जड़ गलन रोग से बर्बाद हो सकती है धान की फसल, जानें लक्षण और बचाव के तरीके

जड़ गलन रोग से धान की फसल को बचान के लिए किसानों को सबसे पहले ये सलाह दी जाती है कि वे रोपाई के बाद फसल की नियमित रूप से जांच करें.

नोएडा | Updated On: 31 Jul, 2025 | 07:03 PM

देशभर में धान की खेती करने वाले किसान पूरी तरह से धान की रोपाई कर चुके हैं. किसानों को अब फसल के पकने का इंतजार है. लेकिम कम बारिश और लगातार बदलते मौसम के चलते धान की फसल में रोग और कीटों के संक्रमण का खतरा बढ़ गया है. धान की फसल को सबसे ज्यादा प्रभावित करने वाला रोग है जड़ गलन रोग, जिसके संक्रमण से धान की फसल की जड़ें गलन लगती हैं. जिसके बाद फसल सूख जाती है. इस स्थिति में न केवल फसल बर्बाद होती है बल्कि किसानों के सामने भी आर्थिक संकट आ जाता है. ऐसे में किसानों के लिए बेहद जरूरी है कि वे जड़ गलन रोग के संक्रमण से फसल को बचाने के उपायों के बारे में जानकारी जुटा लें.

जड़ गलन रोग के लक्षण

जड़ गलन रोग धान की फसल में आमतौर पर रोपाई के 20 से 30 दिनों के बाद दिखाई देने लगता है. बता दें कि रोपाई के बाद के शुरुआती दिन धान की फसल के लिए बेहद ही संवेदनशील होते हैं. ऐसे में अगर जल निकासी, मिट्टी का स्वास्थ्य, या मौसम संबंधी स्थितियां अनुकूल नहीं हैं तो जड़ गलन रोग तेजी से फैल सकता है. जड़ गलन रोग किसानों के लिए एक बहुत ही गंभीर समस्या है जिसके प्रकोप के कारण किसान की सारी मेहनत पर पानी फिर जाता है. ऐसे में बहुत जरूरी है कि किसान धान की रोपाई के साथ ही फसल की नियमित रूप से निगरानी करें और जड़ गलने रोग के लक्षणों की पहचान कर बचाव के तरीकों को अपनाएं

इन कारणों से लगता है रोग

अलग-अलग मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, धान की फसल में जड़ गलन रोग होने के कई कारण हो सकते हैं. जिनमें विशेष तौर पर खेत में जरूरत से ज्यादा नमी होना, जल निकासी की सही व्यावसाथा का न होना, मिट्टी में पोषक तत्वों की कमी, जरूरत से ज्यादा सिंचाई आदि शामिल हैं. ये सारे कारण मिलकर धान की फसल में फंगल इंफेक्शन को बढ़ाते हैं जो कि आगे जाकर जड़ गलन रोग में बदल जाता है और फसल सूखकर बर्बाद हो जाती है.

किसान ऐसे करें बचाव

जड़ गलन रोग से धान की फसल को बचान के लिए किसानों को सबसे पहले ये सलाह दी जाती है कि वे रोपाई के बाद फसल की नियमित रूप से जांच करें. अगर रोग होने के लक्षण नजर आने लगें तो ध्यान दें कि खेत में पानी न भरने दें और खेत में जल निकासी की अच्छी व्यवस्था करें. साथ ही बीजों की बुवाई से पहले बीज को फफूंदनाशक दवाओं से उपचारित करें. इससे बीज में मौजूद रोग के बीजाणु नष्ट हो जाते हैं. किसानों को ये भी सलाह दी जाती है कि वे एक ही खेत में बार-बार धान की फसल लगाने से बचें. इसके अलावा खेत में केमिकल उर्वरकों की जगह जैविक उर्वरकों का इस्तेमाल करें. सबसे जरूरी है कि किसान धान की फसल को जरूरत के अनुसार ही पानी दें , कम या ज्यादा पानी देने से बचें.

Published: 31 Jul, 2025 | 07:55 PM