Soyameal Exports: भारतीय सोयामील उद्योग के लिए चालू 2025-26 ऑयल ईयर की शुरुआत राहत भरी रही है. लंबे समय से घरेलू बाजार में कमजोर मांग और कीमतों के दबाव से जूझ रहे इस सेक्टर को यूरोप से मिली मजबूत मांग ने नया सहारा दिया है. ऑयल ईयर के शुरुआती महीनों में निर्यात के आंकड़े साफ संकेत दे रहे हैं कि विदेशी बाजार, खासकर यूरोप, इस समय भारतीय सोयामील के लिए सबसे बड़ा सहारा बनकर उभरा है.
ऑयल ईयर की दमदार शुरुआत
सोयाबीन प्रोसेसर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (SOPA) के अनुसार, 1 अक्टूबर से शुरू हुए 2025-26 ऑयल ईयर के पहले दो महीनों यानी अक्टूबर और नवंबर में भारत का सोयामील और उससे जुड़े वैल्यू-एडेड उत्पादों का निर्यात 3.34 लाख टन रहा. पिछले वर्ष इसी अवधि में यह आंकड़ा 2.41 लाख टन था. इस तरह निर्यात में करीब 38 प्रतिशत की मजबूत बढ़ोतरी दर्ज की गई है, जो उद्योग के लिए सकारात्मक संकेत मानी जा रही है.
फ्रांस और जर्मनी की बड़ी भूमिका
Businessline की रिपोर्ट के अनुसार, यूरोप ने इस बढ़त में सबसे बड़ी भूमिका निभाई है. आंकड़ों के मुताबिक, फ्रांस 80,974 टन आयात के साथ भारत का सबसे बड़ा सोयामील खरीदार रहा. इसके बाद जर्मनी ने 60,200 टन सोयामील का आयात किया. यूरोप के अलावा पड़ोसी और अन्य देशों से भी मांग देखने को मिली. बांग्लादेश ने 46,447 टन, नेपाल ने 36,347 टन और केन्या ने 18,452 टन सोयामील आयात किया. इन आंकड़ों से साफ है कि यूरोप के साथ-साथ एशिया और अफ्रीका में भी भारतीय सोयामील की मौजूदगी बनी हुई है.
उत्पादन बढ़ा, खपत ने बढ़ाई चिंता
अक्टूबर-नवंबर के दौरान सोयामील का उत्पादन 5 प्रतिशत बढ़कर 16.18 लाख टन हो गया, जबकि पिछले वर्ष इसी अवधि में यह 15.39 लाख टन था. इसके बावजूद घरेलू बाजार में खपत कमजोर बनी हुई है. पशु आहार यानी फीड सेक्टर की खपत 8.7 प्रतिशत घटकर 10.50 लाख टन रह गई, जो पिछले साल 11.50 लाख टन थी. वहीं, फूड सेक्टर में खपत 6.66 प्रतिशत घटकर 1.40 लाख टन रह गई, जबकि एक साल पहले यह 1.50 लाख टन थी.
सस्ते विकल्प से बढ़ी चुनौती
घरेलू मांग में गिरावट की एक बड़ी वजह डिस्टिलर्स ड्राइड ग्रेन्स विद सॉल्यूबल्स यानी DDGS है. यह मक्का और चावल जैसे अनाज से एथेनॉल उत्पादन के दौरान निकलने वाला उप-उत्पाद है, जो सोयामील के मुकाबले सस्ता पड़ता है. इसी कारण कई फीड निर्माता DDGS को प्राथमिकता दे रहे हैं, जिससे सोयामील की घरेलू खपत पर लगातार दबाव बना हुआ है.
मंडियों में सुस्ती, क्रशिंग में तेजी
कमजोर मांग और दाम न्यूनतम समर्थन मूल्य से नीचे रहने के कारण सोयाबीन की मंडियों में आवक धीमी रही है. अक्टूबर से नवंबर के बीच मंडियों में करीब 33 लाख टन सोयाबीन पहुंची, जबकि पिछले साल इसी समय यह मात्रा लगभग 34 लाख टन थी. हालांकि इसके बावजूद प्रोसेसिंग यानी क्रशिंग में बढ़ोतरी देखी गई है. इस अवधि में क्रशिंग बढ़कर 20.50 लाख टन हो गई, जो एक साल पहले 19.50 लाख टन थी. चालू वर्ष में सोयाबीन का आयात भी सीमित रहा और इसे करीब 0.10 लाख टन आंका गया है.
उत्पादन और स्टॉक की स्थिति
SOPA के अनुसार 2025-26 ऑयल ईयर में देश में सोयाबीन का कुल उत्पादन करीब 105.36 लाख टन होने का अनुमान है. वहीं नवंबर के अंत तक सोयाबीन का कुल भंडार लगभग 76.56 लाख टन रहने की उम्मीद है. इससे साफ होता है कि फिलहाल सोयाबीन की उपलब्धता ठीक है और कच्चे माल की कोई कमी नहीं है.
पिछले साल से बेहतर संकेत
2024-25 ऑयल ईयर में भारत का सोयामील निर्यात 20.23 लाख टन रहा था, जो उससे पिछले वर्ष के मुकाबले 11 प्रतिशत कम था. इसके मुकाबले चालू साल की मजबूत शुरुआत ने उद्योग में नई उम्मीद जगा दी है.
उद्योग से जुड़े जानकारों का मानना है कि अगर यूरोप से यह मजबूत मांग बनी रहती है और नए बाजार खुलते हैं, तो आने वाले महीनों में भारतीय सोयामील निर्यात और बेहतर हो सकता है. इससे न सिर्फ प्रोसेसर्स को राहत मिलेगी, बल्कि सोयाबीन किसानों के लिए भी बाजार में स्थिरता और बेहतर कीमतों की उम्मीद बढ़ेगी.