ज्वार की इन किस्मों की करें खेती, चारा और अनाज दोनों में करें इस्तेमाल

खरीफ सीजन में ज्वार की खेती करने वाले किसानों के लिए भारतीय मिलेट अनुसंधान संस्थान हैदराबाद (IIMR) नई किस्म लेकर आया है, जो अनाज के साथ ही पशुओं के लिए चारे के रूप में भी इस्तेमाल करना काफी फायदेमंद होगा.

अनामिका अस्थाना
नोएडा | Updated On: 8 Jun, 2025 | 03:59 PM

श्रीअन्न फसलों में आने वाली ज्वार की फसल किसानों को अच्छा उत्पादन दे सकती है. लेकिन इसके लिए जरूरी है कि किसान ज्वार की सही किस्मों का चुनाव करें. जो कि उन्हें उत्पादन के साथ-साथ अच्छी कमाई भी दें. खरीफ सीदन की शुरुआत हो चुकी है और इस सीजन में किसान बड़े पैमाने पर मोटे अनाज की खेती करते हैं, उन्हीं में से एक ज्वार भी है. खबर में आगे बात करेंगे ज्वारी की कुछ उन्नत किस्मों के बारे में जिनका इस्तेमाल अनाज और चारा दोनों के रूप में हो सकता है.

ज्वार की कुछ उन्नत किस्में

CSH 14 (हाइब्रिड)

ये ज्वार की एक हाइब्रिड किस्म है जिसे भारतीय कृषि अनुसंधान (ICAR) और सोरघुम रिसर्च डाइरेक्टरेट , हैदराबाद द्वारा विकसित किया गया है. अनाज के लिए ज्वार की इस किस्म को सबसे सही माना जाता है. बुवाई के लगभग 105-110 दिन के बाद इसकी फसल कटाई के लिए तैयार हो जाती है. इसेक पौधे की ऊंचाई 180 से 200 सेमी के बीच होती है.

CSV 15 (ओपन-पॉलीनेटेड)

ज्वार की इस किस्म को भारतीय मिलेट अनुसंधान संस्थान, हैदराबाद (IIMR) द्वारा विकसित किया गया है. किसानों के बीच ये किस्म कम लागत में ज्यादा पैदावार देने के लिए लोकप्रिय है. इसकी फसल बुवाई के करीब 105 से 115 दिन में पककर तैयार हो जाती है. इसके पौधे की ऊंचाई 180 से 220 सेमी के बीच होती है. इसकी खासियत है कि खराब मिट्टी और कम पानी में भी अच्छी उपज देती है.

CSV 20 (ओपन-पॉलीनेटेड)

ज्वार की इस किस्म को भारतीय मिलेट अनुसंधान संस्थान, हैदराबाद (IIMR) द्वारा विकसित किया गया है. इस किस्म को खासतौर पर अनाज के लिए विकसित किया गया है. इसकी फसल बुवाई के 105 से 115 दिन में पककर तैयार हो जाती है. इसकी खासियत है कि यह पत्ती झुलसा, तना गलन और दाने की झुलसी जैसे रोगों के प्रतिरोधी होती है.

CSH 25 (हाइब्रिड)

CSH 25 (हाइब्रिड) ज्वार की एक अच्छी क्वालिटी की उन्नत किस्म है जिसे भारतीय मिलेट अनुसंधान संस्थान, हैदराबाद (IIMR) द्वारा विकसित किया गया है. इसकी खेती के लिए महाराष्ट्र, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, राजस्थान, तेलंगाना और गुजरात जैसे राज्य अनुकूल माने जाते हैं. इसकी बालियां बड़ी, मोटी और अच्छी तरह भरी हुई होती हैं. इसकी खासियत है कि यह पत्ती झुलसा, तना गलन और झुलसी रोग के प्रतिरोधी है.

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Published: 8 Jun, 2025 | 03:59 PM

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