Aloe vera cultivation: लोगों को लगता है कि केवल धान-गेहूं जैसे फसलों की खेती में ही फायदा है. इनकी खेती से ही किसानों की गरीबी दूर हो सकती है. लेकिन ऐसी बात नहीं है. अगर किसान बागवानी करते हैं, तो पारंपरिक फसलों के मुकाबले ज्यादा मुनाफा होगा. क्योंकि मार्केट में बागवानी फसलों की डिमांड और रेट भी ज्यादा हैं. अगर किसान एलोवेरा यानी घृतकुमारी की खेती करते हैं, तो लाखों में कमाई होगी. इसकी मांग केवल भारत नहीं विदेशों में खूब है. इसका इस्तेमाल आयुर्वेदिक दवाइयां और कॉस्मेटिक प्रोडक्ट बनाने में किया जा रहा है. फिलहाल राजस्थान सहित कई राज्यों में किसान बड़े स्तर पर इसकी खेती कर रहे हैं. इसकी खेती से कई किसान लखपति बन गए हैं.
कृषि एक्सपर्ट के मुताबिक, यह कम लागत में अधिक मुनाफा देने वाली फसल है और सूखे व गर्म इलाकों में भी आसानी से उगाई जा सकती है. खास बात यह है कि एलोवेरा खेती ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत करने और किसानों को आत्मनिर्भर बनाने का बेहतरीन विकल्प है. इसकी खासियत है कम मेहनत और कम खर्च में अधिक कमाई होती है. ऐसे एलोवेरा की खेती के लिए दोमट या बलुई दोमट मिट्टी सबसे उपयुक्त मानी जाती है, जिसमें जल निकासी की अच्छी सुविधा हो. खेत की जुताई के बाद 30 सेंटीमीटर ऊंची मेड़ बनाकर पौधों को 45 सेंटीमीटर की दूरी पर रोपना चाहिए. रोपाई के लिए ‘सकर’ या जड़ वाले पौधों का इस्तेमाल होता है. एक हेक्टेयर में लगभग 15 से 18 हजार पौधों की जरूरत होती है.
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30 दिन पर करें सिंचाई
एलोवेरा की सबसे बड़ी खासियत यह है कि इसे ज्यादा पानी की जरूरत नहीं पड़ती. गर्मियों में इसे 15 दिन और सर्दियों में 25 से 30 दिन के अंतराल पर पानी देना काफी है. इसमें रोग और कीट लगने की संभावना बहुत कम होती है, इसलिए रासायनिक दवाओं पर खर्च लगभग न के बराबर आता है. अगर जैविक तरीके से उगाई जाए तो इसकी बाजार में कीमत और बढ़ जाती है.
इतने महीने में तैयार हो जाएगी फसल
एलोवेरा की फसल रोपाई के 7 से 8 महीने में तैयार हो जाती है और एक पौधा 3 से 5 साल तक लगातार पत्तियां देता है. प्रति हेक्टेयर लगभग 12 से 15 टन पत्तियां मिलती हैं. बाजार में इसकी कीमत 10 से 15 रुपये प्रति किलो होती है, जिससे किसान आसानी से 1 से 1.5 लाख रुपये प्रति हेक्टेयर का शुद्ध मुनाफा कमा सकते हैं. कई कंपनियां एलोवेरा जेल, जूस, साबुन और कॉस्मेटिक बनाने के लिए किसानों से सीधे पत्तियां खरीदती हैं. सरकार भी इस खेती को बढ़ावा देने के लिए सब्सिडी और तकनीकी मदद देती है.