रबी सीजन में चना समेत दूसरी फसलों की खेती करने वाले किसानों को फसलों बीमारियां और कीट लगने का खतरा रहता है. फसलों की बेहतर ग्रोथ और इन समस्याओं से मुक्ति दिलाने के लिए भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के दलहन अनुसंधान संस्थान ने जैविक तरीके से दलहनडर्मा को विकसित किया है. यह दलहनडर्मा दाल फसलों में होने वाली फंगस संबंधी बीमारियों और कीटों को खत्म करने में मदद करता है. इससे इस्तेमाल से बीजों का अंकुरण और पौधों का ग्रोथ तेजी से होता है. रबी सीजन में किसान दलहनडर्मा का खूब इस्तेमाल कर रहे हैं.
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के दलहन अनुसंधान संस्थान कानपुर ने दलहनडर्मा को विकसित किया है. दलहनडर्मा किसानों के लिए एक कम लागत, पर्यावरण अनुकूल और ज्यादा पैदावार देने वाला वाला समाधान है. यह मिट्टी की क्वालिटी सुधारने के साथ फसलों को रोगों से सुरक्षा प्रदान करता है. ऐसे में रबी सीजन में चना समेत अन्य दलहन फसलों की खेती करने वाले किसानों के लिए यह बेहतर विकल्प बन सकता है.
चना समेत इन दलहन फसलों में कारगर है दलहनडर्मा
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) के भारतीय दलहन अनुसंधान संस्थान कानपुर (ICAR-IIPR) के वैज्ञानिकों ने कई साल की रिसर्च के बाद दलहन फसलों के रोग और कीट नियंत्रण के लिए एक नया जैविक रोगनाशक “दलहनडर्मा” को विकसित करने में सफलता पाई है. दलहनडर्मा एक टैल्क बेस्ड जैविक फार्मूलेशन है, जिसमें ट्राइकोडर्मा एस्परेलम स्ट्रेन नामक फंगस का उपयोग किया गया है. यह फंगस पौधों की जड़ों में लगने वाले हानिकारक रोगों को रोकने में मदद करता है. दलहनडर्मा का इस्तेमाल चना, अरहर, मसूर, मूंग सहित अन्य दलहन फसलों में किया जा सकता है.
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किसानों को मिलेगा कई तरह से फायदा
वैज्ञानिकों का दावा है कि दलहनडर्मा के इस्तेमाल से फसलों की उपज 10–12 फीसदी तक बढ़ने की संभावना है. यह पौधे की ऊंचाई लगभग 25 फीसदी तक बढ़ानेमें सहायक है. मिट्टी की उर्वरता और सूक्ष्मजीवों की संख्या के भी बढ़ाने में मदद मिलती है. इसके अलावा मिट्टी में मौजूद हानिकारक तत्व और भारी धातुओं को घटा देता है. जबक, फसल को विल्ट रोग जैसे घातक संक्रमण से भी बचाने में यह कारगर है. दलहनडर्मा के इस्तेमाल से रासायनिक कीटनाशकों पर निर्भरता घटती है, जिससे किसानों की लागत कम होती है और उत्पादन बढ़ता है.

दलहनडर्मा.
किसान दलहनडर्मा का इस्तेमाल कैसे करें
ICAR-IIPR के वैज्ञानिकों के अनुसार बीज उपचार के लिए प्रति 1 किलो बीज में 10 ग्राम दलहनडर्मा मिलाना चाहिए. इसका इस्तेमाल बीज अंकुरण, टहनियों की वृद्धि, जड़ों के फैलाव और पौधे की समग्र वृद्धि को बेहतर बनाता है. वतर्मान में कानपुर से जुड़े इलाकों और बुंदेलखंड समेत उत्तर प्रदेश के अन्य क्षेत्रों में चना, अरहर और मसूर की खेती में दलहनडर्मा का इस्तेमाल किया जा रहा है.