बीकानेर स्थित नेशनल रिसर्च सेंटर ऑन कैमल (NRCC) की रिसर्च के अनुसार ऊंटनी का दूध सिर्फ रेगिस्तान तक सीमित नहीं रहा, बल्कि यह भविष्य का दूध माना जा रहा है. अब इसका उपयोग सिर्फ पारंपरिक तरीकों में नहीं, बल्कि गंभीर बीमारियों के इलाज और डेयरी उत्पादों के रूप में भी होने लगा है. ऊंटनी का दूध डायबिटीज, ऑटिज्म और एलर्जी जैसी स्वास्थ्य समस्याओं में लाभकारी साबित हो रहा है.
कम फैट, ज्यादा इंसुलिन- डायबिटीज में फायदेमंद
ऊंटनी के दूध में फैट की मात्रा मात्र 3.5 फीसदी से 5 प्रतिशत तक होती है, जो गाय और भैंस के दूध से कम है. इसमें लगभग 40 µIU/ml तक प्राकृतिक इंसुलिन पाया जाता है, जो टाइप-1 डायबिटीज के मरीजों के लिए बहुत उपयोगी माना गया है. NRCC का कहना है कि ऊंटनी के दूध में मौजूद पोषक तत्व शरीर के शुगर स्तर को संतुलित करने में मदद करते हैं.
ऑटिज्म और एलर्जी में राहत देने वाला दूध
NRCC की रिपोर्ट के अनुसार ऊंटनी के दूध की प्रोटीन संरचना इंसानी दूध से मिलती-जुलती है, जिससे यह बच्चों के लिए अधिक अनुकूल बन जाता है. खासकर ऐसे बच्चे जो गाय या भैंस के दूध से एलर्जी रखते हैं, उनके लिए यह एक सुरक्षित और पौष्टिक विकल्प है. यही कारण है कि ऑटिज्म से पीड़ित बच्चों के लिए यह दूध देशभर में विशेष रूप से भेजा जा रहा है.
अब डेयरी प्रोडक्ट्स में भी हो रहा इस्तेमाल
ऊंटनी के दूध से अब सिर्फ दूध ही नहीं, बल्कि कई प्रकार के डेयरी प्रोडक्ट भी तैयार किए जा रहे हैं. जैसे-पनीर, गुलाब जामुन, कुल्फी, दूध पाउडर, चाय, कॉफी और मावा. रिसर्च सेंटर ने यह भी कहा है कि ऊंटनी का दूध बिना पाश्चुरीकरण के नहीं पीना चाहिए क्योंकि इससे संक्रमण का खतरा हो सकता है. प्रोसेस्ड दूध का ही उपयोग करना सुरक्षित है.