Cattle Disease: बरसात के मौसम में किसान और पशुपालक अब सिर्फ फसल की चिंता नहीं करते, बल्कि अपने पशुओं की सुरक्षा भी बड़ी चुनौती बन गई है. इस मौसम में गाय और भैंस में गलघोंटू बीमारी तेजी से फैल रही है. यह बीमारी जानलेवा हो सकती है और पशुओं के दूध उत्पादन को गंभीर रूप से प्रभावित कर देती है. कई बार पशुपालक समय रहते लक्षण पहचान नहीं पाते, जिससे लाखों रुपये का नुकसान हो जाता है. जागरूकता और समय पर टीकाकरण ही इस बीमारी से बचाव का सबसे असरदार तरीका है.
गलघोंटू क्या है और कैसे फैलती है
गलघोंटू बीमारी पास्चुरेला मल्टोसीडा नामक जीवाणु की वजह से होती है. यह जीवाणु सामान्य परिस्थितियों में श्वसन तंत्र में मौजूद होता है, लेकिन बरसात और बाढ़ जैसे प्रतिकूल मौसम में सक्रिय हो जाता है. जब पशुशाला में पानी जमा हो जाता है या बाढ़ का पानी खेतों में फैल जाता है, तो यह रोग तेजी से फैल सकता है. खासतौर पर भैंस में यह बीमारी अधिक दिखाई देती है, लेकिन गायों में भी इसकी पुष्टि हुई है.
मुख्य लक्षण जिन्हें नजरअंदाज न करें
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, गलघोंटू के लक्षण जल्दी पहचानना बहुत जरूरी है. इस बीमारी में पशु को अचानक तेज बुखार (105-107 डिग्री F) हो जाता है. इसके अलावा सांस लेने में तकलीफ, नाक और मुंह से स्राव, और गले, गर्दन व छाती में सूजन जैसी समस्याएं भी देखी जाती हैं. अगर पशु में ये लक्षण दिखें, तो तुरंत चिकित्सक से संपर्क करें. देर होने पर यह संक्रमण अन्य पशुओं तक फैल सकता है और नुकसान बढ़ सकता है.
समय पर टीकाकरण से बचाव
गलघोंटू से बचने का सबसे असरदार उपाय है समय पर टीकाकरण. हर साल बरसात शुरू होने से पहले अपने पशुओं को टीका लगवाना चाहिए. टीकाकरण से न सिर्फ रोग से बचाव होता है बल्कि पशुओं का स्वास्थ्य भी मजबूत रहता है. इसके साथ ही बीमार पशु को तुरंत अन्य पशुओं से अलग करना चाहिए ताकि संक्रमण फैलने का खतरा कम हो.
साफ-सफाई और जलभराव से बचाव
पशुपालक भाइयों को अपने पशुशाला की साफ-सफाई का विशेष ध्यान रखना चाहिए. बरसात में पानी जमा न होने दें और पशुओं के आस-पास का क्षेत्र हमेशा सूखा और साफ रखें. जलभराव से रोग फैलने का खतरा बहुत बढ़ जाता है. यदि किसी इलाके में पशु चिकित्सक उपलब्ध नहीं हैं, तो किसान जिला प्रशासन से मदद मांग सकते हैं.
जागरूकता और सतर्कता ही सबसे बड़ा हथियार
गलघोंटू जैसी संक्रामक बीमारी से बचाव के लिए सजग रहना बेहद जरूरी है. पशुपालक भाइयों को अपने पशुओं की रोजाना निगरानी करनी चाहिए. दूध में गिरावट, बुखार या सांस लेने में तकलीफ जैसी छोटी-छोटी समस्याओं को नजरअंदाज न करें. समय पर टीकाकरण, पशु को अलग रखना और साफ-सफाई बनाए रखना ही इस रोग से सुरक्षा का सबसे प्रभावी तरीका है.