पपीते को कोढ़ रोग से बचाएगी नई दवा, 15 दिन में खत्म होगी पौधे की बीमारी

पपीते में लीफ कर्ल नामक बीमारी बेगोमोवायरस के कारण होती है. किसान आम बोलचाल की भाषा में इसे कोढ़ रोग कहते हैं. इसकी रोकथाम के लिए नया टीका बनाया गया है.

नोएडा | Published: 3 Jun, 2025 | 02:07 PM

पपीता एक ऐसा फल है, जो अपने स्वाद, पोषण और दवाईयां बनाने के काम के चलते पूरी दुनिया में काफी मशहूर है. भारत में पपीते की मांग सालभर रहती है इसलिए यहां के किसान बड़े पैमाने पर पपीते की खेती करते हैं. लेकिन कई बार पपीते में खतरनाक रोग लग जाते हैं जिसके कारण फल बर्बाद होने लगते हैं. ऐसा ही पपीता में लगने वाला एक खतरनाक रोग है लीफ कर्ल रोग जिसे किसान कोढ़ कहते हैं. बता दें कि अंबेडकर केंद्रीय विश्विविद्यालय के स्कूल ऑफ लाइफ साइंसेज की शोध छात्रा ने एक टीका तैयार किया है. जिसके इस्तेमाल से पपीते को कोढ़ रोग से बचाया जा सकेगा.

फसल पर छिड़काव से होगा बचाव

एक मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक अंबेडकर केंद्रीय विश्विविद्यालय के स्कूल ऑफ लाइफ साइंसेज की शोध छात्रा प्रियंका ने राइबोज न्यूक्लिक अम्ल (RNA) आधारित टीके को तैयार किया है. इस टीके को पौधे में लगाने और छिड़काव करने से पपीते की फसल को कोढ़ रोग से बचाया जा सकेगा. बता दें कि अंबेडकर केंद्रीय विश्विविद्यालय के स्कूल ऑफ लाइफ साइंसेज की डीन प्रो. संगीता सक्सेना और जैव प्रौद्योगिकी विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉक्टर यूसुफ के कुशल निर्देशन में प्रियंका द्वारा किया गया यह शोध फिजियोलॉजिकल एंड मॉलीक्यूलर प्लांट पैथोलॉजी (एल्सेवियर) नाम की अंतरराष्ट्रीय शोध पत्रिका में भी प्रकाशित हुआ है.

पौधों की ग्रोथ को रोकता है ये रोग

शोध करने वाली छात्रा प्रियंका ने बताया कि पीपते में लीफ कर्ल नामकी बीमारी बेगोमोवायरस के कारण होती है. किसान आम बोलचाल की भाषा में इसे कोढ़ रोग कहते हैं. उन्होंने बताया कि यह रोग सफेद मक्खियों के जरिए होता है. ये वायरस पौधों पर आक्रमण कर पत्तियों को मोड़ देता है और पौधों की ग्रोथ रुक जाती है. इसके साथ ही इसके संक्रमण से फूलों को भी नुकसान पहुंचता है.

परीक्षण में 7.7 गुना ज्यादा असरदार

प्रियंका ने बताया कि शोध के दौरान कोढ़ से प्रभावित पौधों पर इस टीके का छिड़काव किया गया. परीक्षण में पता चला कि आरएनए पौधों की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है और साथ ही वायरस को बढ़ने से भी रोकता है. उन्होंने बताया कि पपीते पर किए गए इस टीके का परीक्षण सफल रहा और जिन पौधों पर परीक्षण किया गया वे 15 दिनों तक स्वस्थ रहे. इसके साथ ही इन पौधों में वायरस की मात्रा भी 6 से 7.7 गुना कम पाई गई.