीद

स्थानीय यूनियन प्रमुख गोपीनाथ डुगिनेनी ने कहा, “अच्छे दिनों में भी हमारा मुनाफा केवल 20-25 फीसदी होता है, और अगर वह भी कट गया, तो और क्या बचेगा?” किसानों ने राज्य सरकार से वित्तीय सहायता की मांग करने की योजना बनाई है.

इस बीच, इक्वाडोर भारत पर टैरिफ का लाभ उठाने की योजना बना रहा है, लेकिन भारतीय और अमेरिकी प्रशासन के बीच संभावित समझौते का इंतजार कर रहा है. आंध्र प्रदेश के किसानों के लिए यह समय बड़ा चुनौतीपूर्ण है, और अमेरिकी टैरिफ के चलते उनका भविष्य अनिश्चित नजररहा है.

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