गाय-भैंस में खूनी दस्त बना बड़ी चिंता, लक्षण पहचानने में देरी बढ़ा सकती है जान का खतरा

गांवों में दूध देने वाले पशुओं में खूनी दस्त तेजी से फैलने वाली गंभीर बीमारी है. शुरुआत में साधारण लगने वाली यह समस्या कुछ ही घंटों में खतरनाक रूप ले लेती है. समय पर लक्षण पहचानकर इलाज शुरू करना और साफ-सफाई रखना ही नुकसान से बचने का सबसे आसान तरीका है.

Saurabh Sharma
नोएडा | Published: 20 Nov, 2025 | 02:24 PM

Livestock Health : गांवों में दूध देने वाले पशु हर किसान की ताकत होते हैं. इसी वजह से किसान अपने गाय-भैंसों को परिवार का हिस्सा मानकर रखते हैं. लेकिन कई बार छोटी-सी बीमारी भी बड़ी समस्या बन जाती है. खासकर दस्त की बीमारी, जो सामान्य लगती है, पर जब यह खूनी दस्त में बदल जाती है, तो पशु की जान तक खतरे में पड़ सकती है. कई बार किसान शुरुआत में इसे हल्के में ले लेते हैं और तब तक बीमारी बढ़ जाती है, जब तक इलाज मुश्किल न हो जाए. यही वजह है कि खूनी दस्त की पहचान, कारण और रोकथाम की जानकारी हर पशुपालक के लिए जरूरी है.

खूनी दस्त क्या है और क्यों फैलता है?

मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, पशुओं में खूनी दस्त का मुख्य कारण काक्सीडिया नामक प्रोटोजोआ होता है. यह बहुत तेजी से फैलने वाला संक्रमण है, जो गंदे पानी, गंदे बर्तन, संक्रमित चारा  या गंदे चारागाह के माध्यम से एक पशु से दूसरे तक पहुंचता है. बाड़े में साफ-सफाई की कमी, गंदगी का जमा होना या अधिक भीड़ भी इस बीमारी के फैलने की बड़ी वजहें हैं. खास बात यह है कि यह रोग अचानक तेज स्थिति में पहुंच जाता है और पशु कमजोर होने लगता है. दूध देने वाले पशुओं में यह बीमारी होते ही दूध उत्पादन तुरंत घट जाता है, जिससे किसान को सीधा नुकसान होता है.

लक्षण पहचानें: शुरुआत में समझ लें खतरे का संकेत

जब पशु को खूनी दस्त  होता है, तो सबसे पहले उसके शरीर में पानी की कमी होने लगती है. वह सुस्त दिखने लगता है और चलने-फिरने में धीमा हो जाता है. मलत्याग करते समय उसे जोर लगाना पड़ता है, कई बार मलाशय बाहर भी आ जाता है. दस्त बहुत पतला और बदबूदार हो जाता है और कई बार उसमें खून या थक्के दिखाई देते हैं. दस्त के बाद पूंछ पर खून लगा नजर आना भी बड़ा संकेत है. ये लक्षण दिखते ही पशुपालक को तुरंत सतर्क हो जाना चाहिए, क्योंकि यह स्थिति तेजी से गंभीर हो सकती है.

उपचार: देरी न करें, तुरंत कदम उठाएं

जब पशु खूनी दस्त से ग्रसित हो जाए, तो सबसे पहले उसे बाकी पशुओं से अलग कर देना चाहिए ताकि संक्रमण न फैले . पशु चिकित्सक की सलाह पर सल्फा आधारित दवाएं जैसे सल्फाग्वानेडीन या सल्फा बोलस दवाई दी जा सकती है. छोटे बछड़ों को सल्फोप्राइस की गोलियां दी जाती हैं, जिससे संक्रमण कम होता है. बाड़े के आसपास 10 फीसदी लाइकर अमोनिया फोर्ट का छिड़काव करने से कीटाणु नष्ट हो जाते हैं और बीमारी का प्रसार रुक जाता है. शुरुआत के 24 घंटे बेहद जरूरी होते हैं, इसलिए इलाज में देरी नहीं करनी चाहिए.

रोकथाम: बीमारी से बचना इलाज से कहीं आसान

खूनी दस्त से बचाव का सबसे असरदार तरीका है-साफ-सफाई और समय पर देखभाल. बछड़े के जन्म के पहले 12 घंटों में उसे कोलोस्ट्रम या खीस जरूर पिलानी चाहिए, इससे उसकी रोग प्रतिरोधक क्षमता  बढ़ती है. बाड़ा हमेशा सूखा और साफ होना चाहिए, और पानी व चारा साफ बर्तनों में दिया जाना चाहिए. जहां गोबर और मूत्र जमा हो, वहां संक्रमण तेजी से फैलता है, इसलिए बाड़े में नियमित सफाई जरूरी है. नए पशु को झुंड में लाने से पहले कुछ दिन क्वारंटीन में रखना भी जरूरी है ताकि किसी संभावित रोग का प्रसार रोका जा सके.

किसान क्या करें? छोटी सावधानी बड़ी मुश्किल से बचाती है

अगर एक भी पशु खूनी दस्त से पीड़ित है, तो उसे तुरंत अलग करना, बाड़े की सफाई करना और समय पर इलाज कराना सबसे पहला कदम होना चाहिए. बाड़े में वेंटिलेशन अच्छा हो और भीड़ कम हो, ताकि पशु तनाव में न आएं. कई बार लापरवाही के कारण यह बीमारी पूरे झुंड में फैल जाती है, जिससे नुकसान बहुत बढ़ जाता है. इसलिए किसान जितना जल्दी लक्षण पहचानकर कदम उठाएंगे, उतना ही उनके पशु सुरक्षित रहेंगे और उत्पादन भी प्रभावित नहीं होगा. यह बीमारी दिखने में सामान्य दस्त जैसी लग सकती है, लेकिन इसका असर गंभीर होता है. समय रहते ध्यान न दिया जाए, तो पशु की जान  भी जा सकती है. इसलिए हर पशुपालक के लिए जरूरी है कि वह अपने पशुओं को रोजाना देखें, किसी भी बदलाव को पहचानें और तुरंत कार्रवाई करें.

Get Latest   Farming Tips ,  Crop Updates ,  Government Schemes ,  Agri News ,  Market Rates ,  Weather Alerts ,  Equipment Reviews and  Organic Farming News  only on KisanIndia.in

भारत में सबसे पहले सेब का उत्पादन किस राज्य में शुरू हुआ.

Side Banner

भारत में सबसे पहले सेब का उत्पादन किस राज्य में शुरू हुआ.