उत्तराखंड की ये खास फसल कहलाती है हेल्थ फूड, फाइबर- आयरन जैसे पोषक तत्वों से है भरपूर

काला सोयाबीन में काफी ज्यादा मात्रा में एंटीऑक्सीडेंट्स पाए जाते हैं. इसमें बहुत से औषधीय गुण भी हैं जो कि शरीर को कई बीमारियों से बचाने में मदद करते हैं. काला सोयाबीन में मौजूद पोषक तत्व कैंसर, दिल की बीमारी और स्किन की समस्याओं से लड़ने में मदद करते हैं. बता दें कि ये प्रोटीन का एक बहुत अच्छा ऑप्शन है.

नोएडा | Published: 6 Jun, 2025 | 08:30 AM

मौजूदा वक्त में ज्यादातर किसान पारंपरिक खेती को छोड़कर आधुनिक खेती की तरफ रुख कर रहे हैं . लेकिन आज भी ऐसे बहुत से राज्य हैं, जो अपनी पारंपरिक खेती को जीवित रखे हुए है. हर राज्य की अपनी कुछ खास फसलें होती हैं, जिनकी खेती से उन्हें अच्छा उत्पादन और कमाई मिलती है. आज हम उत्तराखंड की एक खास पारंपरिक फसल के बारें में बात करेंगे जिसका नाम है काला सोयाबीन (Black Soyabean). जानेंगे कि क्यों कहते हैं इसे हेल्थ फूड और क्या है इसकी खासियत.

क्या है काला सोयाबीन

काला सोयाबीन या ब्लैक सोयाबीन उत्तराखंड और हिमालीय क्षेत्र की पारंपरिक फसल है. जो कि पोषक तत्वों से भरपूर है. स्थानीय भाषा में इसे भट्ट भी कहा जाता है. इसकी खेती सदियों से मुख्य तौर पर उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश और नेपाल के कुछ हिस्सों में होती आ रही है. वर्तमान में इसे बाजार में हेल्थ फूड या प्रोटीन स्त्रोत के रूप में बढ़ावा दिया जा रहा है.

क्यों कहते हैं हेल्थ फूड

काला सोयाबीन में काफी ज्यादा मात्रा में एंटीऑक्सीडेंट्स पाए जाते हैं. इसमें बहुत से औषधीय गुण भी हैं जो कि शरीर को कई बीमारियों से बचाने में मदद करते हैं. काला सोयाबीन में मौजूद पोषक तत्व इसे कैंसर, दिल की बीमारी और स्किन की समस्याओं से लड़ने में मदद करते हैं. बता दें कि ये प्रोटीन का एक बहुत अच्छा ऑप्शन है. इसमें मौजूद ओमेगा-3 फैटी एसिड, फाइबर और फाइटोकेमिकल्स कोलेस्ट्रोल को कंट्रोल करने का काम करते हैं. इसके साथ ही ब्लड शुगर को कंट्रोल करने में भी ये कारगर साबित होता है. सेहत संबंधी इतने सारे गुण मौजूद होने के कारण इसे हेल्थ फूड कहा जाता है.

काला सोयाबीन की खेती

काला सोयाबीन खरीफ सीजन की फसल है. इसकी बुवाई का सबसे सही समय जून के मध्य से जुलाई के मध्य तक होता है. इसकी खेती के लिए 20 डिग्री सेल्सियस से 30 डिग्री सेल्सियस तापमान सही माना जाता है. अच्छी जल निकासी वाली हल्की दोमट मिट्टी में इसकी खेती की जाती है जिसका pH मान 6.0 से 7.5 तक होना चाहिए. प्रति हेक्टेयर फसल के लिए 25 से 30 किग्रा बीज की जरूरत होती है. बात करें इसकी उपजी की तो प्रति हेक्टेयर फसल से औसतन किसान को 10 से 14 क्विंटल तक पैदावार मिल सकती है.

Published: 6 Jun, 2025 | 08:30 AM

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