मॉनसून सीजन के दौरान देशभर में किसान बड़े पैमाने पर धान की खेती करते हैं. फसल से अच्छी पैदावार की उम्मीद लिए किसानों के सामने धान की फसल की सुरक्षा का भी सवाल खड़ा होता है. बरसात के दिनों में खेतों में नमी होने के कारम फसल में कई खतरनाक रोगों के संक्रमण का खतरा भी बढ़ जाता है. इनरोगों के संक्रमण से न केवल फसल बर्बाद होती है बल्कि किसानों के सामने भी आर्थिक संकट खड़ा हो सकता है. ऐसे में किसानों के लिए बेहद जरूरी है कि वे समय रहते इन रोगों के लक्षणों की पहचान कर उनसे फसल को बचान के उपाय कर लें ताकि फसल बर्बाद न हो और उन्हें अच्छी मात्रा में पैदावार भी मिले.
खैरा रोग से रुक जाती है पौधे की ग्रोथ
धान की फसलमें लगने वाले कुछ खतरनाक रोगों में से एक है खैरा रोग. इस रोग के संक्रमण से धान के पौधों की रोपाई के करीब 2 हफ्ते बाद पुरानी पत्तियों के निचले हिस्से में हल्के पीले रंग के धब्बे पड़ने लगते हैं. इस रोग के प्रभाव के कारण धान के पौधे की ग्रोथ रुक जाती है और पौधा बौना रह जाता है. अगर किसान खैरा रोग से धान की फसल की बचाव करना चाहते हैं तो जरूरी है कि किसान सही मात्रा में दवा का इस्तेमाल करें. बचाव के लिए किसान खेत में 20 से 25 किलोग्राम जिंक सल्फेट का प्रति हेक्टेयर जमीन की दर से रोपाई के पहले ही खेत में जालें. इस तरह फसल में खैरा रोग के होने का खतरा कम हो जाता है.
पौधे को भूरा कर देता है झुलसा रोग
झुलसा रोग धान की फसल में लगने वाला वो रोग है जो कि खेत में पौधा लगाने के समय से लेकर फसल में दाना बनने तक में लगता है. इस दौरान फसल में इस रोग के संक्रमण का खतरा सबसे ज्यादा होता है. बता दें कि, पौधों के तनों और पत्तियों पर इसका सबसे ज्यादा प्रकोप देखने को मिलता है. इस रोग के संक्रमण की पहचान है कि इसके प्रभाव से पौधों का रंग गहरा भूरा होने लगता है और सफेद रंग के धब्बे पड़ने लगते हैं. झुलसा रोग से बचाव करने के लिए किसानों को सलाह दी जाती है कि वे बीज बुवाई से पहले बीजों का उपचार जरूर कर लें. इसके अलावा किसानों को जब भी फसल पर इस रोग का प्रकोप या लक्षण दिखे तो उसे उखाड़कर फसल से अलग कर दें.
नमक के घोल से कंट्रोल करें कंडुआ रोग
कुछ मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, कंडुआ एक ऐसा रोग है जिसका संक्रमण धान की सबसे जयादा उपज देने वाली किस्मों में ज्यादा होता है. बता दें कि, जिन खेतों में नमी ज्यादा होती है और यूरिया का इस्तेमाल ज्यादा मात्रा में किया जाता है, उन खेतों में इस रोग के आने का खतरा सबसे ज्यादा होता है. बात करें इसके लक्षणों की तो धान की फसल में जब बालियां आने लगती हैं तब इस रोग का लक्षण दिखने लगता है. कंडुआ रोग से धान की फसल को बचाने के लिए बीजों की बुवाई से पहले नमक के घोल में धान के बीजों का उपचार करें ताकि फसल की ग्रोथ और क्वालिटी दोनों में सुधार आए.