कर्नाटक में टमाटर बहुत सस्सता हो गया है. खासकर मैसूर के आस-पास के इलाकों में टमाटर की कीमतों में आई तेज गिरावट ने किसानों को परेशान कर दिया है. बुधवार को कई किसानों ने अपनी उपज को सड़कों और एपीएमसी यार्ड में फेंक दिया, क्योंकि उन्हें अच्छे दाम नहीं मिल पाए.
कुछ समय तक थोक में टमाटर की बिक्री हुई, लेकिन धीरे-धीरे कीमतें गिरती चली गईं और 12 से 15 रुपये प्रति किलो तक पहुंच गईं. कई किसान तो थोक में 8 रुपये प्रति किलो की दर से भी बेचने को तैयार थे. लेकिन मांग से ज्यादा आपूर्ति होने के कारण कीमतें और गिर गईं, जिससे किसानों को भारी नुकसान हुआ और उन्हें अपनी उपज फेंककर खाली हाथ घर लौटना पड़ा.
टमाटर की खेती में लागत
बर्दनापुरा के किसान और रैथा मित्रा किसान उत्पादक कंपनी के जिला सचिव नागराज ने कहा कि एक एकड़ में टमाटर की खेती पर करीब 60,000 से 1 लाख रुपये तक का खर्च आता है, जो तरीके और इनपुट लागत पर निर्भर करता है. नागराज ने कहा कि किसानों को अब टमाटर तोड़कर मंडी तक ले जाना भी घाटे का सौदा लग रहा है. कई किसान तो फसल की तुड़ाई ही नहीं कर रहे हैं, ताकि मजदूरी का खर्च बचाकर नुकसान थोड़ा कम किया जा सके.
मैसूर से इन राज्यों में टमाटर की सप्लाई
उन्होंने कहा कि किसान एक तरफ मौसम की मार झेलते हैं और दूसरी तरफ मंडी में दाम घटने की मार, जिससे उनकी हालत बहुत खराब हो गई है. टमाटर जैसे जल्दी खराब होने वाले उत्पादों के लिए ठंडे भंडारण (कोल्ड स्टोरेज) की कमी ने हालात को और बिगाड़ दिया है. मंड्या और मैसूर क्षेत्र के टमाटर आमतौर पर महाराष्ट्र के नासिक, केरल और तमिलनाडु जैसे राज्यों में भेजे जाते हैं.
इस वजह से आई मांग में गिरावट
नागराज ने कहा कि लेकिन पिछले कुछ दिनों में तमिलनाडु में अच्छी पैदावार और पर्याप्त आपूर्ति की वजह से वहां से मांग में भारी गिरावट आई है. इसका असर मैसूर की मंडियों पर पड़ा और कीमतें बुरी तरह गिर गईं. वहीं, टमाटर जैसी जल्दी खराब होने वाली फसलों के लिए कोल्ड स्टोरेज बनवाने की मांग के साथ-साथ किसानों ने सरकार से यह भी अपील की है कि फल और सब्जियों की प्रोसेसिंग (value addition) करने वाली इंडस्ट्रीज को बढ़ावा दिया जाए.
किसानों ने की सरकार से ये मांग
नागराज ने कहा कि मैसूर और आस-पास के इलाकों में फूड प्रोसेसिंग यूनिट्स, खासकर टमाटर से जुड़ी फैक्ट्रियां जैसे सॉस बनाने वाली यूनिट्स शुरू की जाएं. इससे न सिर्फ मैसूर, बल्कि आस-पास के जिलों के किसानों को भी फायदा होगा. उन्होंने कहा कि बेंगलुरु में ऐसी यूनिट्स बनने से कोलार के किसानों को फायदा मिलता है, वैसे ही मैसूर में फैक्ट्रियां शुरू होने से कम से कम पांच आसपास के जिलों के किसान लाभान्वित होंगे, जहां की अर्थव्यवस्था खेती पर निर्भर है.