खेती में बढ़ती लागत की वजह आई सामने, मिट्टी खो रही ताकत.. फसल पर मंडरा रहा खतरा, ये उपाय करें किसान

पराली जलाना किसानों के लिए छुपा हुआ खतरा बन चुका है. इससे मिट्टी की ताकत घटती है, पोषक तत्व खत्म होते हैं और फसल को ज्यादा खाद-पानी की जरूरत पड़ने लगती है. नतीजा-लागत बढ़ती है और पैदावार कम हो जाती है. विशेषज्ञ इसे खेती के भविष्य के लिए बड़ा खतरा मान रहे हैं.

Saurabh Sharma
नोएडा | Published: 7 Dec, 2025 | 04:20 PM

Stubble Burning : सर्दियों का समय हो या गर्मी का, किसान पूरे साल अपनी फसल को अच्छी तरह उगाने के लिए मेहनत करते हैं. लेकिन कई बार अनजाने में किए गए कुछ छोटे-छोटे काम फसल को भारी नुकसान पहुंचा देते हैं. इनमें सबसे बड़ा कारण है खेत में पराली जलाना. दिखने में यह आसान तरीका है, लेकिन इसके नतीजे लंबे समय तक खेती को नुकसान पहुंचाते हैं. जब खेत की मिट्टी खराब होती है, तो फसल बढ़ने के लिए ज्यादा खाद और पानी की जरूरत पड़ती है, जिससे लागत भी बढ़ जाती है और पैदावार भी घट जाती है. आइए समझते हैं कि यह किसानों के लिए किस तरह खतरे की घंटी है.

पराली जलाते ही मिट्टी की ताकत हो जाती है कम

मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, किसानों को लगता है कि पराली जलाने  से खेत जल्दी साफ हो जाएगा और अगली फसल बोना आसान होगा. लेकिन मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, आग लगते ही खेत की मिट्टी का तापमान लगभग 400-500 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाता है. इतनी ज्यादा गर्मी से मिट्टी में मौजूद सबसे जरूरी चीजें-जैसे फायदेमंद बैक्टीरिया, केंचुए और फफूंद-तुरंत खत्म हो जाते हैं. ये छोटे-छोटे जीव ही मिट्टी को उपजाऊ बनाते हैं और पौधों को पोषण उपलब्ध  कराते हैं. आग लगने से मिट्टी की जैविक गतिविधि 70 फीसदी और जैविक कार्बन 30 फीसदी तक कम हो जाता है. यही वजह है कि अगली फसल कमजोर होने लगती है.

मिट्टी के पोषक तत्व भी जलकर हो जाते हैं खत्म

रिपोर्टों में बताया गया है कि जब 1 टन पराली जलाई जाती है, तो खेत की मिट्टी में मौजूद कई जरूरी पोषक  तत्वों का बड़ा नुकसान होता है. इसमें लगभग 80-90 फीसदी नाइट्रोजन, 50-60 फीसदी सल्फर और 20 फीसदी पोटाश जलकर उड़ जाता है. यह वही पोषक तत्व हैं जो फसल को बढ़ने में मदद करते हैं. इनकी कमी पूरी करने के लिए किसानों को अगली फसल में ज्यादा खाद और पानी देना पड़ता है. इससे खेती की लागत बढ़ जाती है और फसल का विकास  भी उतना अच्छा नहीं हो पाता.

लगातार बढ़ती खाद और पानी की खपत-किसान हों सतर्क

जब मिट्टी अपनी प्राकृतिक ताकत खो देती है, तो किसान फसल को खड़ा रखने के लिए ज्यादा से ज्यादा खाद, यूरिया और पानी देने लगते हैं. लेकिन यह समस्या का हल नहीं बल्कि उसकी शुरुआत है. अधिक खाद और पानी न सिर्फ लागत बढ़ाता है बल्कि कई बार फसल को भी नुकसान पहुंचा देता है. पौधे कमजोर हो जाते हैं और उत्पादन घटने लगता है. विशेषज्ञों के मुताबिक, पराली जलाने से होने वाले नुकसान की भरपाई मिट्टी को करने में करीब 5-7 साल लग जाते हैं.

समाधान-पराली जलाने के बजाय अपनाएं नई तकनीकें

विशेषज्ञ लगातार किसानों से अपील कर रहे हैं कि पराली जलाने के बजाय वैकल्पिक और आधुनिक तकनीकों को अपनाएं. हैप्पी सीडर, सुपर सीडर और बायो-डी कम्पोजर जैसी मशीनें पराली को जलाने के बजाय मिट्टी में ही मिला देती हैं. इससे पराली खाद बन जाती है और मिट्टी की सेहत भी सुधरती है. इसके अलावा, पराली से पशु चारा, खाद, बायोफ्यूल और कई तरह के उपयोगी उत्पाद भी बनाए जा सकते हैं. इससे न सिर्फ खेत उपजाऊ रहता है, बल्कि किसान अतिरिक्त आय भी कमा सकते हैं.

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